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Updated: 02 अक्टूबर, 2021 08:39 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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दुनियाभर के देशों में रंग, नस्ल, जाति, धर्म, अर्थ के नाम पर लोगों से भेदभाव करने की पुरानी परंपरा रही है. शायद ही विश्व में कोई ऐसा देश होगा, जो इस मामले में भेदभाव करने वाली सोच से अछूता रहा हो. बदलते समय के साथ इसमें कई सुधार आए हैं, लेकिन समस्या जस की तस है. वैसे, अब इस भेदभाव वाली लिस्ट में कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) का नाम भी जुड़ गया है. दरअसल, दुनिया के कई बड़े देश कोरोना वैक्सीन लगवा चुके यात्रियों को अपने यहां एंट्री देने से कतरा रहे हैं. और, अगर यात्रा की अनुमति दे भी रहें हैं, तो कड़े क्वारंटीन नियमों का पालन करने को मजबूर किया जा रहा है. जबकि, इन कोरोना वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मान्यता मिल चुकी है. इस प्रतिबंध के खिलाफ अभी तक किसी देश ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की थी. लेकिन, भारत (India) ने इस मामले में ब्रिटेन को करारा जवाब दिया है.

दरअसल, ब्रिटिश सरकार ने अपनी ट्रैवल गाइडलाइंस में कोविशील्ड वैक्सीन को मान्यता नहीं दी थी. जिसके बाद मोदी सरकार (Modi Government) की आपत्ति पर कोविशील्ड वैक्सीन को मंजूरी मिल गई थी. लेकिन, टीकाकरण सर्टिफिकेट में तकनीकी पेंच की बात कहकर ब्रिटिश सरकार ने भारतीय यात्रियों को राहत नहीं दी थी. इसके चलते भारत के वैक्सीनेटेड यात्रियों को भी क्वारंटीन नियमों (Quarantine) का पालन करना पड़ रहा था. भारत की ओर से इसे लेकर ब्रिटेन (Britain) को चेतावनी भी दी गई थी. मामले को लंबे समय तक अटकाये रखने के बाद अब मोदी सरकार ने ब्रिटेन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए ब्रिटिश यात्रियों के लिए क्वारंटीन नियमों के पालन के साथ दो बार कोरोना जांच कराने को अनिवार्य कर दिया है. आसान शब्दों में कहें, तो ब्रिटेन को 'क्वारंटीन' कर भारत ने किस्सा ही खत्म कर दिया है.

दुनिया के कई बड़े देश कोरोना वैक्सीन लगवा चुके यात्रियों को अपने यहां एंट्री देने से कतरा रहे हैं.दुनिया के कई बड़े देश कोरोना वैक्सीन लगवा चुके यात्रियों को अपने यहां एंट्री देने से कतरा रहे हैं.

वैक्सीन को लेकर भेदभाव क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से अब तक सात कोरोना वैक्सीन (Corona) को मान्यता दी जा चुकी है. जिसमें मॉडर्ना, फाइजर/बायोएनटेक, जॉनसन, ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका, कोविशील्ड, सिनोफार्म और सिनोवैक शामिल हैं. इसके बाद भी इन वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके लोगों को अन्य देशों की यात्रा करने के दौरान कड़े क्वारंटीन नियमों को मानने के लिए बाध्य किया जा रहा है. खैर, इस भेदभाव पर आगे चर्चा करेंगे. लेकिन, सवाल उठना जायज है कि ब्रिटेन आखिर कोविशील्ड (Covishield) को लेकर इतना हो-हल्ला क्यों कर रहा है, जबकि कोविशील्ड का फॉर्मूला ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन पर ही आधारित है. उसमें भी ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन ब्रिटेन-स्वीडन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका बना रही है. वहीं, भारत में कोविशील्ड वैक्सीन को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट में बनाया जा रहा है.

