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Updated: 20 नवम्बर, 2016 10:40 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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19 नवंबर को पूरे दिन सोशल मीडिया पर #World Toilet Day चलता रहा. चूंकि बात स्वच्छता से जुड़ी है तो इस दिन का महत्वपूर्ण होना ज़रूरी भी था. पर स्वच्छता ने इस कदर ट्रेंड किया कि International Men’s Day को धो डाला.

महिला दिवस vs पुरुष दिवस- 

8 मार्च यानी महिला दिवस किसी उत्सव से कम नहीं लगता. ये महिलाओं का वो दिन है जब उन्हें स्पेशल फील कराया जाता है, उन्हें बताया जाता है कि वो बहुत खूबसूरत हैं, महिलाओं को उनकी शक्ति याद दिलाने का ये दिन भारत समेत पूरी दुनिया में बहुत जोर शो से मनाया जाता है. और इस दिन हर पुरुष मन ही मन यही सोचता है कि यार..मेन्स डे भी होना चाहिए!! लेकिन 90% पुरुषों को उनका ये खास दिन पता ही नहीं है (ये सिर्फ अनुमान है, ज्यादा भी हो सकता है). 19 नवंबर International Men’s Day के रूप में मनाया जाता है. पर अगर इस डे के बारे में उन्हें नहीं पता तो इसमें हैरानी की क्या बात है. बीवी की बर्थडे और अपनी शादी की सालगिरह तक भूल जाने वाले पुरुषों से और उम्मीद भी क्या हो सकती है.

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महिलाओं से Men’s Day के बारे में बात करें तो लगभग हर महिला यही कहती है कि 'साल का हर दिन Men’s Day ही होता है, फिर उन्हें Men’s Day की क्या जरूरत.' इस बात पर एक जोरदार ठहाका लगता है और बात वहीं खत्म हो जाती है. महिलाओं की इस सोच से भले ही कई लोग सहमत हों, लेकिन उससे ये बात कहीं सिद्ध नहीं होती कि पुरुषों को उनके खास दिन की ज़रूरत नहीं.

क्यो ज़रूरी है Men’s Day- 

'पुरुष प्रधान समाज' या पैट्रीआर्की जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके हमारे देश में पुरुषों को काफी कोसा जाता है. रूढ़ीवादी और दकियानूसी सोच सिर्फ पुरुषों की नहीं होती, महिलाओं की भागीदारी भी बराबर की है. हम जेंडर इक्वेलिटी की बात करते हैं पर क्यों भूल जाते हैं कि पुरुषों से जुड़े मामले और उनकी परेशानियां भी उतनी ही गंभीर होती हैं. सिर्फ महिलाएं नहीं हैं जो हमेशा प्रताड़ित होती या की जाती हैं, ऐसे पुरुषों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन प्रताड़ित वो भी कम नहीं किए जाते, मेंटली भी, फिजीकली भी और सैक्सुअली भी. सिर्फ महिलाएं ही नहीं हैं जो घर और रिश्ते निभाने की जिम्मेदारी उठाती हैं. घर चलाने और घरवालों को खुश रखने के लिए पुरुष भी उतनी ही मेहनत करते हैं. एडजस्टमेंट अगर महिलाएं करती हैं तो पुरुष भी जिम्मेदारी के नाम पर अपनी इच्छाओं को अकसर मार दिया करते हैं. महिलाएं फिर भी रो गाकर अपनी कह लेती हैं, ‘Real men don't cry’ कहकर ये अधिकार भी उनसे छीन लिया गया है. दर्द का अहसास उन्हें भी बराबर होता है. तो अगर बात बराबरी है, तो जिस तरह महिलाओं को ये समाज उनके खास दिन पर स्पेशल बताता है, प्रेरित करने वाले मैसेज भेजकर उनके हौसले बढ़ाता है, तो पुरुषों को भी वैसे ही हौसले और स्नेह की जरूरत है.

ये जानना भी ज़रूरी

1. सेव इंडिया फैमिली फाउंडेशन के अनुसार भारत में आत्महत्या के मामलों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से दुगनी है. NCRB के आंकड़े भी यही बताते हैं कि शादीशुदा महिलाओं की तुलना में शादीशुदा पुरुष ज्यादा आत्महत्या करते हैं. सच्चाई ये भी है कि शादीशुदा महिला द्वारा आत्महत्या किए जाने पर बिना किसी जांच पड़ताल के तुरंत पति और उसके घरवालों को हिरासत में ले लिया जाता है, जबकि पुरुष भले ही सुसाइड नोट में लिख दे कि सुसाइड की वजह पत्नी है, फिर भी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता.

2. आईपीसी की धारा-497 के तहत जो व्यक्ति अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य विवाहित महिला से शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे सजा मिलती है लेकिन अवैध संबंधों के लिए महिला को सजा नहीं दी जाती.

3. घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना के खिलाफ बनाए कानून का फायदा जितना महिलाओं को मिला उससे कहीं ज्यादा फायदा महिलाओं ने इसका दुरुपयोग करके उठाया है. पत्नियों द्दारा प्रताड़ित किए गए पुरुषों के कई संघ बन रहे हैं. और इनकी बढ़ती हुई संख्या ही इस बात का सुबूत है

4. NCRB के आंकड़े भी बताते हैं कि अपहरण, जबरन शादी और यौन शोषण के मामलों में प्रताड़ित पुरुषों की संख्या भी कम नहीं है.

तो भले ही ये पुरुष इंपॉर्टेंट डेट्स भूल जाते हों लेकिन अपनी जिंदगी में हमें इनकी इंपॉर्टेंस हमेशा याद रखनी चाहिए. #ShowMenSomeLove #MenAreHumanToo !!

 

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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