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Updated: 04 नवम्बर, 2021 04:40 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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खबर ये है कि साइबर सिटी गुरुग्राम में सड़क पर नमाज पढ़ने (Namaz on Roads) को लेकर चल रहे विरोध-प्रदर्शन के बीच जिला प्रशासन ने 8 जगहों पर दी गई अनुमति को रद्द कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि गुरुग्राम (Gurugram) में अब से किसी भी सार्वजनिक और खुली जगह या सड़क पर नमाज पढ़ने के लिए पहले प्रशासन अनुमति लेनी होगी. इतना ही नहीं, शहर की अन्य जगहों पर जहां खुले में नमाज पढ़ी जा रही है, अगर उस पर आस-पास के लोगों द्वारा आपत्ति जताई जाती है, तो वहां भी अनुमति नहीं दी जाएगी. जिला उपायुक्त ने एक समिति का गठन भी किया है, जो सड़क या सार्वजनिक स्थान पर नमाज (Namaz) अदा करने वाले स्थानों की पहचान करेगी. खैर, इस पूरी प्रक्रिया के बारे में आसान शब्दों में कहा जाए, तो गुरुग्राम में सड़कों (Road) पर नमाज रोकने का फैसला देर से ही सही, लेकिन दुरुस्त लिया गया है.

Namaz on Roadsगुरुग्राम में अब से किसी भी सार्वजनिक और खुली जगह या सड़क पर नमाज पढ़ने के लिए पहले प्रशासन अनुमति लेनी होगी.

सड़कों का निर्माण लोगों और गाड़ियों के चलने के लिए

पूजा करने के लिए मंदिर हैं. इबादत के लिए मस्जिदे हैं. प्रेयर करने के लिए चर्च बने हैं. अरदास लगाने के लिए गुरुद्वारे हैं. हर धर्म के हिसाब से लोगों ने पूजास्थलों का निर्माण किया हुआ है, तो आखिर वो कौन सी जरूरत है, जो लोगों को सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने के लिए मजबूर कर देती है? सड़क के बारे में गूगल कीजिए, तो गड्ढों, जर्जर हालत जैसी तमाम खबरों का बड़ी संख्या में अंबार लगा हुआ है. लेकिन, भारत में चर्चा का विषय बनता है वो है सड़कों पर पढ़ी जाने वाली नमाज. वैसे, दुनियाभर में सड़कों का निर्माण लोगों और गाड़ियों के चलने के लिए किया जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो एक सामान्य सी बुद्धि वाला शख्स भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि सड़क लोगों और गाड़ियों के चलने के लिए होती हैं. नाकि, नमाज पढ़ने के लिए.

वैसे, ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के मौलाना वली रहमानी ने 2019 के अपने एक बयान में कहा था कि शरीयत के हिसाब से खाली जगह पर नमाज अदा की जा सकती है. हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में भी इस मामले पर कई मतभेद हैं. एक हिस्सा इसे सही बताता है और एक गलत. ऐसे तमाम मामलों में शरियत की आड़ लेकर खुद को सही साबित करने की कोशिश की जाने लगती है. जबकि, संविधान के हिसाब से सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर किए जाने वाले इस तरह के अतिक्रमण को किसी भी तर्क के सहारे सही साबित नहीं किया जा सकता है. मुस्लिम समाज के उलेमा ये भी बताते हैं कि पैगंबर मोहम्मद साहब के पास ऐसा ही एक मसला आया था. जिस पर मोहम्मद साहब ने फरमाया था कि मस्जिदें नमाज पढ़ने के लिए ही बनाई गई हैं. मुस्लिम स्कॉलरों का कहना है कि सड़क पर नमाज पढ़ना गलत है.

अधिग्रहीत जगह और अतिक्रमण में फर्क है

ऐसे तमाम मौकों पर सबसे पहले हिंदू धर्म के त्योहारों और उत्सवों पर सवाल उठाया जाने लगता है. कहा जाता है कि नवरात्रों में जागरण से लेकर कांवड़ यात्रा के दौरान भी सड़कों और सार्वजनिक स्थानों को बाधित किया जाता है. इन्हें रोकने के लिए कोई कोशिश क्यों नहीं की जाती है? तो, इसका एक बहुत ही लॉजिकल सा जवाब ये है कि इस्लाम में हर दिन पांच वक्त की नमाज को मुसलमानों का सबसे बड़ा फर्ज बताया गया है. साल के 365 दिनों में प्रतिदिन पांच बार की नमाज और साल में बमुश्किल 18 दिनों के जागरण या कांवड़ यात्रा में कुछ तो फर्क नजर आता ही है. और, अगर हिंदू धर्म की इन परंपराओं पर कोई आवाज उठती है, तो बात लाउडस्पीकर पर होने वाली पांचों वक्त की नमाज तक पहुंच जाती है.

खैर, इस मामले पर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य और पंजाब में मोर्चा के प्रभारी फैसल सिद्दीकी का बहुत साफ मत है. सिद्दीकी के अनुसार, नमाज मस्जिद में पढ़ी जाती है और मस्जिद आपके पैसों से बनी हुई होनी चाहिए. किसी जगह को अधिग्रहीत कर वहां मस्जिद बनाकर नमाज पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन, कहीं पर अतिक्रमण करके नमाज पढ़ना 'मजहब के लिहाज से और मजहब के लिए' भी अच्छी बात नहीं है. फैसल सिद्दीकी का कहना है कि मजहब के अनुसार, नमाज पढ़ने का सबसे सही तरीका ही यही है कि आप आपने पैसों से नियमत: जगह का चुनाव कर वहां मस्जिद का निर्माण कराएं और नमाज पढ़ें. जिसकी इजाजत सभी को संविधान से मिली हुई है.

नमाज चूंकि हर मुसलमान के ऊपर फर्ज है और मस्जिदों में जगह की कमी की मजबूरी चलते वह सड़कों पर नमाज पढ़ने को मजबूर हैं. तो, उन्हें इसके लिए वक्फ बोर्ड से मदद लेनी चाहिए. मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों और उलेमाओं को सरकारों के साथ बातचीत कर जगह दिलवाने के लिए मांग करनी चाहिए. क्योंकि, सड़क रोकना तो इस्लाम के भीतर किसी भी सूरत-ए-हाल में जायज नहीं है. कहना गलत नहीं होगा कि गुरुग्राम में सड़कों पर नमाज रोकने का फैसला देर से ही सही, लेकिन दुरुस्त लिया गया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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