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Updated: 11 मार्च, 2018 07:27 PM
बिजय कुमार
बिजय कुमार
  @bijaykumar80
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उत्तर प्रदेश से डॉक्टरों की लापरवाही और इंसानियत को शर्मसार करने वाली एक और घटना सामने आई है. मामला है झांसी का है जहां सड़क हादसे में घायल एक युवक को झांसी मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वॉर्ड में इलाज के लिए लाया गया और इलाज के दौरान युवक के सिर के नीचे उसी का कटा हुआ पैर रखा गया. जैसे ही इस घटना का वीडियो सोशल मिडिया पर वायरल हुआ देखते ही देखते खबर ने तूल पकड़ लिया. हमेशा की तरह जैसे ही इस घटना की जानकारी प्रशासन को मिली एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर समेत चार लोगों को सस्पेंड कर दिया गया और घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं. कॉलेज की प्रिंसिपल ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही है.

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बता दें कि 25 वर्षीय घनश्याम झांसी के एक स्कूल की बस में क्लीनर का काम करता है. रोज की तरह शनिवार को बस बच्चों को लेकर जा रही थी और वो भी उसमें सवार था रास्ते में एक ट्रैक्टर को बचाने की कोशिश में बस अनियंत्रित होकर पलट गई. इस हादसे में घनश्याम सहित करीब आधा दर्जन बच्चे जख्मी हो गए. गंभीर रूप से जख्मी घनश्याम का इलाज झांसी मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में चल रहा था. जहां से इस तरह की भारी लापरवाही का मामला देखने को मिला है. ऐसा नहीं है कि प्रदेश से लापरवाही का ये पहला मामला हो इससे पहले भी कई मौकों पर अस्पतालों द्वारा लापरवाही और मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं देखने को मिली हैं. आइए एक नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ मामलों पर...

मार्च 09, 2018: एक पिता ने मुख्यमंत्री के पोर्टल पर दर्ज अपनी शिकायत में यह आरोप लगाया है कि उसके 10 वर्षीय बेटे का मथुरा के एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में इलाज कराया गया. उस इलाज के दौरान उसके सिर में नीडल (सुई) छूट गई है. पिता ने इसकी शिकायत मथुरा के छटा कोतवाली में भी की है.

जनवरी 30, 2018: प्रदेश के जौनपुर जिले के सामुदायिक स्वस्थ्य केंद्र से एक ऐसा मामला सामने आया था जिसने ना सिर्फ डॉक्टरों की लापरवाही बयां कि थी बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार किया था. एक प्रसव पीड़ा से गुजर रही महिला का इलाज करने से इसलिए मना कर दिया गया, क्योंकि उसके पास आधार कार्ड और बैंक पासबुक नहीं था. इसके बाद जब महिला शाहगंज स्थित इस सामुदायिक केंद्र के बाहर पीड़ा से गिर पड़ी तो आसपास के लोगों ने उसे उठाकर अस्पताल ले आए जहां उसने फर्श पर ही अपने बच्चे को जन्म दिया.

अक्टूबर 30, 2017: प्रदेश के मथुरा में एम्बुलेंस नहीं पहुंचाने से महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दिया.

जून 13, 2017: उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी में एक युवक को अपनी भतीजी का शव साइकिल से कंधे पर रखकर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि सरकारी अस्पताल ने एम्बुलेंस देने से मना कर दिया था.

मई 2, 2017: डॉक्टरी लापरवाही का एक और मामला उस समय देखने को मिला जब इटावा में एक अस्पताल द्वारा मदद से मना किए जाने के बाद मजदूर को अपने 15 वर्षीय बेटे को कंधे पर लेकर जाना पड़ा.

यही नहीं प्रदेश से दो बड़े लापरवाही के मामले भी सामने आ चुके हैं. पहला है फ़रवरी महीने में ख़बरों में आया उन्नाव जिले का वो मामला जहां बांगरमऊ तहसील के कुछ गांवों के क़रीब 40 लोग इलाज के बाद एचआईवी संक्रमित हो गए. दरअसल झोलाछाप डॉक्टरों ने इनका इलाज किया था. कथित तौर पर एक ही इंजेक्शन बार-बार इस्तेमाल करने से ऐसा हुआ. स्वास्थ्य विभाग ने मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करवाया है. यह मामला तब सामने आया था जब एक गैर सरकारी संगठन ने पिछले वर्ष नवंबर में स्वस्थ्य कैंप लगाया था और इस दौरान उसे गांव के लोगों में एड्स के लक्षण देखने को मिले.

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दूसरा मामला है गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में पिछले वर्ष अगस्त के महीने में मात्र 5 दिनों में लगभग 63 बच्चों की मौत का. बता दें कि इसके पीछे ऑक्सीजन की कमी को वजह बताया गया था और ऑक्सीजन की कमी इसलिए हुई थी, क्योंकि सप्लायर का भुगतान नहीं किया गया था.

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लेखक

बिजय कुमार बिजय कुमार @bijaykumar80

लेखक आजतक में प्रोड्यूसर हैं.

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