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Updated: 25 मई, 2022 07:20 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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बीते दिनों आम आदमी पार्टी चीफ अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि AAP कट्टर ईमानदार पार्टी है. खैर, इस दावे के इतर पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार के स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला 'शुकराना' मांगने के लिए बर्खास्त कर गिरफ्तार कर लिए गए हैं. कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी ने ईमानदारी की मिसाल पेश की है. लेकिन, चर्चा इस बात की भी होनी चाहिए कि मंत्री पद से लेकर तमाम सुख-सुविधाएं होने के बावजूद आखिर विजय सिंगला अपना काम ईमानदारी के साथ क्यों नहीं कर रहे थे?

दरअसल, आज के समय में खुद को ईमानदार दिखाने का चलन बढ़ा है. विजय सिंगला का मामला इस बात का बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता है कि कई लोगों को जब तक मौका नहीं मिल रहा है, तो वह तभी तक ईमानदार हैं. और, मौका मिलने पर उन्हें विजय सिंगला बनने में कोई परेशानी नहीं होती है. वैसे भी किसी मामले में पकड़े जाने से पहले तक लोग ईमानदार की कैटेगरी में ही आते हैं. लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि सभी लोग बेईमान ही होते हैं. उत्तर प्रदेश की संगम नगरी के एक करोड़पति स्वीपर से ईमानदारी की परिभाषा सीखी जा सकती है. जिसे लोग 'भिखारी' की संज्ञा देते रहते हैं.

Crorepati sweeper Dheeraj AAP Minister Vijay Singlaधीरज एक सफाईकर्मी हैं. लेकिन ईमानदार हैं. विजय सिंगला हेल्थ मिनिस्टर थे. लेकिन ईमानदार नहीं रह सके.

दिमागी रूप से कमजोर, लेकिन ईमानदार

प्रयागराज में स्वास्थ्य विभाग के स्वीपर धीरज को अपने पिता की नौकरी के दौरान मौत के बाद मृतक आश्रित के तौर पर नौकरी मिली थी. धीरज के पिता भी स्वास्थ्य विभाग में स्वीपर के पद पर कार्यरत थे. 2012 में नौकरी पाने के बाद से ही धीरज अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ कर रहे हैं. हालांकि, धीरज को उनके परिवार और साथी कर्मचारी दिमागी रूप से कमजोर बताते हैं. खैर, विजय सिंगला का मामला देखने के बाद आसानी से समझा जा सकता है कि दिमागी कमजोर ही आज के जमाने में ईमानदार क्यों है? धीरज वैसे किसी बड़े पद पर नहीं है कि विजय सिंगला की तरह भ्रष्टाचार कर सकें. लेकिन, देश के सरकारी अस्पतालों में हालात कैसे हैं, ये भी किसी से छिपा नहीं है. बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी ही सरकारी अस्पतालों में भ्रष्टाचार को फैलाने में अपना 'अहम' योगदान देते हैं. लेकिन, धीरज दिमागी रूप से कमजोर होने से इन सब चक्करों से बचा हुआ है.

दिलचस्प है धीरज की कहानी

जिला कुष्ठ रोग विभाग में स्वीपर के पद पर तैनात धीरज की कहानी कैसे सामने आई, इसकी भी दिलचस्प कहानी है. दरअसल, धीरज ने 2012 में नौकरी शुरू करने के बाद से ही अपनी सैलरी बैंक से नहीं निकाली थी. बैंक वाले जब धीरज से पैसों को निकालने की गुजारिश करने पहुंचे. तब पता चला कि धीरज के खाते में 70 लाख रुपये पड़े हैं. इतना ही नहीं, बैंक कर्मचारियों को ये भी पता चला कि धीरज के पास मकान भी है. आजतक में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, धीरज के गंदे कपड़ों को देखकर लोग उसे भिखारी समझते हैं. वह लोगों के पैर छूकर पैसे मांगता है. भिखारी समझ लोग उसे पैसे भी दे देते हैं. और, धीरज का खर्च इसी से चल जाता है. वह पूरी ईमानदारी के साथ सरकार को अपने पैसों पर इनकम टैक्स भी देता है. जबकि, आज के समय में लोग इनकम टैक्स न भरना पड़े, इसके लिए भी तमाम जतन लगाते हैं.

पैसे निकालने से क्यों लगता है डर?

अगर किसी के बैंक अकाउंट में इतनी मोटी रकम मौजूद हो. तो, वह उसे खर्च करने के लिए कार और बार जैसी चीजों की ओर रुख करेगा. लेकिन, धीरज बाबू इस मामले में थोड़े विचित्र हैं. उनको डर रहता है कि उनकी रकम कोई हड़प लेगा. इसलिए वह अकाउंट से पैसे ही नहीं निकालते हैं. घर में अपनी मां और बहन के साथ रहने वाले धीरज का बाहरी खर्चा लोगों से पैसे मांगकर निकल जाता है. और, घर पर होने वाला खर्चा मां की पेंशन से पूरा हो जाता होगा. धीरज की इसी आदत ने आज उसे करोड़पति बना दिया है. वैसे, करोड़पति बनने के लिए ये वाला फॉर्मूला सभी पर लागू नहीं होता है, तो इसे आजमाने की मत सोचिएगा. लेकिन, धीरज से अपने काम के प्रति ईमानदारी का गुण तो सीखा ही जा सकता है.

वैसे, धीरज की ये कहानी सामने आने के बाद उनकी नौकरी पर भी खतरा पैदा हो सकता है. क्योंकि, दिमागी रूप से कमजोर लोग भले ही ईमानदारों की कैटेगरी में आते हों. लेकिन, सरकारी नियमों के हिसाब से ऐसे लोगों को नौकरी पर नहीं रखा जा सकता है. खैर, देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार धीरज को लेकर क्या फैसला लेती है?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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