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Updated: 20 मार्च, 2019 06:53 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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करीना कपूर को हम एक बॉलीवुड अभिनेत्री के रूप में जानते हैं. लेकिन आज वो हमारे समाज की आधुनिक और कामकाजी महिलाओं के एक वर्ग को रीप्रजेंट करती हैं. करीना जब तक शादीशुदा नहीं थीं और मां नहीं बनी थीं, तब तक उनसे कोई उम्मीद नहीं की जाती थी, लेकिन शादी के बाद मां बनते ही लोग करीना कपूर खान को वो ज्ञान दे रहे हैं जैसा घर की बहुओं को दिया जाता है.

उन्हें बताया जा रहा है कि अब वो मां है तो उन्हें बच्चे पर ध्यान देना चाहिए. काम को कम घर को ज्यादा समय देना चाहिए. अब वो 'आंटी' हैं तो टीनेजर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए. बोलने वाले तो यहां तक बोल रहे हैं कि 'सैफ अली खान करीना के पति हैं फिर भी पत्नी के ऊपर उनका कोई कंट्रोल ही नहीं है' 'शर्म आनी चाहिए सैफ को अपनी बीवी को बिकनी पहनने देता है.'

यानी हमारे समाज के एक वर्ग ने कामकाजी महिलाओं के लिए भी कुछ नियम कायदे निर्धारित कर रखे हैं जो समय समय पर उन्हें बता दिए जाते हैं. और जिनकी जद में करीना भी आ चुकी हैं. अरबाज खान के चैट शो पर करीना कपूर आई थीं. इस शो में अरबाज खान ने वो सारे सोशल मीडिया कमेंट्स उन्हें पढ़कर सुनाए जिसमें करीना कपूर को ज्ञान दिया गया था. इन सभी कमेंट्स को सुनकर करीना कपूर हैरान थीं. लेकिन जो जवाब उन्होंने दिए वो बेहद प्रभावशाली थे.

करीना कपूर वो महिला हैं जो अपनी प्रेगनेंसी के वक्त भी काम करती रहीं. और उन्हें इस बात पर गर्व है कि वो रुकी नहीं. बच्चा होने के बाद वो जल्द से जल्द अपनी पुरानी फॉर्म में वापस आईं और काम दोबारा शुरू किया. वो बहुत सी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं लेकिन अब लोग उन्हें बता रहे हैं कि वो अच्छी मां नहीं हैं. क्योंकि मां होकर भी बच्चे के साथ पूरा समय नहीं बितातीं, बच्चा नैनी संभालती है. सैफ बच्चे को ज्यादा खिलाते हैं, करीना नहीं.

kareena kapoor saif aliइस बात से भी परेशानी है कि सैफ हमेशा तैमूर को गोदी क्यों लेते हैं, करीना नहीं

हर कामकाजी महिला को हमारा समाज ये बता ही देता है कि उसकी असली जगह घर में है, और उसका असली धर्म घर और बच्चे संभालना ही है. बाकी महिलाओं में इस बात का पछतावा अगरहोता है कि वो बच्चों को समय नहीं दे पा रहीं तो उसके पीछे समाज की यही सोच है जो उन्हें गिल्ट में जीने को मजबूर करती है. जबकि बच्चों को बढ़ा करना सिर्फ मां नहीं पिता का भी काम है. लेकिन महिलाओं से उम्मीद यही की जाती है कि वो मां बनते ही नौकरी छोड़कर फुल टाइम मां बनकर ही आगे का जीवन बिताएं. और जो ऐसा करती हैं वही आदर्श माएं भी कहलाती हैं.

इस बारे में करीना बड़े फख्र से कहती हैं कि 'जब एक बच्चा अपनी मां को काम पर जाते देखता है तो वो बहुत सी बातें सीखता है. वो काम की कद्र करता है, उसे समय की कीमत समझ आती है, पैसे की कद्र करना सीखता है.'

सुनिए क्या कहती हैं करीना-

पति का पत्नी पर कंट्रोल कितना जरूरी??

