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Updated: 26 जून, 2019 06:34 PM
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दिल्ली के एक नामी अस्पताल में एक 60 साल का मरीज भर्ती हुआ. उसे इमर्जेंसी वॉर्ड में ले गए. वो सेप्टिक शॉक में था यानी उसके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) काम करना बंद कर चुकी थी. ICU में भर्ती किया गया. डॉक्टर उसकी हालत ठीक करने के लिए बहुत प्रयास कर रहे थे. उसे एंटी-बायोटिक्स दी जा रही थी. पर कोई भी दवा असर ही नहीं कर रही थी. लगातार 4 दिन में उनकी हालत इतनी बिगड़ गई कि मामला इस पार या उस पार वाला हो गया. X-Ray रिपोर्ट में दोनों फेफड़ों में कुछ समस्या आई. फिर टिशू कल्चर (एक तरह की जांच) किया गया तो सामने आया कि कोई भी एंटीबायोटिक उनपर इसलिए असर नहीं कर रही है क्योंकि जो बैक्टीरिया उनके फेफड़ों और खून में है वो पहले ही इसके लिए प्रतिरक्षक हो चुका है. ये बैक्टीरिया एक तरह का एंजाइम बना रहा था जिससे एंटीबायोटिक्स असर नहीं कर रही थीं. आखिर में उन्हें Polymyxin (सबसे आखिर में दिया जाने वाला रक्षक ड्रग्स. इसे आम तौर पर मरीजों को नहीं देते हैं) दिया गया. अगर ये असर नहीं करता तो उन्हें नहीं बचाया जा सकता था, लेकिन ये असर कर गया. पर कई भारतीयों पर ये भी असर नहीं करता. World Health Organisation (WHO) ने एक चेतावनी जारी की है कि antibiotic resistance (यानी दवा का बैक्टीरिया पर असर न होना क्योंकि वो खुद प्रतिरोधक क्षमता बना चुका है) दुनिया की स्वास्थ्य को लेकर सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. ये इंसान और जानवर दोनों पर असर डालती है, लेकिन इसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल समस्या को बिगाड़ देता है.

ड्रग रेजिस्टेंस, एंटीबायोटिक, स्वास्थ्यड्रग रेजिस्टेंस भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक बनता जा रहा है.

दुनिया के antibiotic resistance की राजधानी बन सकता है भारत..

भारत इस समय ऐसे हालात से गुजर रहा है कि ये आसानी से ग्लोबल हेल्थ की समस्याओं की राजधानी बन सकता है. हाल ही में Indian Council of Medical Research (ICMR) की एक स्टडी ने बताया कि कैसे भारत के हर तीन स्वस्थ्य वयस्कों में से दो का शरीर एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट हो चुका है यानी उनपर आम तौर पर दी जाने वाली एंटीबायोटिक असर नहीं करेगी.

कैसे शरीर होता है antibiotic resistant?

ये आम तौर पर तब होता है जब शरीर में जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक का डोज पहुंच जाता है. धीरे-धीरे काफी मात्रा में जब ये शरीर के अंदर जाता है तो शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया इसका तोड़ निकाल लेता है. जहां एक ओर वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के नए तरीके ढूंढ रहे हैं वहीं दूसरी ओर पूरी दुनिया में दिन प्रति दिन इस समस्या का समाधान निकालना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में tuberculosis (TB) जैसी बीमारियों के लिए दवाओं को लेना मुश्किल होता जा रहा है. क्योंकि उनके बैक्टीरिया पर भी दवाओं का असर बंद हो गया है.

भारतीय आबादी के लिए समस्या और भी ज्यादा बड़ी!

