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Updated: 09 अक्टूबर, 2018 07:40 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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MeToo अब सच में आंदोलन बनता दिखने लगा है. पहले जहां इक्का-दुक्का मामले ही सुनाई दे रहे थे, वहीं अब हर तरफ महलाएं खुद पर हुए शोषण के खिलाफ बोलती नजर आ रही हैं. और जिस हिसाब से लोगों के नाम सामने आ रहे हैं यूं लग रहा है जैसे ये दुनिया कितनी बुरी है.

हालांकि इसपर भी बोलने वालों की कमी नहीं कि महिलाएं अब क्यों बोल रही हैं, तब ही क्यों नहीं बोलीं जब ये सब हुआ था. पर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए ये वजह मायने ही नहीं रखती कि अगर ये सब सच होता तो समय पर बताया गया होता. क्योंकि जो एक महिला ने भोगा है वो जितना कल सच था आने वाले समय में भी उतनी ही सच रहेगा.  

फ्लोरा के घावों को झुठला नहीं सकते

तनुश्री के मामले में उन्हें कोई भी गलत ठहरा सकता है, क्योंकि उनके साथ जो कुछ हुआ वो किसी ने नहीं देखा था, घाव तनुश्री के मन पर लगे थे. वो अपने गुस्से के जरिए अपना दर्द महसूस तो करवा सकती हैं लेकिन घाव दिखा नहीं सकतीं. और नतीजा ये हुआ कि अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के बदले खुद उनपर ही कंप्लेंट फाइल की गई. लेकिन क्या इस अभिनेत्री के साथ भी वही सुलूक किया जाना चाहिए जो तनुश्री के साथ किया गया है? ये फ्लोरा सैनी हैं जिन्हें आपने हाल ही में आई फिल्म स्त्री में देखा होगा. फ्लोरा ने प्रोड्यूसर गौरांग दोषी पर आरोप लगाए हैं.

flora sainiफ्लोरा को इतना मारा गया कि उनका जबड़ा टूट गया

फेसबुक पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा है-

"ये मैं हूं 2007 वैलेंटाइन डे पर मुझे प्रोड्यूसर गौरांग दोषी द्वारा पीटा गया था, जिनसे मैं प्यार करती थी और उन्हें डेट कर रही थी. एक साल तक झेले गए शोषण में ये आखिरी था जिसमें मेरा जबड़ा टूट गया और जीवन भर के लिए मुझे घाव मिला. गौरांग ने मुझे धमकी भी दी कि वो इस बात का ध्यान रखेगा कि फिल्म इंडस्ट्री में मुझे काम न मिले. और उसने ऐसा किया भी. मुझे फिल्मों से रिप्लेस कर दिया गया. लोग न तो मुझसे मिलना चाहते थे और न ही मेरा ऑडिशन लेना चाहते थे."

फ्लोरा कहती हैं कि उन्होंने तब ये सब इसलिए नहीं कहा क्योंकि तब वो इंडस्ट्री में नई थीं और गौरांग काफी पॉवरफुल थे. और ऐसे में कोई भी कल की आई लड़की की बात पर यकीन नहीं करता. और इसी बात का उलाहना देकर गौरांग ने फ्लोरा की हिम्मत को और तोड़ दिया.

फ्लोरा की कहानी को एक खराब प्रेम कहानी कह सकते हैं लेकिन उनपर किए गए शरीरिक शोषण को झुठलाया नहीं जा सकता. जिसकी गवाही ये तस्वीरें दे रही हैं. गौरांग सच में दोषी हैं.

यह रही फ्लोरा की पूरी पोस्ट-

सालों तक चुप्पी क्यों, का जवाब यहां है

विनता नंदा 19 साल के बाद आलोकनाथ पर रेप करने का आरोप लगा रही हैं. फ्लोरा भी 11 साल बाद बोलीं. और अब तो ऐसी तमाम महिलाओं की फेहरिस्त है जो अपने साथ हुए गलत व्यवहार के खिलाफ बोल रही हैं. लेकिन मैं अब भी हैरान हूं उन लोगों की चुप्पियों पर जो इतनी आवाजों में भी खामोश हैं. बहुत हिम्मत लगती है एक महिला को ये बताने में कि किसी ने उसके साथ गलत किया. और जानते हैं, हमारा समाज ही इसके लिए जिम्मेदार है. समाज ने महिलाओं को हमेशा पर्दे में रखा, घर की इज्जत को महिलाओं से ही जोड़ा गया. उसे बताया गया कि सह लेना पर जुबान न खोलना, नहीं तो इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. हर रोज घरों में पिटने वाली महिलाएं जब अपने घाव छिपाती हैं तो उसका मकसद पति और घर की इज्जत बचाना ही होता है. महिलाएं घरों से तो निकलीं लेकिन उन्हें जो सिखाया गया वो उनके दिलों में बसा रह गया. वो चुप रहीं, क्योंकि उनकी और उनके परिवार की इज्जत उनके चुप रहने में ही थी.

