New

होम -> समाज

 |  एक अलग नज़रिया  |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 जून, 2021 05:46 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
  • Total Shares

कोरोना की दूसरी (corona curfew) लहर धीरे-धीरे काबू हो रही है. नए केस के मामले कम आ रहे हैं लेकिन अभी भी मौतों का सिलसिला जारी है. कोरोना वायरस जब दूसरी बार पीक पर था तो लोगों पर क्या बीती, यह सबने देखा लेकिन हमारे देश की जनता को शायद भूलने की बीमारी है. तभी तो अभी कोरोना के नए केस कम क्या हुए कि अनलॉक (coronavirus lockdown) की मांग बढ़ने लगी.

यह कोई नई बात नहीं है. जब भी कोई घटना होती है तो खबर ट्रेंड करती है, वायरल होती है. उस घटना पर बहस होती है. बड़े शहरों से लेकर गांव के लोग तक अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. अंत में होता कुछ नहीं, कुछ दिनों में ही लोग उस बात को भूल जाते हैं फिर उनके सामने एक नई खबर दिख जाती है और बहस के लिए एक नया मुद्दा मिल जाता है.

 coronavirus, coronavirus lockdown, lockdown extension states, corona lockdownलॉक डाउन लगने और अनलॉक न होने से किन लोगों को है ज्यादा परेशानी

लोगों को यह बात समझनी होगी कि बाकी मुद्दे एक तरफ हैं और कोरोना महामारी एक तरफ है. यह कोई करप्शन का केश नहीं है जो चार दिन हो हल्ला हो जाने के बाद शांत ठंडे बस्ते में चला जाएगा. यह कोरोना है कोरोना जो जरा सी लापरवाही पर लौट सकता है. हम अगर भूलना भी चाहें तो यह हमें नहीं भूलेगा. यह बातें डराने के लिए नहीं है जबकि सतर्क करने के लिए हैं. जब कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई तो लोगों ने कोसना शुरू कर दिया कि लॉकडाउन क्यों नहीं लगाया जा रहा. लोगों ने सवाल खड़े किए, सही है लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का हक है पर अब वही लोग फिर से अनलॉक के लिए गदर मचाए हुए हैं.

कोरोना के केस में थोड़ी गिरावट क्या आई लोग बाहर निकलने के लिए फड़फड़ाने लगे. ऐसे लोगों को उनसे पूछना चाहिए जिन्होंने अपनों को खोया है. भगवान ना करें अब किसी को ऐसे दिन देखने पड़े. हालांकि एक बड़ा तबका ऐसा भी सामने आया जिसने सरकार के आदेश का इंतजार नहीं किया और स्वघोषित लॉकडाउन मानकर घर से निकलना बंद कर दिया. जो लोग अनलॉक की दुहाई दे रहे हैं असल में इनका आर्थिक स्थिति से कोई सरोकार नहीं है. इन्हें अपनी सुविधा चाहिए बस. कुछ तो ऐसे हैं जो सिर्फ सोशल मीडिया तक की देश की चिंता करते हैं. ऐसे लोगों की सारी समाज सेवा बस इनके सोशल अकाउंट तक ही सीमित है. ना तो ये जमीन से जुड़े हैं और ना ही ये मजदूरों के बीच जाकर उनकी मदद करते हैं. इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कोरोना को मानते ही नहीं हैं.

आपको याद होगा कि पहली लहर के बाद जब अनलॉक हुआ तो किस तरह लापरवाही हुई. शादियों में भीड़, बर्थडे पार्टी, दोस्तों संग पार्टी, फेस्टिवल पर भीड़, गेट टुगेदर, क्लब, सब कुछ शुरू वो भी बिना मास्क के. अगर आज अनलॉक हो जाता है तो आज से ही भीड़ लगनी शुरू हो जाएगी, क्योंकि अपने मन से नियम का पालन हम भला कैसे कर सकते हैं. हम अपनी जिम्मेदारी कैसे निभा सकते हैं. कोरोना हमारी जिम्मेदारी थोड़ी है...जो अनलॉक के लिए बेचैन हैं तो तब भी परेशान थे जब फर्स्ट टाइम लॉकडाउन लगा था. वो दूसरी लहर के टाइम भी तड़प रहे थे जब लॉकडाउन नहीं लगा था. वो अब भी प्रहार कर रहे हैं जब अनलॉक नहीं किया जा रहा. अगल लॉकडाउन खत्म हो गया और लापरवाही की वजह से कोरोना के मामले बढ़ गए तब फिर ये इसलिए परेशान होंगे कि अनलॉक क्यों किया गया. यानी इनका कोई इलाज नहीं हो सकता.

