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Updated: 31 जनवरी, 2018 08:31 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
  @girijeshv
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धर्म और सांप्रदायिकता में कोई धागे भर का अंतर नहीं होता, बल्कि ज़मीन आसमान का अंतर होता है. धर्म, विवेक, सत्य, न्याय और संस्कार सिखाता है सांप्रदायिकता मेरा-तेरा, अपना-पराया, बदला और हिंसा सिखाती है. धर्म कहता है सभी से प्रेम करो और सांप्रदायिकता सिर्फ नफरत सिखाती है. सांप्रदायिक व्यक्ति कभी धार्मिक नहीं हो सकता और धार्मिक व्यक्ति कभी सांप्रदायिक नहीं हो सकता.

कासगंज की घटनाओं के बाद सोशल मीडिया पर जो चल रहा है वो सांप्रदायिकता में अंधे लोगों का नफरत का कारोबार है. चंदन गुप्ता की मौत को शहादत बताने, उसकी तुलना अखलाक और पहलू खान से करने में एक बड़ा हिस्सा लगा है. उनकी हर बात में सांप्रदायिकता के कुलक्षण हैं. देशभक्ति के नाम पर राष्ट्रवाद परोसा जा रहा है. कोई भी धर्म परायण और विवेकशील व्यक्ति जानता है कि चंदन गुप्ता और दादरी में धर्मांधों द्वारा मार दिए गए अखलाक में कोई समानता हो ही नहीं सकती. जिन्हें समझ नहीं आता उनके लिए नीचे कुछ बातें लिख रहा हूं-

Kasganj, Violence, chandan gupta, akhlaqअखलाक को मारने वाले ही चंदन के हत्यारे हैं

पहले शुरुआत अखलाक से करते हैं. अखलाक एक सीधा सादा ग्रामीण था, जिसका कभी किसी आपराधिक गतिविधि से कोई वास्ता नहीं रहा. वो जिम्मेदार शख्स था जिसका बेटा देश की सुरक्षा के लिए एयरफोर्स में सेवाएं दे रहा था. परिवार के लोग पूरी विनम्रता और भाईचारे के साथ गांव के लोगों से मिलकर रहते थे. उसकी हत्या घर में सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा मंदिर से किए गए भड़काऊ एलान के बाद हुई थी. अखलाक को घेरकर एक भीड़ ने प्रताड़ित किया, उसे पीट-पीट कर मार डाला. अखलाक पर खानपान का एक मिथ्या आरोप लगाया गया था, जो सही भी साबित होता तो भी उसकी हत्या करने का हक भारत के कानून को भी नहीं था. जाहिर सी बात है अखलाक की छवि एक पीड़ित की बनती है और समाज की संवेदनाएं उसके साथ होना लाजमी हैं.

चंदन का चरित्र जो पुलिस की जांच और अभी तक मौजूद सबूतों के अनुसार सामने आया है वो एक हुड़दंगी युवक का है जो एक उन्मादी भीड़ का हिस्सा था. चंदन के पिता को भी नहीं पता था कि उनका बेटा क्या कर रहा है. और किन संगठनों से जुड़ा है. सभी चैनलों पर तो तस्वीरें मौजूद हैं उनमें वो मोटरसाइकिल पर तीन सवारी बिना हैलमेट नारे लगाता हुआ दिखाई देता है. वो उस भीड़ का हिस्सा है जो मुसलमानों की बस्ती की तरफ पथराव करते और हवा में तमंचे से गोलियां चलाती नज़र आ रही है (चैनलों पर ये भीड़ दिखाई गई).

Kasganj, Violence, chandan gupta, akhlaqचंदन के माता पिता को भी नहीं पता था कि उनका बेटा क्या करता है

चंदन की ये सभी हरकतें किसी भी धर्म में सही नहीं कही जा सकतीं. कोई कानून कोई व्यवस्था अगर इस तरह के आचरण को स्वीकार करती है और इस तरह की उग्र गतिविधियों में शामिल शख्स को प्रोत्साहन देती है. तो वो इस आचरण को बढ़ावा देना ही चाहेगी. अगर कोई ऐसे शख्स को सम्मानित करता है, उसे तसल्ली देता है, तो वो धार्मिक तो नहीं हो सकता. हालांकि चंदन अब इस दुनिया में नहीं है इसलिए उसकी निंदा भी उचित नहीं है.

