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Updated: 24 जुलाई, 2015 12:46 PM
श्रीमई पियू कुंडू
श्रीमई पियू कुंडू
  @sreemoyee.kundu
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एक माना हुआ सच है कि 30 की उम्र के आसपास महिलाओं को शादीशुदा पुरुषों की ओर से कम से कम एक बार यौन प्रस्ताव मिलते हैं. हो सकता है कि पुरुष अपनी नीरस जिंदगी से तंग आकर ऐसा करते होंगे या फिर अपनी दबी हुई सेक्सुअल इच्छा के कारण. युवा महिलाओं के प्रति आकर्षण के कारण भी ऐसा होता होगा. लेकिन सच यही है कि ऐसा होता है.

जब से मैंने एश्ले मैडिसन वेबसाइट हैक होने के बारे में सुना है. मैं अचंभे में हूं. यह एक डेटिंग वेबसाइट है. कई जोड़े एक-दूसरे को धोखा देते हुए इस साइट से जुड़े हैं. हैक करने वालों ने धमकी दी है कि अगर यह पोर्टल बंद नहीं होता तो वे इस साइट के सदस्यों की निजी जानकारी को सार्वजनिक कर देंगे. हैरानी वाली बात यह है कि 2.75 लाख भारतीय भी इस वेबसाइट के सदस्य हैं और शायद इसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है. ऐसे में उन महिलाओं की नग्न तस्वीरें, कामोत्तेजक चीजें, सही नाम और क्रेडिट कार्ड से जुड़ी जानकारी सामने आती है, तो कई 'सविता भाभी' के बारे में खुलासा हो जाएगा.

अमेरिका के जर्नल ऑफ मैरिटल एंड फैमिली थेरेपी की ओर से 2013 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार 41 फीसदी लोगों ने माना है कि शादी के बाद शारीरिक या मानसिक तौर पर वे अपनी साथी के प्रति वफादार नहीं रहे. मुझे आश्चर्य होता है कि एक देश जहां शादियों में पवित्रता की बात कही जाती है, औरतों पर नैतिकता का बड़ा बोझ डाला जाता है, वहां इस बारे में कैसे खुलासे देखने को मिल सकते हैं.

पिछले साल एश्ले मैडिसन के एक सर्वे से हैरान करने वाले आंकड़े मिले. दरअसल, भारत में 76 फीसदी महिलाएं और 61 फीसदी पुरुष बेवफाई किए जाने को अब पाप नहीं मानते. यह सर्वे 75,321 लोगों पर किया गया. दस शहरों से लिए गए इस सैंपल में 80 फीसदी शादीशुदा हैं. इस सर्वे के मुताबिक 81 फीसदी पुरुषों और 68 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि विवाहेतर संबंधों का उनकी शादी पर अच्छा असर पड़ा. इनमें 80 फीसदी लोगों ने अरेंजड मैरेज किया था. जिन लोगों को सर्वे के लिए चुना गया उसमें पुरुषों की औसत आयु 45 जबकि औरतों की 31 साल थी.

लगभग उसी समय, पिछले साल फरवरी में जब यह डेटिंग वेबसाइट 'Life is short. Have an affair' के स्लोगन के साथ शुरू हुई, तो कई शादीशुदा भारतीय महिलाओं ने इसकी ओर से रूख किया. पहले ही दिन दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र से 50,000 भारतीय महिलाओं ने इस वेबसाइट पर साइन इन किया. दिलचस्प यह रहा कि वेबसाइट पर आए कुल साइन-अप में से महिलाओं की संख्या आधे से ज्यादा रही.

एश्ले मैडिसन के संस्थापक और सीईओ नोएल बाइडरमैन ने इस बेवफाई के बारे में कुछ सहज प्रवृत्ति के बारे में खुलासा किया है. नोएल के अनुसार, वैवाहिक संबंधों में पहला झटका पहले बच्चे के बाद लगता है. आपसे कोई कहता है कि आप इस दुनिया में सबसे अच्छे हैं और वह पूरी जिंदगी आपके साथ बिताना चाहता है या चाहती है. लेकिन सच यह है कि वह अब आपकी ओर देखना तो क्या आपको छूना और आपसे बात भी नहीं करता चाहता/चाहती. लेकिन आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं. आपके पास एक घर है, बच्चे हैं. इसलिए आप बंध जाते हैं. आप इस रिश्ते को छोड़ आगे नहीं जाना चाहते क्योंकि वहां दरअसल इच्छा की कमी हो जाती है.