दूसरी लहर में जब कर्फ्यू और लॉकडाउन लगा दिया गया तब जाकर ऐसे लोग माने और घर से बाहर निकलना बंद किया. वरना क्या मजाल जो लोग खुद ही समझ जाएं कि कोरोना काल में घर से बाहर निकलना खतरनाक है. सिर्फ इतना ही नहीं जो कुछ लोग तो ऐसे हैं जो हर रोज मोबाइल, टीवी में सुन रहे थे कि जब तक जरूरी ना हो घर से बाहर ना निकले, लेकिन वो तब तक घूमने जाते रहे जब तक पुलिस ने उनका चलान नहीं काटा. उनके बारे में आप क्या कहेंगे जो लोग जो सिर्फ पुलिस के डर से मास्क लगाते हैं जैसे मास्क कोरोना से नहीं बल्कि पुलिस से बचने के लिए हो.

अनलॉक की इतनी बेचैनी क्यों है भाई, पहले मामला शांत तो हो जाने दो. क्या कोरोना से होने वाली मौतों का दृश्य इतनी जल्दी भूल गए. सब हो जाएगा घूमना, शादी, ब्याह लेकिन जब हम रहेंगे तब. कोरोना ना तो अमीर देखता है ना गरीब और देश में अस्पतालों की व्यवस्था क्या है आप देख ही रहे हो तो कुछ दिन शांत हो जाओ. ऐसा ना हो कि अनलॉक की गड़बड़ी हम सभी पर एक बार फिर भारी पड़ जाए. एक तरफ जब राज्य अनलॉक की तैयारी कर रहें हैं तो वहीं विशेषज्ञों ने इसे भी खतरनाक माना है. विशेषज्ञ अभी ज्यादा ढील देने के पक्ष में नहीं हैं. उनका कहना है कि जल्दबाजी में ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाना चाहिए, जिससे बाद में पछताना पड़े. इसके लिए हम जर्मनी, ब्रिटेन, इटली समेत दुनिया के तमाम देश से सीख ले सकते हैं. जो इस बात के उदाहरण हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए तमाम शोध भी दर्शाते हैं कि लॉकडाउन संक्रमण को बेकाबू होने से रोकने में कितना कारगर है. इसका उदाहरण आप कोरोना की दूसरी लहर से ले सकते हैं, जब लॉकडाउन लगाया गया तब जाकर कोविड के नए केस में कमी आई. पहली लहर के समय समय रहते लॉकडाउन ले लिया गया था तभी तो केस कम आए थे. लोगों की आर्थिक तंगी के समाधान के लिए सरकार को अन्य दूसरे विकल्पों के बारे में सोचना चाहिए. जब तक सब शांत नहीं हो जाता हड़बड़ी ठीक नहीं है. कोरोना के मामले भले ही घटने लगे हों, लेकिन मौतों के आंकड़े में कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा है. अनलॉक की जगह कुछ विशेष मामलों में छूट दी जा सकती है.

बड़ी मुश्किल से लोग अब इन पाबंदियों के आदी हो चले हैं, ऐसे में अनलॉक जैसा कदम नहीं उठाया जाना चाहिए, जिससे बाद में पछताना पड़े. अनलॉक की प्रक्रिया तब शुरू हो सकती है जब कोरोना खत्म होने की कगार पर हो. अभी तो कोरोना से मौत का सिलसिला भी नहीं थमा. अभी तो टीकाकरण भी तेज नहीं हुआ. ऐसे में जो अनलॉक के लिए अपना गला फाड़ रहे हैं फाड़ने दें. अगर केस बढ़े तो फिर ये फिर लॉकडाउन के लिए भी गला फाड़ेंगे.

हमारे देश में वैसे भी ज्यादा दिन तक लॉकडाउन नहीं लगाया जा सकता, ऐसे में टीकाकरण तेजी से शुरू करना करना होगा. जहां केस कम हैं वहां अनलॉक किया भी जा रहा है तो केस बढ़ते ही लॉकडाउन दोबारा लगा देना चाहिए. यह मत भूलिए कि देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई जिसने देश में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को भी प्रभावित कर दिया. ऊपर से कोरोना के बदलते वेरिएंट ने वैसे ही चिंता बढ़ा दी है. तब तक थोड़ा इंतजार करने में ही भलाई है. आपको क्या लगता है इतनी जल्दी अनलॉक करना सही है...चाहे दिल्ली हो या यूपी.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय