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Updated: 22 अक्टूबर, 2019 04:52 PM
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Antibiotics के बारे में एक बात जो पिछले काफी समय से चर्चा में है वो ये कि antibiotics का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. लेकिन क्यों नहीं करना चाहिए, वो किसी को नहीं पता. जबकि हालात ये थे कि हल्के से सर्दी बुखार में भी लोग एंटीबायोटिक खा लिया करते थे. वो भी बिना किसी डॉक्टरी सलाह के. लेकिन अब जो खबर आ रही है वो न सिर्फ डराने वाली है बल्कि ये भी समझा देगी कि आखिर एंटीबायोटिक्स का ज्यादा इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक क्लैरिथ्रोमाइसिन का प्रतिरोध (antibiotic resistance) भारतीय रोगियों में बढ़ रहा है और वह भी काफी तेजी से. Clarithromycin का उपयोग तरह-तरह के bacterial infections के इलाज के लिए किया जाता है.

antibioticsअगर शरीर पर एंटीबायोटिक असर करना ही बंद कर देंगी तो फिर ठीक कैसे होंगे?

नोएडा के जेपी अस्पताल में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी विभाग के Additional Director सुनील सोफट ने कहा कि बीमारियों के इलाज के लिए हर एंटीबायोटिक दवा का अपना एक mechanism या तंत्र होता है. उनका कहना है कि- हां, यह सच है कि क्लीरिथ्रोमाइसिन का प्रतिरोध भारतीय रोगियों में बढ़ रहा है और वह भी काफी तेज गति से. और इसके पीछे बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है खुद से दवाई ले लेना. भारत में एक बड़ी आबादी डॉक्टर के परामर्श के बिना दवाएं लेना पसंद करती है. और ऐसा करते रहने से वो क्लियरिथ्रोमाइसिन समेत ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाओं के लिए resistant या प्रतिरोधी बन सकते हैं.

एक हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (एच पाइलोरी) को मिटाने के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे स्थापित एंटीमाइक्रोबियल में से एक क्लैरिथ्रोमाइसिन का प्रतिरोध जो 1998 में 9.9 प्रतिशत थै से बढ़कर पिछले साल तक 21.6 प्रतिशत पहुंच गया है. प्रतिरोध में ये वृद्धि लिवोफ़्लॉक्सासिन और मेट्रोनिडाजोल के लिए भी देखी गई.

WHO के अनुसार, antibiotic resistance या एंटीबायोटिक प्रतिरोध आज वैश्विक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और विकास के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है. लेकिन इसकी गंभीरता आपको तभी पता चलेगी जब आपको ये पता चलेगा कि आखिर एंटीबायोटिक क्या हैं, काम कैसे करते हैं और antibiotic resistance आखिर होता क्या है.

पहले समझते हैं antibiotics को

एंटीबायोटिक एक ग्रीक शब्द है, जो एंटी और बायोस से मिलकर बना है. एंटी का मतलब-विरोध और बायोस का मतलब- जीवाणु यानी बैक्टीरिया. इसलिए सरल शब्दों में समझें तो एंटीबायोटिक का मतलब हुआ बैक्टीरिया का विरोध करने वाला. एंटीबायोटिक जीवाणुओं के विकास को रोक देते हैं और बैक्टीरिया के संक्रमण को रोककर इलाज करते हैं. आमतौर पर एंटीबायोटिक्स को एंटीबैक्टीरियल भी कहा जाता है. जब शरीर में नकारात्मक बैक्टीरिया का असर बढ़ता है, तब हम बीमार पड़ जाते हैं. ऐसी स्थिति में एंटीबायोटिक बैक्टीरिया के संक्रमण को नष्ट कर देती है.शरीर में अपनी भी प्रतिरोधक क्षमता होती है. लेकिन, जब बैक्टीरिया का संक्रमण ज्यादा हो जाता है, तो प्रतिरोधक तंत्र के लिए लड़ना मुश्किल होता है और उस वक्त एंटीबायोटिक्स की मदद ली जाती है.

Antibiotic resistance आखिर है क्या?

