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Updated: 26 जनवरी, 2016 07:12 PM
आईचौक
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मेरी नजर में राष्ट्रीयता एक गलत और विरोधाभास पैदा करने वाली अवधारणा है. यह लोगों में केवल हिंसा और हमारे चारो ओर एक चिंतित परिवेश गढ़ देती है. यह लोगों में अलगाव की भावना पैदा करती है.

असल में हर देश अपने हिसाब से महत्वपूर्ण है. फिर हम किस तर्क से यह कहने लगते हैं कि हमारा देश ही सबसे महान है या फिर अच्छा है. आप किसी पाकिस्तानी से पूछो या फिर किसी भारतीय से, दोनों कहेंगे कि उनका देश ही सबसे अच्छा है. मेरे विचार में दोनों गलत हैं क्योंकि दोनों की सोच में केवल कल्पना भरी हुई है. वे जो सोच रहे हैं वह सच नहीं है.

किसी भी राष्ट्र की पहचान का आधार उसकी सीमारेखा होती है. अब सीमारेखा क्या है? सीमारेखा वह लाइन है जो किसी क्षेत्र के बंटवारे का निर्धारण करती है. अब जो चीज बांटती हो उसे आप महान कैसे बता सकते हैं?

इस कथित 'देशभक्ति' के अलावा भी दुनिया में कई विवाद मौजूद हैं जो नफरत को बढ़ाने का काम करते हैं. असल में आदर्श रूप में देखें तो राष्ट्र को एक प्रशासनिक इकाई के तौर पर देखा जाना चाहिए. कानून के पालन, गवर्नेंस और जनहित के कामों के विकास के लिए राष्ट्र की मौजूदगी जरूरी है. लेकिन इससे आगे इसका कोई और मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए. हम समय-समय पर जिस कट्टर राष्ट्रवाद को दर्शाते हैं और राष्ट्र को 'मदरलैंड' या 'फादरलैंड' की संज्ञा देने लगते हैं, उससे बचना चाहिए. लोगों को अपनी सोच और बड़ी करने की जरूरत है.

शायद, पहले के जमाने में इसकी जरूरत रही होगी जब एक बाहरी व्यक्ति दूसरे के लिए खतरा बना जाता था. फिर खुद को बचाने की लड़ाई चलती थी. लेकिन क्या अब भी यह जरूरी है? जानवरों में भी अपना कोई विशेष क्षेत्र बना लेने या कब्जा करने की प्रवृत्ति होती है. कुत्ते बिजली के किसी खंभे तक को या बाघ किसी शीशम के पेड़ को अपने क्षेत्र के तौर पर अंकित कर लेता हैं. मुझे लगता है कि हम इंसानो को अपनी सोच विकसित करनी चाहिए और नियंत्रण की इस लड़ाई से खुद को दूर करना चाहिए.

यह बात सही है कि हम जहां जन्म लेते हैं या लंबे समय से रह रहे होते हैं, उसके लिए हमारे दिल में एक विशेष लगाव हो जाता है. लेकिन यह केवल एक आदत और उस जगह से खास परिचय की बात है. अगर कोई उस जगह को छोड़ कर कहीं और जाता है तो यह एक अतीत की याद बन कर रह जाता है. इस अहसास को या कहें कि इस लगाव को उस हद तक जमीन से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. आप किसी एक व्यक्ति को उसके घर से कुछ किलोमीटर दूर या फिर कुछ सौ किलोमीटर दूर ही क्यों न ले जाएं. इसके बावजूद उसके दूर जाने का संदर्भ उसके 'जन्म स्थान' से ही जुड़ा रहेगा.

उदाहरण के लिए, कोई बॉर्डर पर रहता है और उसके दो सबसे करीबी पड़ोसी सीमा के दोनों और 100 मीटर की दूरी पर रहते हैं. अब इससे हम क्या छवि अपने दिमाग में गढ़ते हैं. यही न कि जो सीमा के इस पार है वह उसका 'भाई' है और जो उस पार है वह कोई अजनबी? अब भला कोडाइकनाल में जन्मा कोई व्यक्ति अरुणाचल प्रदेश के किसी जमीन के टुकड़े के लिए लगाव क्यों महसूस करेगा? अमृतसर का कोई व्यक्ति भला तीन बीघा कॉरिडोर को लेकर क्यूं चिंतित होगा. पूरे भारत में कश्मीर को लेकर जो हमारे अंदर अहसास जगते हैं कि यह हमारा है, वह क्या है. वैसे लोग, जो इसके विभाजन से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हो रहे वे इस पर हाय-तौबा क्यों मचाते हैं?

बचपन से हमारे दिमाग में यह बात भर दी जाती है कि राष्ट्र सबसे ऊपर है. फिर हमें यह भी बताया जाता है कि राष्ट्र को मां की तरह मानना चाहिए. वह ऐसी देवी है जिसके चरणों में हमें खुद को समर्पित करना चाहिए. हमें यह प्रतिज्ञा दिलाई जाती है कि जरूरत पड़ने पर हम उसकी रक्षा के लिए अपनी जान भी दांव पर लगा देंगे. लेकिन उसी राष्ट्र के अंदर रहते हुए हम झूठ बोलते हैं, धोखेबाजी करते हैं, मर्डर करते हैं. दूसरे की कमजोरी का फायदा उठाते हैं. हम ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते, एंबुलेस को पास नहीं दते, हर जगह अपनी रसूख का इस्तेमाल करते हुए लाइन तोड़ते हैं, टैक्स नहीं देते और अपनी छोटी सी जिंदगी में न जाने और कितने ऐसे काम करते रहते हैं. लेकिन जब किसी बाहर के देश को लेकर बात होती है तो हम कहने लगते हैं कि वह हममें से नहीं है. कभी-कभी तो हम उसे अपना दुश्मन मान लेते हैं.

अब समय आ गया है कि लोग उस पारंपरिक सोच और सीख से आगे बढ़ें. लोगों को समझने की जरूरत है कि राष्ट्र या राज्य एक प्रशासनिक इकाई भर है. ठीक वैसे ही जैसे दूसरे राज्य, क्षेत्र, जिले, तहसील या ग्राम पंचायत हैं. अपनी शक्ति या बाहुबल से झगड़ो को खत्म करने की कोशिश क्या जानवरों जैसी प्रवृत्ति नहीं है. मेरे हिसाब से हम अपने राष्ट्र को अगर प्रशासनिक रूप से देखने की कोशिश करें और नियमों का पालन करें तो सही मायने में राष्ट्रीयता का मतलब सामने आ सकेगा. दूसरे शब्दों में, हम राष्ट्र को लेकर इमोशनल होने की प्रवृत्ति से बचेंगे तभी यह संभव है.

मैं एक भारतीय हूं लेकिन किसी अमेरिकी या टोगो के व्यक्ति से अच्छा या खराब नहीं हूं. राष्ट्र के लिए मेरा जो कर्तव्य है उसे मैं जरूर करूंगा लेकिन यह नहीं कहूंगा कि विश्व में मेरा देश ही सबसे अच्छा है. ऐसी सोच से मुझे लगता है कि मैं ज्यादा आजाद रहूंगा. अगर मुझे लगता है कि मेरा देश कुछ गलत कर रहा है तो मुझ में साहस होगा कि मैं खड़ा होकर इसकी आलोचना करूं. अगर वह सही है तो मैं अपनी खुशी भी जाहिर करूंगा.

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