डर इस बात का भी होता है कि चूंकि वो लड़की हैं तो उनकी बात पर यकीन नहीं किया जाएगा. लड़कियों के साथ कुछ बुरा होता है तो जिम्मेदार उन्हें ही ठहराया जाता है. पलड़ा पुरुषों का ही भारी रहता है. सोचिए किसी महिला के साथ रेप होता है तो क्या समाज लड़की के आधुनिक होने और उसके कपड़ों को जिम्मेदार नहीं  मानता?

metooसमाज महिलाओं को ही दोष देता आया है

आप ये भी कह सकते हैं कि लड़कियां अपना करियर बचाने के लिए चुप रह जाती हैं. मैं इसे भी गलत नहीं कहूंगी, क्योंकि वो भी उतनी ही मेहनत करके बाहर नौकरी करने आई हैं जितनी कि एक लड़का करता है. मगर लड़कियों के मामले में संघर्ष थोड़े ज्यादा होते हैं. (10 से 20 साल पहले का वक्त ऐसा ही था) तो ऐसे में अगर वो अपनी नौकरी और करियर बचाना चाहती थीं, तो इसमें गलत क्या है. और फ्लोरा के मामले में तो ये साबित भी हुआ, जब उन्हें किसी ने काम नहीं दिया. लेकिन देर से बताने का ये मतलब कतई नहीं है कि कुछ गलत नहीं हुआ था. विनता नंदा ने भी एक अखबार को इंटरव्यू के दौरान ये सबकुछ बताया था, लेकिन तब ये मामला आगे ही नहीं बढ़ा.

मी टू का मतलब खुद के लिए खड़ा होना है

फ्लोरा के मामले में लोगों को ये भी कहते सुन रही हूं कि वो गौरांग की गर्लफ्रेंड थीं, और एक रिलेशनशिप में इस तरह की बात हो सकती है, इसलिए ये मीटू का हिस्सा नहीं है. लेकिन गर्लफ्रेंड होने का मतलब ये तो नहीं कि फ्लोरा उनकी जागीर हैं तो उनके साथ कैसा भी व्यवहार कर लो, गुस्से में इतना पीटो कि जबड़ा तक तोड़ दो. जो था वो गलत था जिसके लिए अगर 11 साल के बाद आवाज उठाई गई है तो वो हर लिहाज से मीटू का हिस्सा है.

metooखुद के लिए खड़े होने में बहुत हिम्मत लगती है

आज उन लड़कियों की हिम्मत को सलाम जिन्होंने खुद को मजबूत बना लिया है, जिन्हें अब ये समझ आ गया है कि वो असल में अपनी इज्जत नहीं बल्कि शोषण करने वालों की इज्जत बचा रही थीं. वो आज बोल रही हैं, कि ये मलाल न रह जाए कि खुद के लिए आवाज नहीं उठाई. वो आज बोल रही हैं क्योंकि उनको सुना जा रहा है. और ये सबक है पुरुषों के लिए कि महिलाओं के साथ जिस तरह का व्यवहार वो अब तक करते आ रहे थे वो उनके लिए नॉर्मल इसलिए था क्योंकि उसके परिणामों का डर पुरुषों को नहीं था. लेकिन आज #MeToo ने पुरुषों को ही सबसे ज्यादा डरा दिया है क्योंकि अब उनकी इज्जत उतर रही है.  

खुशी है कि ये अभियान सिर्फ बॉलीवुड तक सीमित नहीं रह गया है. हर क्षेत्र से महिलाएं बोल रही हैं. इस क्रांति को सोशल मीडिया की सबसे बड़ी उपलब्धि कहना गलत नहीं होगा. लेकिन #MeToo अभी तक सिर्फ सोशल मीडिया और न्यूज़ तक ही सीमित है, इसे अभी और सशक्त होना है. और इस आंदोलन की सफलता तभी है जब इससे हमारी सरकार जुड़े, हमारा कानून जुड़े. अभी तो आवाज उठाने का दौर है...आवाज उठाइए क्योंकि अब शोषण करने वाले पुरुषों के डरने की बारी है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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