अगर वो दुनिया में होता तो भी उससे नफरत करना ठीक नहीं है. चंदन और अखलाक को अलग अलग लोगों ने नहीं मारा. अलग अलग तो सांप्रदायिकता दिखाती है. वो अलग अलग करती है और मार डालती है. चंदन अगर सांप्रदायिक हिप्नोटिज्म का शिकार नहीं होता, अगर सांप्रदायिक्ता का मास हिस्टीरिया उसके दिमाग पर कब्जा नहीं कर चुका होता, तो वो कभी नहीं मारा जाता. दादरी के युवकों के दिमाग को इसी सांप्रदायिकता ने न जकड़ा होता तो अखलाक भी कभी नहीं मारा जाता. हत्यारी तो सांप्रदायिकता है. इन लोगों की हत्या के बदले में जो आवाज़ें उठ रही हैं वो भी इसी रोग से ग्रसित है. सांप्रदायिकता उकसाती है और या तो हत्यारा बना देती है या प्राण हर लेती है.

चंदन के साथ घूम रही उन्मादी भीड़ हो या उसे गोली मारने वाले लोग. लेकिन इन्हें सज़ा कोई सांप्रदायिक शक्ति नहीं दे सकती. वो सज़ा भी देगी तो सांप्रदायिकता बढ़ाकर ही देगी. राजधर्म योगी सरकार को निभाना है. योगी सरकार को इतनी त्वरित सज़ा दिलानी चाहिए कि दूसरे लोगों के लिए नज़ीर हो. लेकिन संदेश ऐसा जाना चाहिए कि चंदन के साथ की भीड़ जो करने जा रही थी उसकी हिम्मत भी कोई न कर सके.

सांप्रदायिकता अक्सर ऐसे तत्वों को सिर आंखों पर बैठाती है. वो अखलाक के हत्यारों का भी महिमामंडन कर रही थी. दादरी के अखलाक की हत्या के आरोपियों को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की गई और तो और उन्हें एनटीपीसी में नौकरियां देने की बातें हुईं. मुजफ्फरनगर दंगों में जेल में बंद लोगों को भी बचाने के लिए अपना पराया का विचार रखने वाले सांप्रदायिक लोगों ने भरपूर कोशिश की और ये सब रिकॉर्ड में है.

Kasganj, Violence, chandan gupta, akhlaqधर्म लोगों को तोड़ता नहीं जोड़ता है ये सांप्रदायिकता है

सिर्फ अखलाक नहीं, सिर्फ चंदन नहीं. साप्रदायिक एजेंडा सिद्ध करने में जो जो काम आता है, उसका महिमा मंडन ऐसे ही किया जाता है. राजसमंद में अपनी असफल प्रेम कहानी से पगलाए शंभूलाल को भी नृशंस हत्या करने के बावजूद सांप्रदायिक शक्तियां सिर आंखों पर बैठाए घूम रही थीं. उसने हत्या को लव जिहाद का मुल्म्मा चढ़ाया और लोगों ने रुपयों की बौछार कर दी.

बात सिर्फ अधार्मिक होने और धर्म विरोधी आचरण की होती तो सांप्रदायिकता को माफ भी किया जा सकता है. ये लोगों के प्राण ही नहीं लेती बल्कि देश के प्राणों पर भी हमला करती है. जब देश के दो बड़े समुदाय एक दूसरे से नफरत करने लगेंगे या एक दूसरे को संदेह से देखने लगेंगे तो क्या भारत सुरक्षित रहेगा. विनय कटियार कहते हैं कि एक समुदाय पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता है.

हिटरल ने भी 1 लाख यहूदियों को ही मौत के घाट उतारा था. 15 करोड़ लोगों को मिटाने की बात सोची ही नहीं जा सकती. सबसे बड़ी बात ये कि जब सभी मिलजुल कर रह रहे हैं तो उन्हें भड़काकर उकसाकर क्या हासिल करने की कोशिश हो रही है. क्या ये कोशिश राष्ट्र विरोधी, समाज विरोधी और देश को नुकसान पहुंचाने की साजिश नहीं है.

अखलाक के हत्यारों और चंदन का महिमामंडन करने वालों को भगवान के लिए सृष्टि के कर्ताधर्ता के लिए एक बार सोचना होगा. उन्हें एकबार विचार करना होगा कि जिस रास्ते पर वो भीड़ के साथ निकल पडे हैं वो राम का रास्ता है या हराम का रास्ता. रावण भी अकारण निर्दोष लोगों की हत्या नहीं करता था. कंस ने भी कभी ऐसा नहीं किया, तो फिर ये कौन सा धर्म है? ये धर्म नहीं ये अधर्म है. अपने विवेक को जगाइए. हज़ारों अखलाकों और चंदनों की जान आप बचा लेंगे.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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