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Updated: 10 जून, 2018 10:58 AM
ऋचा साकल्ले
ऋचा साकल्ले
  @richa.sakalley
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हां ऐसे देश के लिए कौन मरना पसंद नहीं करेगा... नहीं गलत समझ रहे हैं आप... मैं हिंदुस्तान की बात नहीं कर रही... मैं एशिया के ही एक देश की बात कर रही हूं. कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर छाई एक घटना ने सबका दिल जीत लिया है... ये एक जबरदस्त संवेदनशील कहानी है.  

संवेदनशीलता को, जिम्मेदारी को परिभाषित करती ये कहानी है हमारे दोस्त देश जापान की...जापान की सरकार की. एक राज्य, एक देश से एक नागरिक होने के नाते आपकी क्या अपेक्षा हो सकती है...राज्य आपसे हर बात का टैक्स वसूलता है तो जाहिर सी बात है आप यही चाहेंगे कि बदले में वो आपका सम्मान करे, आपको सुरक्षा दे, आपकी बुनियादी जरुरतों को पूरा करे, आपकी हर तरह से मदद करे. जापान की जिस घटना की मैं बात कर रही हूं उसे जानने के बाद आप समझ जाएंगे कि गुड गर्वनेंस क्या होता है, नागरिकों का सम्मान क्या होता है, लड़कियों के सम्मान, सुरक्षा और शिक्षा के सही मायने क्या हैं. इस घटना को जानने के बाद आप समझ जाएंगे कि हिंदुस्तान और जापान में वो आधारभूत अंतर क्या है कि उस देश का हर नागरिक अपने देश पर मर मिटने को हमेशा तैयार रहता है.  

ये घटना है जापान के नॉर्थ आइलैंड होकाइदो के एक छोटे से गांव कामी शिराताकी की. कहने को ये गांव जरुर है लेकिन बुनियादी सुविधाएं यहां हर तरह की हैं. शहर से गांव को जोड़े रखने के लिए यहां एक रेलवे स्टेशन भी है. लेकिन 3 साल पहले सरकार ने इस गांव में रुक रही एकमात्र ट्रेन को बंद करने का फैसला ले लिया था. बाकायदा इसका नोटिस भी जारी कर दिया गया था. वजह थी कि रेलवे यहां नुकसान में थी. इस गांव की जनसंख्या कम है और गांव से ट्रेन में नाम मात्र की सवारियां चढ़ती हैं. लेकिन जब लोकल रेलवे के अधिकारियों को पता चला कि कामी शिराताकी से एक लड़की रोज ट्रेन पकड़कर स्कूल जाती है और अगर ट्रेन बंद कर दी गई तो लड़की स्कूल नहीं जा पाएगी. मामला आगे वरिष्ठों तक पहुंचा, तब यहां की जागरुक संवेदनशील सरकार ने ट्रेन बंद करने के अपने फैसले को टाल दिया. सरकार ने आदेश दिया कि जब तक ये लड़की हाईस्कूल पास नहीं कर लेती यहां ट्रेन चलती रहेगी. तब से यानि पिछले तीन साल से लगातार महज इस लड़की के लिए कामी शिराताकी के स्टेशन पर ट्रेन रोज बस दो बार रुकती है एक बार सुबह इस लड़की को स्कूल जाने के लिए और दूसरी बार शाम को उसे स्कूल से छोड़ने के लिए. ट्रेन के टाइमिंग भी लड़की के स्कूल के टाइमिंग के हिसाब से एडजस्ट कर दिए गए. इस साल मार्च में जब इस लड़की का हाईस्कूल पूरा हो जाएगा तो इस गांव में ट्रेन रुकना बंद हो जाएगी.  

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                                                         सिर्फ एक छात्रा के लिए चल रही है ट्रेन

सोचिए जरा उस एक लड़की की शिक्षा को पूरा करने के लिए सरकार ने अपने नुकसान को नजरअंदाज कर दिया..क्यों...क्योंकि जापान अपनी सोच से भी विकसित है...जापान दूर की सोचता है...जापान अपने भविष्य को सुरक्षित करना जानता है. जापान को पता है कि बच्चे देश का आने वाला कल होते हैं अगर आज देश या स्टेट उनके विकास के लिए इंवेस्टमेंट करेगा तो वही बच्चा युवा बनकर देश के लिए भी इंवेस्ट करेगा. देश के बारे में सोचेगा. 

हिंदुस्तान में तो हजारों बच्चे ऊबड़-खाबड़ रास्ते पार करके, जान जोखिम में डालके, नदी में तैरते हुए, टूटे पुल पर तार से लटकते हुए स्कूल जाते हैं. मध्यप्रदेश, बिहार और यूपी से अक्सर ये खबरें आती हैं लेकिन किसे चिंता है, कौन तिनका भर भी जवाबदारी महसूस करता है. इंटीरियर इलाकों में, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आज भी स्कूल तक नहीं हैं. अगर स्कूल हैं भी तो लड़के लड़कियों में इतना भेदभाव है कि लड़कियों को स्कूल भेजा ही नहीं जाता. लड़कियों के लिए चल रही छुटपुट योजनाओं के डर से कहीं कहीं तो बस लड़कियों का स्कूल में एनरॉलमेंट हो जाता है लेकिन वो बच्चियां कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देख पातीं उनके भाई तो स्कूल जाते हैं, मां बाप काम पर निकल जाते हैं और वो छोटी बच्चियां घर संभालती हैं और अपने नन्हे-मुन्ने भाई-बहनों का ध्यान रखती हैं.  

अब अगर इस घटना को स्त्री सम्मान से भी जोड़कर देखें तो कहां गलत है. अपने गांव की उस लड़की की शिक्षा के लिए सरकार ने जो जिम्मेदारी का भाव दिखाया तो वो क्या उसका सम्मान नहीं कहलाएगा. जी हां क्योंकि जापान जानता है कि सम्मान का मतलब लड़की को देवी बनाकर महिमामंडन कर देना नहीं होता है. स्त्री हो या पुरुष जापान में सब बराबर हैं सब इंसान हैं सब देश के नागरिक हैं और वहां ये बातें बार-बार कही नहीं जाती हैं कि हम स्त्री का सम्मान करते हैं वहां जो होता है वो बता देता है कि वहां स्त्रियों के लिए क्या सोच है.  

हमारे देश में आलम क्या है कौन नहीं जानता. हमारे यहां स्त्री सम्मान और शिक्षा सिर्फ बातों में हैं, योजनाओं में है वर्ना शायद ही कन्या भ्रूण हत्या, लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, बलात्कार हमारा सच होता. हमारे देश में कई ऐसे राज्य हैं जहां अच्छी समृद्धि है और साक्षरता दर का प्रतिशत भी ज्यादा है पता चला वहां ही लड़के लड़कियों के अनुपात में अंतर है. क्योंकि साक्षरता भले ही बढ़ गई हो लेकिन जागरुकता का तो टोटा है. ये वही बात है कि आप क्वालीफाई तो हो गए लेकिन एजुकेटेड होने में आप पता नहीं कितने युग लेंगे. 

दरअसल ये पूरी लड़ाई मानसिकता की है एक विशेष माइंडसेट की है. जब तक हमारे देश में जेंडर अवेयरनेस कार्यक्रम बड़े स्तर पर एक सतत आंदोलन की तरह नहीं किए जाएंगे लड़का-लड़की में अंतर का भाव जो सदियों से पैंठ बनाए हुए है आसानी से जाएगा नहीं. हमारे देश की सामूहिक सोच को बदलने के लिए देश के हर नागरिक को व्यक्तिगत सोच का विकास करना होगा. आज से अभी से हमें अपने घरों में बच्चों में अंतर करना बंद करना होगा. तभी हम अपने दंशों से दागों से छुटकारा पा सकते हैं और प्रगतिशीलता की राह पर आगे बढ़ सकते हैं.   

लेखक

ऋचा साकल्ले ऋचा साकल्ले @richa.sakalley

लेेखिका टीवीटुडे में प्रोड्यूसर हैं.

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