आप दवा की दुकान पर जाएं और किसी एंटीबायोटिक का नाम लें. बहुत की कम दुकान वाले ऐसे होंगे जो डॉक्टर के पर्चे के बिना दवा नहीं देंगे. सिर दर्द के लिए कितना आसान है ब्रूफेन जैसी पेन किलर लेना? 200 MG, 400 MG, 600 MG, 800 MG ब्रूफेन जैसी दवा बहुत आसानी से मेडिकल स्टोर पर मिल जाएगी. ऐसे ही सर्दी, जुकाम, बुखार आदि के लिए पेन किलर से लेकर आम एंटीबायोटिक तक बहुत कुछ बिना प्रिस्क्रिप्शन के आसानी से उपलब्ध है. आलम ये है कि अगर पहचान वाला दुकानदार है तो नींद की दवाओं तक बहुत आसानी से उपलब्ध होगा.

ICMR की स्टडी में ये बात सामने आई है कि भारतीय परिपेक्ष में बहुत आसानी से लोग एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट हो सकते हैं. 3 में से 2 लोग अगर इससे पीड़ित हैं तो समस्या कितनी बड़ी है ये तो समझ आ ही रहा होगा. ICMR की स्टडी में 207 लोगों से सैम्पल लिया गया ये वो लोग थे जो न तो बीमार थे न ही 1 महीने से किसी तरह की एंटीबायोटिक पर थे. इनमें से 139 के सैम्पल से ये निष्कर्श निकला है कि इनके digestive tract में जो जीवाणुं थे उनपर किसी भी तरह की एंटीबायोटिक का असर नहीं हो रहा था. मौजूदा हालत में ये हल्की एंटीबायोटिक से इम्यून हुए हैं और अगर ऐसी स्थिति जारी रही तो ये हाई डोज वाली एंटीबायोटिक से भी इम्यून हो सकते हैं.

इस स्टडी को शुरू करने वाले Dr Pallab Ray ने चिंता जाहिर की है. उनका कहना है कि इस स्टडी के नतीजों को चेतावनी की तरह देखा जाना चाहिए.

किन दवाओं को लेकर है सबसे ज्यादा खतरा?

रिसर्च में सामने आया कि अधिकतर एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट cephalosphorins (60%) और fluoroquinolones (41.5%) ड्रग्स के कारण हुए हैं. सिर्फ 2% लोगों पर ही एक साथ कई दवाओं के लिए रेजिस्टेंट पावर थी. इस स्टडी में जो बैक्टीरिया पाए गए वो Enterobacteriaceae थे. इसमें Escherichia coli, Klebsiella, Salmonella, Shigella और Yersinia pestiS नामक बैक्टीरिया होते हैं.

E. coli शरीर में खराब खाने या पानी के कारण आता है, K. pneumonia किसी चोट या घाव के जरिए आता है, E. cloacae सांस लेने की नली या यूरिन ट्रैक के जरिए आता है. Morganella morganii शरीर में कई तरह के इन्फेक्शन के जरिए आता है.

जिन दवाओं को लेकर ये प्रतिरोधक क्षमता बन रही है वो हैं cephalosporins जो आम तौर पर कान, त्वचा, सांस नली, यूटीआई जैसे इन्फेक्शन के लिए दी जाती है. और दूसरी है fluoroquinolones जो आम तौर पर कई तरह के इन्फेक्शन के लिए दी जाती है.

किन कारणों से समस्या और बढ़ रही है?

स्टडी में दो अहम कारण सामने आए हैं. पहला जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना. आजकल आम तौर पर होने वाली सर्दी के लिए भी डॉक्टर एंटीबायोटिक लिख देते हैं. ऐसे में बैक्टीरिया इससे इम्यून हो जाता है.

ड्रग रेजिस्टेंस, एंटीबायोटिक, स्वास्थ्यभारत में बिना डॉक्टरी परामर्श दवा लेना और झोला छाप डॉक्टरों का असर ज्यादा खतरनाक है

दूसरा कारण है मरीजों का खुद ही डॉक्टर बन जाना. वो एक ही तरह की दवा बार-बार खाते रहते हैं. ऐसे में वो दवाएं जो सिर्फ अस्पतालों से मिलती हैं या फिर जो सिर्फ डॉक्टर के पर्चे से मिलती हैं उन्हें लेकर लोगों की इम्यूनिटी नहीं है और वो असर कर रहे हैं.

