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Updated: 10 नवम्बर, 2015 06:39 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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भारत में मैगी के प्रति लोगों की भक्ति देखकर चीन समझ गया था कि भारत में कोई भी सस्ता प्रोडक्ट आसानी से बेचा जा सकता है. ये दो मिनट में बनने वाली मैगी चाइना की ही देन है. नूडल हमारे देश का प्रोडक्ट नहीं. नेस्ले इसे भारत में लाया और लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया. भारत की पसंद को देखकर चाइना को अपने प्रोडक्ट्स के लिए एक नया बाजार दिखाई दिया. और आज भारत के बाजारों में वो इतनी दखल रखता है कि कुछ क्षेत्रों में तो इसने कब्जा किया हुआ है.

इंस्टेंट नूडल हों, इलेक्ट्रॉनिक्स हो या फिर मोबाइल बाजार, हर जगह चाइनीज माल मिलेगा. ये सस्ता है और किफायती भी, पर सभी जानते हैं कि चाइनीज़ माल सस्ता तो है पर टिकाऊ नहीं. इसकी कोई गारंटी नहीं है फिर भी चाइनीज माल की कीमत इतनी कम हैं कि लोग सब जानते हुए भी इसे हाथों हाथ खरीदते हैं.

दीवाली भी इससे अछूती नहीं रही, देश के सबसे बड़े त्योहार पर भी चाइना काबिज है. लाइटें, सजावट का सामान, पूजा की थाली, कंडील, मोमबत्तियां, पटाखों के साथ-साथ लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियां भी चाइना से आ रही है. लोग कुम्हारों के हाथों से बने दीये छोड़कर चाइनीज़ दीये और लाइटें खरीद रहे हैं. दीये बनाने वाले कुम्हारों की मानें तो पिछले 5 साल की तुलना में हाथ से बने दीयों की बिक्री 50 प्रतिशत तक गिर गई है.

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                                   पहले घर घर में हाथों से बनाये जाते थे कंडील, अब चाइना से आ रहे हैं

पर चीन के मार्केट में ऐसा क्या है कि सबसे सस्ता बिकने वाला दीया भी चाइना की मार झेल रहा है. दीवाली जैसे त्योहार में शायद एक दीये की कीमत ही सबसे कम होती है. लेकिन आज दीये बनाने वाले भी चाइना के बाजार से प्रभावित हैं. इन्हें देखकर मन में अफसोस तो ज़रूर होता है लेकिन बाजार का यही नियम है. ग्राहक अपनी जेब के हिसाब से खरीदारी करता है, जहां सस्ता मिलेगा वो वहीं से खरीदेगा, फिर चाहे वो 'चीन' हो या 'मीन'.

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                                                             पटाखे भी चाइनीज

आज जमाना बदल गया है, टेक्नोलॉजी बदल रही है जिसका इस्तेमाल करके जटिल चीजों को भी आसान बनाया जा रहा है. चीजें आसान हैं, इसीलिए मेन्यूफैक्चरिंग भी बढ़ रही है. और उत्पादन ज्यादा है तो कीमतें भी मुनासिब. चाइना के पास दिमाग है, टेक्नोलॉजी है. वो भारत की ज़रूरत का हर सामान सस्ते में मुहैया करा रहा है. और हम वही खरीद भी रहे हैं. उससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हाथ से बनाया है या फिर फैक्ट्री में. ग्राहक के लिए वो ही सबसे अच्छा है जो उसके बजट में आता है. और निसंदेह चाइना के सारे प्रोडक्ट ऐसे ही हैं. 'सोने से कम नहीं और खो जाए तो गम नहीं'.

लेकिन इस पर भी मुनाफा कमा रहा है चाइना. आज मोदी जी 'मेक इन इंडिया' का मंत्र ज़रूर पढ़ रहे हैं, लेकिन इस मंत्र से कल्याण कब होगा ये नहीं बताया. क्या मोदी जी को बाजार की ये स्थिति नहीं दिखती. टेक्नॉलाजी का इस्तेमाल अगर छोटे उद्योगों में भी किया जाये तो भारत के लघु उद्योग और भी ज्यादा उत्पादन कर मुनाफा कमा सकते हैं. हमारे कुम्हारों को अगर चाक के साथ साथ टेक्नोलॉजी भी मुहैया कराई जाये तो वो भी हर दीवाली खुशी से मना सकते हैं. 'Say no to China' कहने से कुछ नहीं होता, क्या चाइनीज़ प्रोडक्ट की बिक्री पर रोक लगा सकते हैं मोदी जी? नहीं, तो फिर इसके लिए उन्हें छोटे स्तर से शुरुआत करनी होगी, छोटे उद्योगों पर ध्यान देना होगा, जिससे कम से कम हमारे त्योहारों को तो चाइनीज मार्केट हाइजैक न कर सके. सरकार ध्यान रखे कि चाउमीन के ठेले भारत में कितने भी हो जायें, लेकिन गरीब का पेट सिर्फ रोटी ही भरती है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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