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Updated: 08 दिसम्बर, 2020 11:08 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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एक ऐसे समय में जब सोशल मीडिया की बदौलत दो अलग अलग धर्मों यानी हिंदू और मुसलमान के बीच का सौहार्द नफरत की भेंट चढ़ चुका हो, मज़हब को आधार बनाकर दंगे हो रहे हों, टार्गेट किलिंग दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही हो देश में कहीं से भी अगर कोई ऐसी खबर आती है जिसमें हिंदू और मुसलमान के बीच कमज़ोर पड़ चुका रिश्ता मजबूती की तरफ़ लौटता है तो ख़ुशी होती है और वो विश्वास कहीं ज्यादा मजबूत हो जाता है जिसके अनुसार भारत एक सेक्युलर लोकतांत्रिक देश है. ऐसी ही एक दिल को सुकून देने वाली खबर कर्नाटक से आई है जहां पर राजधानी बेंगलुरु में एक मुस्लिम व्यक्ति ने हनुमान मंदिर के लिए अपनी जमीन दान कर दी है. दिलचस्प बात ये है कि जिस जमीन को दान किया गया है उसकी कीमत लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है.

ख़बर अंग्रेजी अखबार डेक्कन हेराल्ड के हवाले से है जिसके अनुसार कार्गो के व्यापार से जुड़े 65 साल के एचएमजी बाशा ने बजरंग बली के मंदिर के लिए अपनी बेशकीमती जमीन दान करके उन लोगों के सामने मिसाल पेश की है जो धर्म के आधार पर एक दूसरे के खून के प्यासे रहते हैं. बाशा का संदेश साफ है कि देश ऐसे ही चलता है. यही एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत की सुंदरता है.

Temple, Karnataka, Hanuman, Bengaluru, Muslim, Land, Donationमंदिर के लिए जमीन दान देने के बाद मुस्लिम व्यक्ति का गांव में लगा पोस्टर

बताया जा रहा है कि बाशा के पास बेंगलुरु में करीब 3 एकड़ जमीन थी और उसी के पास एक प्राचीन हनुमान मंदिर भी मौजूद है. माना जाता है कि तकरीबन 30 सालों से यहां पर हनुमान जी की पूजा अर्चना श्रद्धालुओं द्वारा हो रही है. बाशा जो महसूस हुआ कि जिस हिसाब से लोग मंदिर में दर्शन या फिर पूजा अर्चना करने आ रहे हैं उन्हें अवश्य ही स्पेस या जगह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता होगा. चूंकि पहले ही मंदिर कमेटी मंदिर के पुनर्निर्माण की योजना बना चुकी थी लेकिन सवाल वही जगह का था इसलिए बाशा ने इस नेक काम को करने में पल भर की भी देरी नहीं की और अपनी जमीन दान करके लोगों को ऐसे अच्छे कामों में आगे आने के लिए प्रेरित किया.

मंदिर के लिए अपनी जमीन बाशा ने क्यों दान की? इस सवाल पर उनके अपने तर्क है. बकौल बाशा, इसी दौरान गांव वालों ने मंदिर के पुनर्निमाण की भी योजना बनाई लेकिन उनके पास पर्याप्त जगह नहीं थी। इस बारे में जब मुझे पता चला तो मैंने तीन एकड़ में से 1.5 गुंतास जमीन दान करने का प्रस्ताव दिया.

गौरतलब है ये हनुमान मंदिर और बाशा की ये बेशकीमती जमीन कोई ऐसे वैसे स्थान पर स्थित नहीं है. जहां पर ये जमीन है उसे शहर की महत्वपूर्ण लोकेशन माना जाता है. क्योंकि बेंगलुरु स्थित ओल्ड मद्रास रोड भी इसी जमीन के पास से गुजरती है इसलिए ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि मंदिर और जमीन दोनों ही शहर की पॉश लोकेशन में स्थित है.

ऐसा नहीं है कि मंदिर के लिए जमीन दान करने का फैसला बाशा का अकेले का फैसला था. इस जरूरी काम के लिए उन्हें अपने परिवार का भी पूरा सहयोग मिला. बाशा का मानना है कि उन्होंने जिस विचार के मद्देनजर जमीन डोनेट की उससे उनके घरवाले भी सहमत थे.अपनी इस पहल के बाद बाशा ने चाहे हिंदू हों या फिर मुस्लिम तमाम नफरतियों को बड़ा संदेश देते हुए कहा है कि आज हम हैं, कल हम नहीं रहेंगे. हमारा जीवन अनिश्चितता से भरा है. ऐसे में एक-दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाने से क्या मिलेगा.

मामले में अच्छी बात ये है कि जमीन मिलते ही श्री वीरांजनेयास्वामी देवालय सेवा ट्रस्ट ने मंदिर के पुनर्निमाण के काम को आगे बढ़ा दिया है. माना जा रहा है कि इस पुनर्निर्माण में तकरीबन 1 करोड़ के आस पास का खर्च आएगा. लोग बाशा के इस मानवतावादी स्वभाव को देखकर कितना प्रभावित हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब आस पास के गांववालों ने उस गांव की मेन रोड पर जहां ये मंदिर और जमीन है वहां पोस्टर लगाए हैं जिसमें बाशा के इस अच्छे काम के लिए तारीफों के पुल बांधे गए हैं.

बाशा और उनके जैसे लोग लगातार अच्छा काम कर रहे हैं और समाज से नफरत खत्म करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बात को या कहें कि इस खबर को वो लोग पढ़ेंगे और समझेंगे जिनकी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य धर्म की आड़ में दंगा करना.लोगों को मारना और नफरत फैलाना है. हम सवाल पूछ चुके हैं मगर साथ ही हम ये भी जानते हैं कि ऐसे लोगों का जवाब क्या होगा. मुश्किल ही है कि ये अच्छी ख़बर उन नफरतियों को राहत दे.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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