ऐसे में आम तौर पर मिलने वाले ड्रग्स की समस्या भी बढ़ती है क्योंकि मरीजों पर उनका असर नहीं होता और फिर आम इन्फेक्शन के लिए भी उन्हें हाई डोज की दवाएं देनी होती हैं.

एंटीबायोटिक के आविष्कारक ने भी जताई थी चिंता-

Alexander Fleming जिन्होंने Penicillin का आविष्कार किया था और 1945 में नोबेल पुरुस्कार जीता था उन्होंने अपनी स्पीच में कहा था कि, 'एक ऐसा समय आएगा जब पेनिसिलिन आम दुकानों में मिलेगी और इसे कोई भी खरीद सकेगा. समस्या ये होगी कि इंसान खुद को इसका ओवरडोज या अंडरडोज देगा. ऐसे में जीवाणुओं पर इसका असर होना बंद हो जाएगा.'

1928 में पेनिसिलिन की खोज के बाद ही आम इन्फेक्शन से निजात मिल पाई नहीं तो आम सर्दी-बुखार में भी इंसान की मौत हो जाती थी. चाकू का एक कट भी इंसान की जान लेने के लिए काफी था. उस समय इसका छोटा सा डोज भी इंसान के बड़े इन्फेक्शन को ठीक कर सकता था क्योंकि उस समय इंसान को इसकी आदत नहीं थी.

कैसे इस समस्या को और बड़ा होने से रोका जाए?

WHO ने कई गाइडलाइन जारी की है जिसमें इस समस्या से निपटने के उपाय हैं. इसमें कुछ खास बातें ध्यान रखनी होंगी.

1. WHO के मुताबिक छोटे-छोटे इन्फेक्शन के लिए एंटीबायोटिक लेना बंद करना होगा. गला खराब है, नाक बह रही है, वायरल इन्फेक्शन हुआ है, हल्का बुखार है इनके लिए एंटीबायोटिक न लें. डॉक्टर से संपर्क करें और कुछ और उपाय पूछें.

2. किसी भी बामारी के लिए खुद दवा न लें. चाहें वो सिरदर्द की ही क्यों न हो. अगर आम तौर पर सिरदर्द रहता है तो डॉक्टर से सलाह लें और पूछें कि क्या दवा लेनी सही होगी.

3. भले ही बीमारी सही लग रही हो, लेकिन जितना डॉक्टर ने बताया है उतनी दवा लें. ये भी ध्यान रखें कि परिवार के सदस्य इस तरह की आदत रखें. बुखार तीन दिन में चला गया, लेकिन डॉक्टर ने पांच दिन की दवा लिखी है तो पांच दिन पूरी लें.

4. अगर एंटीबायोटिक बच गई हैं तो उन्हें दोबारा इस्तेमाल न करें. एक बार डोज पूरा होने के बाद दवाओं को फेंक दें.

5. Hygiene से जुड़ी सभी आदतों का ध्यान रखें. बीमार लोगों के पास ज्यादा न जाएं, हाथ धोएं, खाना बनाते समय हाईजीन का ध्यान रखें.

6. अपने डॉक्टर या किसी कैमिस्ट को दवा देने के लिए फोर्स न करें. वो अपने हिसाब से बेहतर दवा देगा.

विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इस तरह ड्रग्स को लेकर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में खतरनाक बीमारियों का इलाज बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसमें ऑर्गेन ट्रांस्प्लांट, कीमोथेरेपी यहां तक की कई छोटी-बड़ी सर्जरी में भी समस्या हो सकती है. ये अगले कुछ सालों में ही हालात बन सकते हैं.

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