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Updated: 05 मार्च, 2023 05:26 PM
आजाद मो. शेख
आजाद मो. शेख
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दिल्ली से महज 100 किलो मीटर दूर हरियाणा के भिवानी में बीते दिन 16 फरवरी को दो युवकों पर कथित रूप से हमला कर भीड़ द्वारा अपहरण कर लिया गया. इसके बाद में  कथिक तौर पर उन्हें उनकी कार के साथ आग के हवाले कर दिया गया. इससे एक दिन पहले 15 फरवरी को राजस्थान में एक परिवार ने एफआईआर दर्ज कराई थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि दो युवक जुनैद और नासिर लापता हो गए थे और बजरंग दल के सदस्यों द्वारा उनका अपहरण कर लिया गया था. शवों की खोज के कुछ घंटों बाद एफआईआर दर्ज कराने वाले जुनैद के चचेरे भाई इस्माइल ने कहा कि शव जुनैद और नासिर के हैं. उनकी हत्या कर दी गई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ आरोपियों के बारे में पूछने पर मौका पर मौजूद लोगों ने कहा कि वे बजरंग दल से हैं. इनमें मुल्तान निवासी अनिल, मरोदा निवासी श्रीकांत, फिरोजपुर झिरका निवासी रिंकू सैनी, होडल निवासी लोकेश सिंगल और मानेसर निवासी मोनू का नाम शामिल हैं. मोनू बजरंग दल का कार्यकर्ता है. मोनू मानेसर का पूरा नाम मोहित है. पिछले 10-12 साल से बजरंग दल से जुड़ा है. मानेसर के मूल निवासी 28 वर्षीय मोनू मानेसर क्षेत्र में मजदूरों के रहने के लिए रूम बनाता है.

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उन्होंने खुद को गोरक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता बताया है. मोनू का कहना है, "मैं गायों के आसपास बड़ा हुआ. यह मेरी लिए आस्था का विषय है और पवित्र गाय की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है. गायों के खिलाफ़ अत्याचार देखने के बाद मैंने उन्हें बचाने और मेवात और आसपास के जिलों में अवैध पशु तस्करी को रोकने के लिए कसम खाई है.''

ऑल्ट न्यूज़ की शिंजिनी मजूमदार की एक जांच में पाया गया है कि मोनू मानेसर और उनकी टीम ने अतीत में कई हिंसक वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किए हैं, जिन पर कानून प्रवर्तन अधिकारियों का ध्यान नहीं गया. चिंताजनक रूप से मानेसर के सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर हजारों की संख्या में फॉलोवर हैं, जहां वह अक्सर मेटा और यूट्यूब के सुरक्षा दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए सामग्री अपलोड करते हैं. उनके सोशल मीडिया पर अपलोड की गईं कई तस्वीरों में उनकी टीम को घायल युवकों के बाल पकड़ते हुए देखा जा सकता है, जिनके बारे में उनका दावा है कि वे गाय तस्कर हैं. 

द प्रिंट के ख़बर की मुताबि़क, मानेसर के बाबा भीष्म मंदिर में मंगलवार को मोनू के समर्थन में हुई महापंचायत के बाद पटौदी के सहायक पुलिस आयुक्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा गया. इसमें राजस्थान पुलिस द्वारा मोनू मानेसर के खिलाफ दर्ज मामला रद्द करने और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की गई. ज्ञापन में कहा गया है कि मोनू और उसके परिवार के किसी तरह के जान-माल के नुकसान की स्थिति में सरकार एवं जिला प्रशासन जिम्मेदार होगा.

एक हिंदू संगठन के नेता अधिवक्ता कुलभूषण भारद्वाज ने कहा, ''गुड़गांव पुलिस को आश्वस्त करना चाहिए कि मोनू मानेसर के परिवार को छुआ नहीं जाएगा. बिना पूर्व सूचना के कोई भी पुलिस वाला उनके घर नहीं जाएगा, अन्यथा वे जीवित नहीं लौटेंगे.'' महापंचायत के वक्ताओं ने दावा किया कि बजरंग दल के नेता और स्वघोषित गोरक्षा दल के सदस्य मानेसर के खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है और राजस्थान पुलिस के पास कोई ठोस सबूत नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि एफआईआर साजिशन दर्ज की गई थी और 24 घंटे के इसे रद्द करने की मांग की. उन्होंने यह भी जोड़ा कि मोनू मानेसर फरार नहीं है और जब भी प्रशासन बुलाएगा वह हाजिर हो जाएगा.