तो ये तो समझ आ गया कि एंटीबायोटिक्स जीवाणु संक्रमण को रोकने और उपचार करने की दवाएं हैं. लेकिन एंटीबायोटिक प्रतिरोध या antibiotic resistance तब होता है जब बैक्टीरिया इन दवाओं के उपयोग के बाद बदल जाते हैं. पिछले कुछ दशकों में बैक्टीरिया ने एंटीबायोटिक से लड़ना सीख लिया है. ये बैक्टीरिया एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बन जाते हैं. ये बैक्टीरिया मनुष्यों और जानवरों को संक्रमित कर सकते हैं, और जो संक्रमण ये बैक्टीरिया पैदा करते हैं, वो गैर-प्रतिरोधी बैक्टीरिया की तुलना में ज्यादा खतरनाक होते हैं. कह सकते हैं कि बैक्टीरिया ने ऐसा ड्रग बना लिया है जो कि एंटीबायोटिक दवाओं के असर को कम कर रहा है. इसे सुपरबग्स कहा जाता है. ऐसी स्थिति बेहद खतरनाक होती है और एंटीबायोटिक काम करना बंद कर देती हैं. फिर वही दवा भविष्य में हमारे लिए प्रभावहीन हो जाती है और हमारी सामान्य सी बीमारी भी काफी बढ़ जाती है.

antibioticsअपने मन से कभी एंटीबायोटिक दवाएं नहीं खानी चाहिए

Antibiotic resistance सबसे बड़ा खतरा

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि antibiotic resistance आज सबसे बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है और आने वाला समय मानव जीवन के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है. कहा जा रहा है कि इसकी वजह से 2050 तक दुनिया भर में 5 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान जा सकती है. ब्रिटिश सरकार ने एंटीमाइक्रोबायल रेसिस्टेंस का रिव्यू करते हुए यह आंकड़ा पेश किया है. इससे साफ जाहिर होता है कि आज अगर सुरक्षित तरीके से antibioticका इस्तेमाल न किया गया तो आने वाले वक्त में एंटीबायोटिक बेअसर हो जाएंगी.

भविष्य में क्या होगा वो तो बाद में होगा लेकिन डराने के लिए हमारा वर्तमान ही काफी है. एम्स, सीएमसी वेल्लोर और CDC के विज्ञानिकों ने एक रिसर्च की है जिसमें ये सामने आया है कि जनवरी 2016 से अक्टूबर 2017 तक एम्स के ट्रॉमा सेंटर के 22 मरीजों पर एंटीबायोटिक colistin का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. 22 में से 10 मरीजों की मृत्यु दाखिले से दो हफ्ते के भीतर ही हो गई. जबकि बाकी मरीज बच तो गए लेकिन हाई पॉवर की दवाओं के साथ 23 दिन भर्ती रहे. यानी जरूरत के वक्त दी जाने वाली एंटिबायोटिक का असर इनपर हुआ ही नहीं और नतीजा आपके सामने है.

हाल ही में Indian Council of Medical Research (ICMR) की एक स्टडी ने बताया कि कैसे भारत के हर तीन स्वस्थ्य वयस्कों में से दो का शरीर एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट हो चुका है यानी उनपर आम तौर पर दी जाने वाली एंटीबायोटिक असर नहीं करेगी. बता दें कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल भारत में ही होता है.

जान बचाने का एक ही रास्ता

एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को रोकना तभी संभव है जब सब एकसाथ मिलकर इस दिशा में काम करें. यानी जहां दवाओं का इस्तेमाल कम हो वहीं दवाएं बननी भी कम हों. साथ ही इनकी बिक्री पर भी नियंत्रण हो. बिना मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन के किसी को न दी जाए. लेकिन बाकी चीजें एक आम इंसान नियंत्रित नहीं कर सकता, हम और आप जो कर सकते हैं वो ये है-

- एंटीबायोटिक्स का उपयोग तभी करें जब कोई डॉक्टर उसे लेने की सलाह दे. अपने डॉक्टर खुद न बनें.

- अगर कोई डॉक्टर कह रहा है कि आपको एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं, तो कभी भी एंटीबायोटिक की डिमांड न करें.

- एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को लेकर हमेशा डॉक्टर की ही सलाह लें.

- बचे हुए एंटीबायोटिक्स को कभी भी किसी को खाने के लिए न दें और न दोबारा उसे खाएं.

- संक्रमण से बचने का प्रयास करें जिसके लिए नियमित रूप से हाथ धोएं, स्वच्छ तरीके से खाना बनाएं, बीमार लोगों के सीधे संपर्क से बचें, सुरक्षित सेक्स की आदत डालें, और नियमित टीकाकरण करवाएं.

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