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Updated: 07 जनवरी, 2022 07:51 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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'गंजे को कंघी बेचने' का मुहावरा बनाने वाले शख्स के समय में चुनाव होते थे या नहीं, ये बहस का विषय हो सकता है. लेकिन, इस बात पर बहस नहीं हो सकती है कि हर सियासी दल चुनावों में 'गंजे को कंघी बेचने' की कला को ही अपनाता है. 'गंजे को कंघी बेचने' वाली इस कला के दम पर सत्ता हासिल करना कोई बड़ी चुनौती नही है. पूरी दुनिया में इसके दर्जनों उदाहरण भरे पड़े हैं. लेकिन, क्या दुनियाभर में कोई ऐसा देश है, जो गंजों को होने वाली समस्याओं को लेकर थोड़ा सा भी सीरियस नजर आता हो. बॉलीवुड में भी 'बाला' और 'उजड़ा चमन' जैसी फिल्मों के जरिये गंजों को होने वाली समस्याओं की बात तो की जाती है. लेकिन, गंजों के बारे में इतना सोचता ही कौन है कि गंजापन कभी चुनावी मुद्दा बन सके. लेकिन, दक्षिण कोरिया ने इस मामले में दुनियाभर के देशों को मात दे दी है. क्योंकि, दक्षिण कोरिया में गंजों के सिर पर बाल उगाना चुनावी मुद्दा बन चुका है. और, इसके साथ ही दक्षिण कोरिया गंजों की समस्याओं को सम्मान देना वाला पहला देश भी बन गया है.

South Korea President Election दक्षिण कोरिया गंजों की समस्याओं को सम्मान देना वाला पहला देश भी बन गया है.

गंजों का मिल रहा भरपूर समर्थन

वैसे, किसी गंजे को उसके सिर पर बाल आने की उम्मीद देना चुनाव जीतने के लिए लुभाने वाला वादा कहा जा सकता है. लेकिन, चुनाव आते ही तमाम राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए ऐसे लोकलुभावन वादों की झड़ी लगा देते हैं. तो, गंजों के सिर पर बाल लाना चुनावी मुद्दा क्यों नहीं हो सकता है? बहरहाल, गंजों की पीड़ा को समझते हुए दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ली जे-म्युंग (Lee Jae-myung) ने बालों को झड़ने से रोकने के इलाज के लिए सरकारी मदद देने की बात कही है. ली जे-म्युंग के इस ऐलान के बाद उन्हें गंजे मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिल रहा है. दरअसल, दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार (South Korean presidential candidate) ली जे-म्युंग इसी हफ्ते गंजों के लिए ये प्रस्ताव लाए हैं. जिसमें गंजे हो रहे लोगों के बालों का झड़ना रोकने के इलाज में सरकारी मदद दिए जाने की बात पर जोर दिया गया है. और, राष्ट्रपति के चुनाव में बालों का झड़ना रोकने का इलाज एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है.

गंजे भी होते हैं मतदाता, तो भेदभाव क्यों?

ऐसे किसी भी चुनावी मुद्दे पर विपक्ष का हो-हल्ला मचाना भी लाजिमी है. तो, विपक्ष का कहना है कि सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार ने वोट हासिल करने के लिए यह लोकलुभावन प्रस्ताव दिया है. वैसे, चुनाव आते ही राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए लोकलुभावन वादों की झड़ी लगा देते हैं. चुनावी मौसम में फ्री बिजली-पानी से लेकर लैपटॉप-टैबलेट जैसे वादे भारत में आम हैं. किसी भी चुनाव में सियासी पार्टियां ऐसे ही तमाम वादे करती हैं. और, कई राज्यों में तो इन्हें पूरा भी किया जाता है. अगर तमिलनाडु की बात की जाए, तो यहां मतदाताओं को कैश से लेकर गोल्ड तक की योजनाओं का लाभ कई सालों से दिया जाता है. 2022 में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों में भी ऐसे ही तमाम ऐलान किए जा रहे हैं. इन चुनावी वादों की तुलना में दक्षिण कोरिया में गंजों के इलाज को लेकर किया गया वादा कहीं से भी गलत नहीं लगता है. आखिर गंजे भी तो मतदाता होते हैं और सबके लिए चुनावी घोषणाएं होती हैं, तो उनके लिए क्यों नही हो सकती हैं?

गैर-गंजे की गंजों के बारे में फिक्र, बड़ी बात है

यहां इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ली जे-म्युंग गंजे नही हैं. लेकिन, वह गंजे लोगों के बारे में फिक्र कर रहे हैं. मेरा मानना है कि ली जे-म्युंग को एक ऐसे नेता की कैटेगरी में रखा जाना चाहिए, जो आखिरी छोर पर मौजूद शख्स के बारे में भी सोच सकता है. बालों का झड़ना तो पुरातन काल से लोगों के बीच समस्या के तौर पर है. लेकिन, आज तक किसी ने इस तरह से गंजों के बारे में नहीं सोचा होगा. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ली जे-म्युंग ने कहा है कि 'बालों को फिर से उगाने का इलाज राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम द्वारा कवर किया जाना चाहिए. बाल फिर से उगाने के उपचार के लिए मैं एक बढ़िया नीति बनाऊंगा.' स्वास्थ्य बीमा की बात की जाए, तो दुनियाभर में कोरोना महामारी के आने से पहले इसका इलाज बीमा में कवर नहीं किया जाता था. लेकिन, दुनियाभर की सरकारों ने बीमा कंपनियों को कोरोना का इलाज भी अन्य बीमारियों की तरह ही स्वास्थ्य बीमा में शामिल करने को कहा था. तो, इस हिसाब से भी यह प्रस्ताव गलत नही लगता है.

गंजा होना केवल दक्षिण कोरिया की समस्या नहीं

दक्षिण कोरिया में गंजों को लेकर माना जाता है कि देश के हर पांच लोगों में से एक व्यक्ति को बाल झड़ने की समस्या है. इसे देखकर कोई भी कह सकता है कि दक्षिण कोरिया में यह एक गंभीर समस्या है. और, इसका इलाज होना ही चाहिए. एक स्टडी के अनुसार, दुनिया के 70 फीसदी पुरुष अपने जीवन में बाल गिरने या गंजेपन की समस्या से जूझते हैं. और, गंजेपन की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है. इन तमाम आंकड़ों के हिसाब से तो ली जे-म्युंग के इस प्रस्ताव को दुनियाभर के देशों में लागू करवाने के प्रयास किए जाने चाहिए. खैर, यहां ये बताना जरूरी नजर आता है कि लेखक गंजेपन की समस्या से पीड़ित नही है. लेकिन, नोएडा और दिल्ली के पानी को लेकर पूरे भारत में जो भ्रम है, उसी से ग्रस्त होने की वजह से मैं इसे लिखने के लिए प्रेरित हुआ हूं. भारत में भी बालों को झड़ने से रोकने के लिए और गंजों के लिए कोई योजना आती है, तो आबादी का एक बड़ा हिस्सा बहुत आसानी से लुभाया जा सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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