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Updated: 16 दिसम्बर, 2022 06:12 PM
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चूँकि कहावत विस्मृत हो जाती है कि "जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते", "उनका" गरियाना और हंगामा करना जनता को रास नहीं आता. कुल मिलाकर कहें तो चले थे गोल दागने, गोल खा बैठे या फिर कहें सेल्फ गोल ही हो गया. कल जब लोकतंत्र बुलंद था (विपक्ष के अनुसार) और आज जब लोकतंत्र खतरे में है - समान घटनाक्रम के तारतम्य में जरा वो कर लें जो आजकल खूब किया जाता है, कहने का मतलब फैक्ट चेक कर लें !

बात सितम्बर 2009 की है जब कांग्रेस सत्तासीन थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. मीडिया को हिदायत दी गयी थी कि भारत चीन सीमा पर सैन्य घुसपैठ, मुठभेड़ या गोलाबारी और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आसन्न संघर्ष आदि पर रिपोर्टिंग करने से परहेज करें अन्यथा कार्रवाई की जायेगी, और ऐसा हुआ भी था जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के दो पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का फैसला किया, जिन्होंने एक स्टोरी में दावा किया गया था कि चीनी सैनिकों की गोलीबारी में दो भारतीय सैनिक घायल हो गए हैं.

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गृह मंत्रालय ने कहा था कि 'हमने इस स्टोरी को बहुत गंभीरता से लिया है. हम दोनों पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने के अपने फैसले पर आगे बढ़ रहे हैं और हम जल्द ही एक प्राथमिकी दर्ज करेंगे. उन्होंने अपनी कहानी में कुछ उच्च पदस्थ खुफिया सूत्रों का हवाला दिया है. उन्हें अदालत में पेश होने दें और बताएं कि यह स्रोत कौन है जिसने उन्हें जानकारी दी.'

15 सितंबर को उस समाचार पत्र में लीड के रूप में 'चीन सीमा पर गोलीबारी में घायल आईटीबीपी के दो जवान' कहानी प्रकाशित हुई , जिसका दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों द्वारा आधिकारिक खंडन किया गया था. हालांकि उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया कि दोनों पत्रकारों पर किस अपराध का आरोप लगाया जाएगा, गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि भारतीय कानून अन्य देशों के साथ दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है.

अब बात करें वर्तमान परिदृश्य की. एक हैं कथित स्वतंत्र सैन्य विशेषज्ञ कर्नल अजय शुक्ला. दो दिन पहले ही वे लाइव बात कर रहे थे कथित स्वतंत्र पत्रकार राजदीप सरदेसाई/करण थापर के साथ, लेकिन दोनों का झुकाव किस ओर हैं, सभी समझते हैं. कर्नल शुक्ला ने अन्य पत्रकारों से भी अपनी 'स्वतंत्र' बातें शेयर की और अपने सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि 35 जवान घायल हुए जिनमें से सात को गंभीर चोटें आई जिन्हें गोवाहाटी के सैन्य अस्पताल में पहुंचाया गया, लेकिन चीनी कितने घायल हुए, वे नहीं बताते, इस 'लॉजिक' के साथ कि आप निश्चित रूप से यह नहीं जान सकते कि झड़प में चीनी पक्ष के कितने सैनिक शामिल थे, जो कथित तौर पर अँधेरे में सुबह 3 बजे हुई थी. कोई उनसे पूछे इस संवेदनशील समय में देश की सरकार और सेना के विपरीत बातें वे किस लॉजिक से कर रहे हैं? वैसे जवाब समझना आसान है. समर्पण की भाषा बोलने से दुश्मनी को बढ़ावा जो नहीं मिलेगा! कर्नल शुक्ला के साथ जिन भी पत्रकारों ने बातचीत की, भारत सरकार और सेना की मुखालफत ही निष्कर्ष रहा क्योंकि वे मान जो बैठे हैं कि सरकार और सेना अमूमन ऐसे मौकों पर झूठ ही बोलती है. कुल मिलाकर कर्नल अजय खुलकर घंटों अपने प्रिय पत्रकारों के साथ एक पूर्व नियोजित एजेंडा/फॉर्मेट के तहत कहानियां बना रहे हैं, दावे कर रहे हैं.

ऐसा आज हो रहा है क्योंकि लोकतंत्र खतरे में हैं ! कितना हास्यास्पद है ! सवाल है तत्काल सेना या सरकार के वर्ज़न को कॉन्ट्रडिक्ट क्यों किया जाए? खासकर तब जब दुश्मन देश अलग ही राग अलाप रहा हो ! थोड़ा इन्तजार भी तो हो सकता है जैसा अमूमन अन्य देश ऐसी स्थितियों में करते हैं. और नहीं तो चीन से ही सबक लीजिये जिसने गलवान में हताहत सैनिकों का खुलासा किया ही नहीं, और जो कुछ भी पता चला कालान्तर में ही चला. और फिर वैसे भी भारत की सेना और सरकार दोनों ही कम से कम ह्यूमन डाटा पर तो झूठ नहीं बोलती. गलवान में बीस जवान शहीद हुए, बेहिचक माना और बताया था. ठीक वैसे ही तवांग क्षेत्र में जो हुआ, सो बताया.

सीधी सी बात है चीन की विस्तारवादी दुर्भावना आज की नहीं है. सीमाओं पर कब तनाव नहीं रहा है? आज जब उसके अंदरूनी हालात, मसलन बदतर इकोनॉमी, जीरो कोविड नीति के प्रति लोगों का बढ़ता आक्रोश और अंतराष्ट्रीय फलक पर अलग पड़ जाने की स्थिति आदि बद से बदतर हैं, तो ध्यान बंटाने के लिए सीमाओं पर हलचल पैदा करना उसका पुराना शगल है. लेकिन वह भूल जाता है कि आज का भारत नया भारत है, मुंहतोड़ जवाब हर बार मिलेगा.

दुर्भाग्य देश का है कि इस संवेदनशील स्थिति में भी विपक्षी संयम खो बैठे हैं और साथ ही कुछेक पत्रकार और विशेषज्ञ भी निहित स्वार्थ की सिद्धि के लिए मौका समझ बैठे हैं. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती जब कह बैठती है कि पिछले दिनों G20 की बैठक के दौरान मोदी ने जिन पिंग को ऐसा कुछ नागवार कह दिया कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में घुसपैठ कर दी चीन ने, और आश्चर्य तब होता है जब अन्य कोई भी विपक्षी मुफ़्ती की भर्त्सना नहीं करता. जितने मुँह उतनी ही बातें और सबकी सब अनर्गल और बेसिरपैर की बातें फिर भले ही राष्ट्र का अहित ही क्यों न हो जाए!

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लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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