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Updated: 13 अक्टूबर, 2018 06:32 PM
प्रवीण शेखर
प्रवीण शेखर
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13 साल पहले भारत ने अपने नागरिक को सशक्त करने वाला सबसे महत्वपूर्ण सूचना का अधिकार कानून आरटीआई (RTI Act) 2005 में अपनाया था. देश के इतिहास में इस कानून ने कई अहम घोटालों को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई. लोगों को मनवांछित सूचना तय समय में पाने के काबिल बनाया. लेकिन, 13 साल बाद आरटीआई (RTI Act) के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैकिंग में भारत को झटका लगा है.

हाल ही में इंटरनेशनल राइट टू नो डे को सूचना के अधिकार कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने वाले 123 देशों की सूची जारी हुई जिसमें 128 अंकों के साथ इसमें भारत को छठा स्थान मिला. देश की रैकिंग नीचे गिरकर अब छठे नंबर पर पहुंच गई है, जबकि पिछले साल भारत पांचवे नंबर पर था.

ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने भारत में 12 अक्टूबर 2018 को आरटीआई डे के मौके पर जारी रिपोर्ट में भारत की अंतरराष्ट्रीय रैकिंग गिरने का जिक्र किया है.

RTIदेश की रैकिंग नीचे गिरकर अब छठे नंबर पर पहुंच गई है, जबकि पिछले साल भारत पांचवे नंबर पर था

चिंता की विषय ये है कि जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला है, उनमें ज्यादातर देश भारत के बाद इस कानून को अपनाया है. विश्व स्तरीय पर राइट टू नो के तहत जारी रैकिंग में भारत से कहीं छोटा अफगानिस्तान जैसा देश पहले स्थान पर है. अफगानिस्तान ने कुल 150 में से 139 प्वाइंट के साथ मैक्सिको को पीछे छोड़ नंबर 1 का खिताब हासिल किया है. ज्ञात हो कि भारत ने आरटीआई कानून 2005 में बनाया था, वहीं अफगानिस्तान ने नौ साल बाद यानी 2014 में इस पर अमल किया. बावजूद इसके कानून की खामियों और क्रियान्वयन में लापरवाहियों के चलते भारत को अफगानिस्तान से पीछे छूटना पड़ा.

भारत की रैंकिंग में गिरावट बना एक राजनितिक मुद्दा

भारत का पांचवे से छठे स्थान पर आना एक राजनितिक मुद्दा बन गया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून को कमजोर करने के प्रयास का आरोप लगाया और कहा कि उनकी पार्टी इसका पुरजोर विरोध करेगी. राहुल गांधी ने कहा- ‘यूपीए सरकार के समय आरटीआई पारदर्शिता का पर्यायवाची थी जिसने भ्रष्टों के दिल में दहशत पैदा कर दी थी. अब ऐसा नहीं हो रहा है.’ कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया, ‘प्रधानमंत्री मोदी आरटीआई कानून को कमजोर करने की कोशिश में हैं जिसका लोग सड़कों पर उतरकर विरोध कर रहे हैं.

क्यों गिरी भारत की रैंकिंग-

भारत की रैंकिंग क्यों गिरी, इसे जानने किए लिए थोड़ा इन आंकड़ों पर ध्यान देना होगा-

दूसरी अपील और शिकायतें- 2005-16 के दौरान कुल 18,47,374 दूसरी अपील और शिकायतों का निपटारा किया गया.

कुल आरटीआई आवेदन-  2005-16 के दौरान 2.525 करोड़ आरटीआई आवेदन आए अव्वल- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और राजस्थान

आयोगों की वेबसाइटें-

- लोगों की आसानी के लिए 29 में से केवल 8 राज्य ही अपनी वेबसाइट में स्थानीय भाषा का इस्तेमाल करते हैं.

- 29 में से 11 राज्यों में ऑनलाइन अपील की सुविधा.

- 29 में से 14 राज्य मामलों की स्थिति अपडेट करते हैं जबकि 8 मामले के निपटारे और लंबित की सूचना देते हैं.

- केवल हरियाणा और मणिपुर ही अपने सूचना आयुक्तों की संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करते हैं.

रिक्त पद-

- 29 में से केवल 12 राज्यों के पास मुख्य चुनाव आयुक्तों और सूचना आयुक्तों के पद पूरी तरह भरे हैं.

- केंद्र और राज्य स्तर पर 156 में से 48 (30.8 प्रतिशत) सूचना आयुक्तों के पद रिक्त हैं.

- आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और नगालैंड में कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं है.

जाहिर है, भारत में सूचना न देने पर 2005-2016 के बीच 18 लाख से ज्यादा लोगों को सूचना आयोगों का दरवाजा खटखटाना पड़ा. इससे पता चलता है कि देश में सूचनाएं छिपाईं जातीं हैं. इसके अलावा भारत में सीबीआई सहित कई संस्थाएं आरटीआई के दायरे में अभी भी नहीं है. वहीं गोपनीयता और निजता का हवाला देकर उन सूचनाएं को बाहर आने से रोका जाता है, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा या व्यक्ति की निजता कतई भंग नहीं होती. इसके लिए आरटीआई कानून को कुछ उपबंधों को अफसर ढाल बनाते हैं.

आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरटीआई अर्जियां गांवों से पहुंचीं. डेटा से खुलासा हुआ कि ज्यादातर अर्जियां आम आदमी ने डालीं न कि आरटीआई कार्यकर्ताओं ने. बिना मतलब की अर्जियों की संख्या महज दो प्रतिशत ही रही. बावजूद इसके जिम्मेदारों ने सूचना देने में उदासीनता दिखाई.

आगे का रास्ता

आरटीआई कानून लागू होने के 13 साल बाद भी देश में शक्तिशाली पद पर बैठे लोगों का माइंडसेट बदलना होगा जो सूचना देने की जगह पर्देदारी करने में यकीन रखते हैं.

राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के चलते आरटीआई एक्ट का ठीक से पालन नहीं हो रहा है. इसको सशक्त बनाने के लिए राजनितिक पार्टियां और नागरिकों को सरकार पर बराबर दवाब बनाये रखना होगा.

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लेखक

प्रवीण शेखर प्रवीण शेखर @praveen.shekhar.37

लेखक इंडिया ग्रुप में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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