गो-तस्करी के नाम पर मुसलमानों पर निशाना

डेटा जर्नलिज्म वेबसाइट इंडियास्पेंड के मुताबिक, 2010 और 2017 के बीच गाय से संबंधित हिंसा में 28 लोग मारे गए थे. उनमें से लगभग 90 प्रतिशत मई 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद रिपोर्ट किए गए थे, और लगभग आधे भाजपा शासित सरकारों वाले राज्यों में हुए थे. इस तरह की हत्याओं की सटीक संख्या का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है, क्योंकि भारत में कानून हत्या और लिंचिंग के मामलों के बीच अंतर नहीं किया जाता हैं. 

इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार आलोक रंजन के रिपोर्ट के मुताबिक 28 सितंबर 2015 को दादरी के बिसाड़ा गांव में भीड़ ने अखलाक की पीट-पीट कर हत्या कर दी और उनके बेटे को बुरी तरह पीटा. भीड़ ने अखलाक पर गोमांस खाने का आरोप लगाया था. वहीं, अप्रैल 1, 2017 जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर अलवर में गौरक्षकों ने 55 वर्षीय पहलू खान पर कथित तौर पर हमला किया था. खान और पांच अन्य पशुओं को जयपुर के एक साप्ताहिक बाजार से हरियाणा के नूंह स्थित अपने गांव ले जा रहे थे. खान के बयान के आधार पर छह चिन्हित और 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

गायों को ले जाने पर हुआ था हमला

20 जुलाई 2018 रकबर खान और उनके दोस्त असलम खान पर अलवर के रामगढ़ थाने के अंतर्गत आने वाले लालवंडी में उस समय भीड़ ने बेरहमी से हमला किया, जब वे अलवर के एक गांव से हरियाणा के कोलगांव स्थित अपने घर पैदल दुधारू गायों को ले जा रहे थे. असलम भागने में सफल रहा लेकिन रकबर को भीड़ ने पीटा. कुछ घंटे बाद उन्होंने दम तोड़ दिया. भारतीय दंड संहिता की धारा 143 (गैरकानूनी विधानसभा), 341 (गलत संयम), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 302 (हत्या) और 34 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. चार लोगों परमजीत सिंह, धर्मेंद्र, नरेश और विजय को गिरफ्तार किया गया और बाद में आरोप पत्र दायर किया गया.

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

17 जुलाई, 2018 को, सुप्रीम कोर्ट ने दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों के खिलाफ मॉब लिंचिंग और भीड़ द्वारा हिंसा की हालिया घटनाओं को "भीड़तंत्र के भयावह कृत्यों" के रूप में निरूपित किया और संसद से आग्रह किया कि लिंचिंग को दंड के साथ एक अलग अपराध बनाने वाले कानून का मसौदा तैयार किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों की सुनवाई के लिए प्रत्येक जिले में विशेष या फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का सुझाव दिया. राज्य सरकारों को लिंचिंग/भीड़ हिंसा पीड़ित मुआवजा योजना तैयार करने के लिए भी कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि मॉब लिंचिंग और मॉब लिंचिंग के मामलों में पीड़ित या मृतक के परिजनों को मुफ्त कानूनी सहायता मिले. लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि सरकार लाख कोशिश करने के वजूद भी इस तरह की घटना को रोकने में असमर्थ है. आखिर कब तक इसी तरह भीड़  दलितों और अल्पसंख्यक पर वार करती रहेंगी.

लेखक

आजाद मो. शेख आजाद मो. शेख @2136944423170184

आज़ाद मोहम्मद शेख एक भारतीय पत्रकार हैं, जो घृणा अपराधों, राजनीतिक, लैंगिक समानता और न्याय पर रिपोर्ट करते हैं।

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