इतना ही नहीं, मोदी सरकार की ओर से कोविशील्ड की 50 लाख वैक्सीन डोज ब्रिटेन को दी गई हैं, जिनका इस्तेमाल किया जा चुका है. कहना गलत नही होगा कि ब्रिटेन का यह व्यवहार पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है. अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मान्यता दिये जाने के बावजूद इसी तरह हर देश यात्रियों पर कड़े प्रतिबंध लगाएगा, तो देशों के बीच रिश्ते बिगड़ते चले जाएंगे. रूस के स्पूतनिक वी और भारत के कोवैक्सीन जैसे कोरोना टीकों को अभी भी मान्यता नहीं मिली है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दुनियाभर के अमीर देश विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बनाकर कोरोना वैक्सीन पर इस तरह का भेदभाव लंबे समय से कर रहे हैं.

वैक्सीन पर प्रतिबंध की वजह है 'स्वार्थ'

कोरोना महामारी फैलने के बाद इसे खत्म करने के लिए दुनियाभर के देशों में टीके खोजने की होड़ मची हुई थी. एक-एक कर वैक्सीन बनती गईं और इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मान्यता दी जाने लगी. भारत में भी कोविशील्ड और कोवैक्सीन का निर्माण किया जाने लगा. मोदी सरकार ने टीका अभियान को व्यवस्थित तरीके से शुरू किया. वहीं, अन्य देशों ने वैक्सीन मिलते ही अपने-अपने नागरिकों को पहले रखते हुए टीकाकरण की नीति अपनाई. जबकि इससे उलट भारत ने इस दौरान बड़ी संख्या में कोरोना वैक्सीन की डोज का निर्यात किया. दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनियाभर के गरीब और विकासशील देशों में कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कोवैक्स (COVAX) की स्थापना की थी. कोवैक्स के अंतर्गत अमीर देशों से पैसे लेकर अन्य देशों में वैक्सीन की उपलब्धता को आसान बनाया जाए. हाल ही में भारत ने घोषणा की है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद कोरोना वैक्सीन के बंद किए गए निर्यात को फिर से शुरू किया जाएगा.

कोविड 19 (Covid 19) का कहर अभी थमा नहीं है, जिसे देखते हुए कई देश अभी भी टीकों के निर्यात पर तैयार नहीं हुए हैं. सभी देश आपात स्थिति के लिए अपने पास कोरोना वैक्सीन का पर्याप्त भंडार रखना चाहते हैं. एक देश के तौर पर ये बात सही लगती है. लेकिन, वैश्विक स्तर पर देखा जाए, तो यह ब्रिटेन जैसे देश के लिए बड़ा झटका है, जो अभी तक वैक्सीन के निर्यात के लिए तैयार नहीं हुआ है. कोरोना महामारी की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है. इस स्थिति में कोरोना वैक्सीन का उत्पादन करने वाले बड़े देश फिलहाल नहीं चाहते हैं कि वो अपना पैसा दुनिया के गरीब और विकासशील देशों में टीका पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करें. बताना जरूरी है कि कोवैक्स संगठन के जरिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2021 के अंत तक 2 अरब कोरोना वैक्सीन डोज उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा था. लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर आने की वजह से टीकों का निर्यात बंद हो गया.

भारत द्वारा कोरोना वैक्सीन के निर्यात को मंजूरी देने के बाद अब इन अमीर देशों पर नैतिक तौर पर दबाव बन रहा है कि वो जल्द से जल्द से विश्व स्वास्थ्य संगठन को पैसों के साथ ही बड़ी मात्रा में टीके भी उपलब्ध कराएं. लेकिन, स्वार्थ से भरे ये अमीर देश ऐसा करने से हिचक रहे हैं और भारत पर परोक्ष रूप से दबाव बनाने के लिए ऐसे प्रतिबंध लगाने को मजबूर हो रहे हैं. भारत ने ब्रिटेन पर कड़े प्रतिबंध लगाकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी है. कहना गलत नहीं होगा कि 'वसुधैव कुटुंबकम' की अवधारणा को लेकर चलने वाले भारत ने ब्रिटेन को 'क्वारंटीन' कर किस्सा ही खत्म कर दिया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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