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Updated: 06 मार्च, 2021 04:01 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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कुछ ही दिनों बाद यानी 8 मार्च को लोग महिला दिवस (women's day 2021) की बधाई देने लगेंगे. महिला उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें की जाएंगी. महिला दिवस के नाम पर मार्केटिंग कंपनियां अपना ब्रांड वैल्यू बढ़ाएंगी और जेबे भरेंगी. हर उस प्रोडक्ट के प्रचार को महिलाओं से जोड़ा जाएगा जिससे उनका कुछ लेना-देना नहीं है.

बात तो यह है कि महिला दिवस मनाने से होगा क्या? एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बातें चल रही होंगी और तरफ किसी महिला के साथ अपराध किया जा रहा होगा. हर रोज महिलाओं के साथ हो रहे हिंसा के बीच क्या मन करेगा इस दिन को सेलिब्रेट करने का. जब हमारे परिवार में कोई दुखी होता है तो क्या हम खुश रह सकते हैं. इसी तरह जब दूसरी महिलाओं के साथ इतनी शर्मनाक घटनाएं हो रही हैं तो कैसे कोई महिला दिवस की शुभकामनाएं स्वीकार करे, और क्यों?

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खासकर ऐसे लोग जो दुनिया के सामने महिलाओं के मुद्दे पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. महिलाओं की भलाई की दुहाई देते हैं लेकिन असल जिंदगी में उनको लगता है कि महिलाएं उनके सामने कुछ हैं ही नहीं. घर के पुरुष दुनिया भर की महिलाओं के बारे में तो अच्छा सोचते हैं और बोलते हैं लेकिन अपनी घर की महिला पर उनका ध्यान ही नहीं जाता. पूरी जिंदगी एक महिला घर को संभालने में लगा देती है और एक दिन उससे पूछा जाता है कि तुमने किया ही क्या है? पैसे तो मैंने कमाए हैं तो फैसला भी मैं ही लूंगा. जब एख बच्चा अच्छा काम करता है तो पिता खुद पर गर्व करता है और उसी बच्चे की गलती पर मां को ब्लेम किया जाता है. हां आप इस गलतफहमी में मत रहिए कि ऐसा करने वाले बस पुरुष ही हैं. महिलाएं खुद ही दूसरी महिलाओं की दुश्मन बन बैठी हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध करने में महिलाएं भी आगे हैं. आप घर का ही उदाहरण ले लीजिए, जहां एक महिला दूसरे पर पाबंदी लगाती है.

पुलिस वालों का काम है लोगों की रक्षा करना, उन्हें अपराध से बचाना लेकिन महाराष्ट्र के जलगांव में जो घटना हुई (jalgaon hostel nude dance) वो सारी पुलिस (jalgaon police) बिरादरी को बदनाम करती है. लोग बोलते हैं कि पुलिस वालों से डर लगता है, जब ऐसी घटनाएं होंगी तो क्या कोई लड़की अपनी रिपोर्ट लिखाने की हिम्मत करेगी. जलगांव के हॉस्टल में बाहरी लोगों और पुलिस के सामने महिलाओं को न्यूड होकर डांस करने के लिए मजबूर किया गया. और साबरमती में हंसते-हंसते जान देने वाली आयशा का क्या? उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और वह मरते दम तक पति से प्यार करती रही.

या फिर यूपी के हरदोई में एक पिता ने अपनी 17 साल की बेटी को प्यार की करने की सजा उसकी हत्या करके दी. पिता ने अपनी ही बेटी का गला धड़ से अलग कर दिया और पुलिस थाने लेकर पहुंच गया. क्योंकि वह किसी के प्यार में थी. माफ कीजिएगा, दहेज, हत्या, रेप, शोषण, भेदभाव, छेड़खानी, घरेलू हिंसा जैसे हालातों के बीच क्या महिला दिवस सिर्फ दिखावा नहीं है?

ऐसे लोगों से बस यही कहा जा सकता है कि अगर तुम सच में किसी महिला की इज्जत नहीं कर सकते तो कृपया मुंह उठाकर बधाई देने मत चले आना. इन अपराधों के बीच काहे का महिला दिवस और कैसी बधाई? महिलाएं किस बात की बधाई स्वीकार करें? क्या उन्हें समान अधिकार मिल गया, क्या उनके साथ रेप होना बंद हो गया, क्या घरेलू हिंसा रूक गई? या फिर ये सारी घटनाएं हर रोज का हिस्सा बन गईं हैं? मतलब रूटीन लाइफ जैसी. जिसे पढ़कर या सुनकर आप यह कह सकते हैं कि यह तो रोज की बात है, इसमें नया क्या है?

तो क्या करें लड़कियां

इस महिला दिवस सिर्फ बातें नहीं, करके भी दिखाना है. लड़कियां तुम्हें ना बोलना सीखना होगा. अपने हक अपने अधिकार के लिए आवाज उठानी होगी. अगर कोई तुम्हारा शोषण करता है तो उसके खिलाफ शिकायत करनी होगी. तुम्हें अपने अधिकार का पता होना चाहिए. अपनी आजादी की लड़ाई बिना दुनियां की परवाह किए लड़ना होगी. अपने फैसले खुद लेने होंगे. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीनी होगी. आखिर में यह सब कर ने के लिए तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होना होगा. सेल्फ डिपेंडेंट बनने के लिए काम करना होगा, ताकि अपना खर्चा तुम खुद उठा सको. कोई पुरुष कितना भी तुम्हारा सगा क्यों ना हो कोशिश करो कि अपने खर्चे के लिए उसके सामने हाथ न फैलाओ. तभी सही मायने में महिलाएं सशक्त बन सकेंगी. वरना क्या है जैसे चल रहा है चलता रहेगा.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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