लोग केवल यह सोच कर डेटिंग वेबसाइट पर चले जाते हैं कि वे वहां किसी गुमनाम के तौर पर रहेंगे. वे उस इच्छा को दोबारा जीना चाहते हैं. इसलिए कई बार आप पाएंगे कि महिलाएं फेसबुक पर अपने पुराने प्रेमी से उस आकर्षण को हासिल करने की कोशिश करती हैं. हमारे समाज में किस करना भी एक टैबू है. यौन शिक्षा ठीक से दी नहीं जाती, एक से ज्यादा विवाह गैरकानूनी है, स्वच्छंद संभोग अच्छा नहीं माना जाता और भारतीय जोड़ियां सेक्सुअल तौर पर एक-दूसरे से काफी अजनबी व्यवहार करती हैं. लेकिन अब शायद हमारी महिलाएं इस बंधन से बाहर आ रही हैं. सेक्स को लेकर वह ज्यादा प्रयोग करने लगी हैं. जैसे युवा लड़कों के प्रति आकर्षित होना, बाइसेक्सुअलिटी और अन्य प्रयोगों को आजमाना आदि. आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होने की स्थिति में अब महिलाएं इन विषयों पर खुल कर सामने आ रही हैं.

आज की भारतीय महिलाएं अब केवल बेडरूम या किचन की शोपीस बन कर नहीं रह गईं हैं. वह खुले तौर पर अंतरंग पलों की मांग करती है और पुरुषों के समान अपने कामुक व्यवहार का प्रदर्शन करती है. पहले की तरह पैसे देकर सेक्स करने या साइबर सेक्स के बाद का अपराध-बोध उनमें कम हो रहा है. पूराने देसी टाइप वाले 'लाज लज्जा' शब्दावली से बाहर आकर चीजों को अपनाया जा रहा है. अब आप किसे चाहते हैं, कब चाहते हैं और किसके साथ चाहते हैं...वाली स्वतंत्रता पर बातें हो रही हैं.

प्राइम टाइम पर हमारे यहां प्रसारित होने वाले ज्यादातर सीरियलों में भी विवाहेतर संबंधों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है. कई बार पत्नी द्वारा इसे खुले तौर पर स्वीकार भी किया जाता है. इस ट्रेंड को यह बात भी उकसाने में ज्यादा मदद कर रही है कि आज की कामकाजी महिलाएं अब पहले से ज्यादा ट्रैवल करती हैं, देर रात तक ऑफिस में काम करती हैं, पुरुषों से ज्यादा व्यक्तिगत बातें करती हैं.

नीदरलैंड्स की टिलबर्ग यूनिवर्सिटी के 2011 के एक अध्ययन के अनुसार आर्थिक मजबूती और सामाजिक सुरक्षा स्त्री या पुरुष को बेवफाई के लिए साहस देने का काम करते हैं. जिस आजादी का पुरुष लंबे समय से आनंद उठा रहे थे, महिलाएं भी अब उसी का फायदा उठा रही हैं. इससे वे उस पुरानी भ्रांति और कथित सामाजिक बंधनों को भी तोड़ रही हैं, जिसके अनुसार केवल मर्द ही अपनी पत्नी से धोखेबाजी कर सकते हैं. तो क्या पूरी जिंदगी एक साथी के साथ गुजारना केवल एक मिथक है? क्या अरेंज मैरेज केवल एक बंधन है जो समाज की ओर से जबरन डाला जाता है?

इंग्लैंड में 2012 में हुए एक एडल्टरी सर्वे में यह बात सामने आई कि महिलाएं प्यार की खोज के लिए अपने साथी से बेवफाई करती हैं. वहीं, पुरुष इसके उलट सेक्सुअल उत्तेजना, शादी से परेशान और अधेड़ उम्र में अपनी इगो के कारण दूसरी औरतों से संबंध बनाते हैं.

भारत में अगर महिला स्वेच्छा से किसी अवैध रिश्ते में है तो भी कानून की नजर में उसे पीड़िता की तरह ही पेश किया जाता है. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 के तहत पुरुष को ही किसी शादीशुदा महिला से संबंध के लिए सजा दी जाती है. ऐसे मामलों में अगर महिला का व्यवहार उकसाने वाला है तो भी उसे सजा नहीं दी जा सकती.

क्या महिलाएं हैं बेहतर 'धोखेबाज'?

क्या महिलाएं या पुरुष अगल-अगल तरीकों से अपने जीवनसाथी को धोखा देते हैं? क्या शहरी भारत में शादी से इतर अफेयर एक-दूसरे को भावनात्मक और सेक्सुअल स्पेस देने का एक नया ट्रेंड बन गया है? क्या अपने साथी से धोखेबाजी करने को कभी आगे आधुनिकता की निशानी मानी जाएगी? क्या महिलाओं के मुकाबले पुरुष अब भी ज्यादा धोखेबाज साबित होते हैं? क्या IPC में महिलाओं को भी ऐसे मामलों में सजा देने की व्यवस्था की जानी चाहिए?

क्या महिलाओं की कथित लक्ष्मण रेखा अब उन्हें सेक्स पराधीनता में रखने के लिए काफी नहीं है? क्या सेक्स के मामले में उसका खुलापन एक नए सेक्स क्रांति की ओर इशारा कर रहा है? क्या यह संस्कृतिक मूल्यों में आ रहे बदलाव की ओर एक इशारा है?

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लेखक

श्रीमई पियू कुंडू श्रीमई पियू कुंडू @sreemoyee.kundu

लेखिका पूर्व लाइफ स्टाइल एडिटर और उपन्यासकार हैं.

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