आज कल के समय में सबसे बड़ी समस्या तो उन पतियों की होती है जिनके विचार रूढिवादी नहीं हैं, जो महिलाओं को बराबर का मान-सम्मान देते हैं, भेदभाव नहीं करते. पत्नियों पर रोक-टोक नहीं लगाते, उन्हें बंधनों में नहीं बांधते. समाज उन पतियों को भी बोलने से नहीं चूकता. क्योंकि ये लोग नए जमाने के पति हैं और वो नहीं करते जो समाज में अब तक होता आया है. जबकि पत्नियों पर तो पतियों का पूरा अधिकार होना चाहिए और पत्नियों को पतियों के हिसाब से ही चलना चाहिए.

सैफ को लोग कोस रहे हैं क्योंकि वो करीना को बिकनी पहनने से नहीं रोकते. इसपर करीना कहती हैं कि 'सैफ कौन होते हैं मुझे बिकनी पहनने से रोकने वाले. हम दोनों एक बहुत ही जिम्मेदार रिश्ता निभाते हैं, वो मुझे किसी बात के लिए नहीं टोकते क्योंकि उन्हें विश्वास है कि जो मैं कर रही हूं वो गलत नहीं है, और किसी वजह से ही है.'

kareena in bikiniलोग सैफ को कहते हैं कि शर्म आनी चाहिए जो पत्नी को बिकनी पहनने से भी नहीं रोकता

कुछ इसी तरह की मानसिकता कुछ ही दिन पहले सामने आई थी जब सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह को आनंद ग्रोवर की पत्नी कह दिया था. इसपर इंदिरा जयसिंह ने एतराज़ जताया था और कहा था कि- 'मेरी अपनी निजी हैसियत है, मैं किसी की पत्नी नहीं हूं.' इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि 'हम दोनों वकील के रूप में पहचाने जाते हैं. हमारी पहचान सिर्फ़ किसी के पति या पत्नी के रूप में नहीं है. हम दोनों अपने आप में अलग शख़्सियत हैं इसलिए हमने शादी के बाद भी अपना नाम नहीं बदलना तय किया.'

इंदिर जयसिंह जैसी प्रगतिशील महिला को भी समाज किसी की पत्नी कहता है जबकि वो खुद एक शख्सियत हैं. और ऐसा नहीं कि ये लोग रूढिवादी हैं या पढ़े लिखे नहीं हैं. करीना कपूर के मामले में तो आप भले ही सोशल मीडिया यूजर्स को पहचान नहीं सकते कि वो कितने पढ़े लिखे हैं, लेकिन इंदिरा जय सिंह के मामले में टिप्पणी करने वाले अटार्नी जनरल थे. इसलिए फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि समाज की मानसिकता कितनी प्रोग्रेसिव है. पढ़-लिखकर समाज ये तो बता देता है कि वो इतना पढ़ गया, लेकिन उसकी मानसिकता ये बता देती है कि उसकी सोच कितनी पिछड़ी है. और अगर पढ़ने से सोच नहीं बदल रही तो लानत है ऐसी पढ़ाई पर.

रही बात मां बनने के बाद नौकरी छोड़ने और घर व बच्चे संभालने की तो अब समाज को समझ लेना चाहिए कि बच्चे और घर संभालना अब तक भले ही महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता था. लेकिन आज के प्रोग्रेसिव पति-पत्नी बराबरी से काम बांट रहे हैं. लोगों के लिए प्रेरणा हैं वो पुरुष भी जो हर तरह से महिलाओं का साथ दे रहे हैं. आज अगर महिलाएं हर काम करने का माद्दा रखती हैं, तो पुरुषों को भी कुछ काम अपने हाथों में ले लेने चाहिए. उन्हें भी ये बताना चाहिए कि वो ये भी कर सकते हैं. नहीं तो कल महिलाएं हर जगह नजर आएंगी और पुरुषों को खुद को साबित करना पड़ेगा.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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