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Updated: 14 सितम्बर, 2017 08:39 PM
सुशोभित सक्तावत
सुशोभित सक्तावत
  @sushobhit.saktawat
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हिंदी का गौरव हिंदी होने में उतना नहीं है, जितना कि भाषा होने में है. फिर उसमें हिंदी का गौरव कितना है?मैं हिंदी से प्यार नहीं करता! मैं भाषा से प्यार करता हूं! और चूंकि हिंदी भी एक भाषा है, इसलिए उसकी रूपसृष्ट‍ि पर मुग्ध हूं! जो हिंदी को प्यार करते हैं, क्या वे भाषा को भी प्यार करते हैं? और जो भाषा को प्यार नहीं करते, मैं आपको बता दूं कि वो हिंदी को कभी प्यार नहीं कर सकते! एक जातीय गौरव के उपकरण के रूप में हिंदी का दोहन करने वाले वे ही हैं, जो हिंदी की यशस्वी नियति तक से सर्वथा अपरिचित हैं. और हिंदी से अधिक भाषाओं की!

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भाषा मनुष्य का सबसे बड़ा आविष्कार है: आग से भी बड़ा, पहियों से भी बड़ा, कलपुर्ज़ों से भी बड़ा! जिस दिन मनुष्य ने भाषा को आविष्कृत किया, उस दिन यह सृष्ट‍ि वैसी ही नहीं रह गई, जैसी वह उससे पहले हुआ करती थी. एक संधिरेखा खिंच गई. एक नया प्रादुर्भाव हुआ. एक तरफ़ सृष्ट‍ि थी, दूसरी तरफ़ सृष्ट‍ि को व्यक्त करने वाली भाषा थी. उस दिन इंद्र का राजसिंहासन डोल गया होगा!

भाषा का परिष्कार मनुष्य ने काव्य के रूप में किया, वह एक गहरी ऐंद्रिक प्रतीति थी. रूप की तरह, बिम्ब की तरह, रस की तरह, स्पर्श की तरह, गंध और नाद की तरह! भाषा को अपनी रोमावलियों पर मनुष्य ने अनुभव किया, अपने कर्णपटल पर उसकी गूंज को सुना और सुख से कीलित हुआ. यह एक सार्वभौमिक परिघटना थी, इस पर किसी जातीय अस्म‍िता की बपौती नहीं थी.

भाषा मेरा धर्म है, भाषा मेरी नागरिकता है, और चूंकि हिंदी मेरी प्रथम भाषा है, इसलिए वह मेरे होने का हेतु है, किंतु उसका गौरव हिंदी होने में इतना नहीं है, जितना कि भाषा होने में!

हिंदी आभूषण है।

भाषा स्वर्ण है।।

रूप की गढ़न देखकर मूलधातु को ही विस्मृत कर दूं, वैसी कुबुद्ध‍ि मुझमें नहीं!

मैंने संस्कृत के कवियों का सामासिक संयोग देखा है. भाषा कैसे एक रूपविधान होती है, यह मैंने अनुष्टुप छंद में रचित काव्य को देखकर जाना, पढ़ना मुझे कहां आता है देवभाषा! मैंने बांग्ला में रबींद्र संगीत सुना है और सुखभरे कौतूहल से जाना है कि एक भाषा अपनी ध्वनियों के साथ किस तरह एकरूप होती है. विलियम फ़ॉकनर की अंग्रेज़ी मैंने जब तक पढ़ी नहीं थी, मैं नहीं जानता था कि भाषा में इतना सौंदर्य भी हो सकता था. फ़ॉकनर ने काग़ज़ पर लिखे शब्दों को संगीत बना दिया था. छवियों का सन्न‍िधान रच दिया था. मैं जब-तब दिल्लगी में कह देता हूं कि अंग्रेज़ी मेरी मातृभाषा है. तब यारलोग मुझ पर बहुत बिगड़ जाते हैं. वे भूल जाते हैं कि देवकी मां थी तो यशोदा भी तो मां थी!

मैंने बाक़ायदा उर्दू सीखी है (लिखना और बोलना) क्योंकि मैं ग़ालिब को मूल में पढ़ना चाहता था. भाषा का इतना बड़ा जादूगर कोई और नहीं हुआ है, जितना कि ग़ालिब. मैंने स्पैनिश का उच्चारण सीखा है, क्योंकि मैं लोर्का का अनुवादक था. मैंने रूसी सीखने की नाकाम कोशिश की है, क्योंकि मेरे देवता का नाम दोस्तोयेव्स्की था. मैंने "लिटिल लैटिन लेस ग्रीक" कहकर शेक्सपीयर का उपहास किए जाने पर स्वयं अपमान को अनुभव किया है और रोम और यूनान की भाषाओं को बूझने का मनोरथ मन में संजोया है, ताकि मूल में पढ़ सकूं प्ल‍िनी का "नेचरल हिस्ट्री", सोफ़ोक्लीज़ का "ओदीपस". मैंने जर्मन भाषा को तब डाह से देखा है, जब "एंग्लोफ़िल" कहलाने वाले बोर्खेस ने "एंग्लो-सैक्सन पोएट्री" को मूल में पढ़ने के लिए जर्मन सीखी थी, जबकि वह तो इस्पहानी था और अंग्रेज़ों से बड़ा अंग्रेज़ कहलाता था !

मुझे विश्वास है कि बोर्खेस कभी कोई लैटिन दिवस, स्पैनिश दिवस, जर्मन दिवस या अंग्रेज़ी दिवस नहीं मनाता होगा ! मुझे हिंदी से प्यार नहीं है, मुझे भाषा से प्यार है. ठीक वैसे ही जैसे मुझे भारत से प्यार नहीं है, वसुंधरा से प्यार है.

राष्ट्रीयता मुझे आकृष्ट नहीं करती मनुष्यता करती है, संविधान मुझे नहीं आकृष्ट करता, नाट्य आकृष्ट करता है.

कूप का दादुर कौन बने जब पाने को इतना सारा आकाश!

मनुष्यता की समस्त उपलब्धियां मनुष्य की विरासत हैं. मनुष्यता की समस्त भाषाएं. इतनी भाषाओं में से मैंने हिंदी को चुना है, इसलिए नहीं कि वो उस भूमि की भाषा है, जहां एक संयोग के चलते मेरा जन्म हुआ, बल्कि इसलिए कि मैंने अपने होने के छंद को जिस तरह से हिंदी में रच दिया है, वैसा अब किसी और भाषा के साथ कर सकना संभव नहीं है.

किंतु यह हिंदी का यश उतना नहीं है, जितना कि भाषा का है!

विश्व-नागरिकता की यही तो रीति है कि मैं एक गौरवशाली विश्व-नागरिक हूं!

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लेखक

सुशोभित सक्तावत सुशोभित सक्तावत @sushobhit.saktawat

लेखक इंदौर में पत्रकार एवं अनुवादक हैं.

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