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Updated: 24 जनवरी, 2023 01:26 PM
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गुजरात की एक अदालत ने हाल ही में महाराष्ट्र राज्य से मवेशियों को अवैध रूप से ले जाने के आरोप में एक 22 वर्षीय व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुना दी. निःसंदेह कानून हैं. कानून में प्रावधान हैं. तभी अपराध सिद्ध होने पर सजा सुनाई गई होगी. लेकिन ये भी निश्चित है कि फैसले पर सवाल खड़े किए जाएंगे और वजह होगी माननीय न्यायमूर्ति व्यास के गोवंश को लेकर की गई बातें. उन्होंने सजा के आलोक में गोवंश का इतना महिमामंडन कर दिया है कि केस फॉर 'उनका फैसला बायस्ड है' बनेगा ही.

माननीय सत्र न्यायाधीश ने कहा, "जिस दिन गाय के खून की एक बूंद भी धरती पर नहीं गिरेगी, उस पृथ्वी की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और पृथ्वी में भलाई स्थापित हो जाएगी. धर्म गाय से पैदा होता है. क्योंकि धर्म वृषभ के रूप में होता है और गाय के पुत्र को वृषभ कहा जाता है. हिंदुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक है गाय और गोवंश. आज संसार में जो भी समस्याएं हैं, इसकी जड़ है बढ़ता चिड़चिड़ापन और गर्म मिज़ाजी, और इनकी अत्यधिक वृद्धि का एकमात्र कारण गोवध है. इसलिए जब तक इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जाती है, तब तक पृथ्वी पर सात्विक वातावरण नहीं बनेगा.''

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उन्होंने आगे कहा, ''दरअसल, मामला गायों के महत्व को ध्यान में रखते हुए तय किया जा रहा था. जैविक खेती से पैदा होने वाले अनाज कई बीमारियों से बचाते हैं. विज्ञान ने साबित किया है कि गाय के गोबर से बने घरों पर न्यूक्लियर रेडिएशन का भी असर नहीं होता है. गोमूत्र के सेवन से कई बीमारियों ठीक होती हैं. गाय धर्म का प्रतीक है. गाय सिर्फ जानवर ही नहीं मां भी है. इसलिए उन्हें ‘गौमाता’ कहा जाता है. गायों से पूरे ब्रह्मांड को मिलने वाले लाभों का वर्णन नहीं किया जा सकता. जिस दिन गाय के खून की एक बूंद भी धरती पर नहीं गिरेगी, धरती की सारी समस्याएं खत्म हो जाएगी और धरती का कल्याण होगा.''

न्यायमूर्ति व्यास ने जो जो कुछ भी कहा है गौ के लिए, वह उनके विश्वास की, सनातन हिंदू धर्म में उनकी आस्था की, ही बात कही जाएगी. परंतु देश में धर्मनिरपेक्षता के हवाले से इस आस्था की धज्जियां उड़ती रही हैं. पिछले कुछ समय से तो देश में खाने पीने की आदतें, पसंद, नापसंद आदि को लेकर खूब चर्चाएं हैं. इस संबंध में कानून बनाए जाने की बातें भी होने लगी थी परंतु खाना-पीना व्यक्ति के मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है जिससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. दरअसल गोवंश का अवैध रूप से ट्रांसपोर्ट करने की जरुरत बीफ के खाने से जुड़ी हुई है. सं‌विधान की धारा 48 में यह व्यवस्था है कि राज्य विशेषकर गाय, बछड़ों अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्ल की सुरक्षा के लिए उनकी हत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाएगा. लेकिन यह राज्यों पर छोड़ा है कि वे लोगों की भावनाओं और रीति-रिवाजों, प्राथमिकता के अनुसार गोरक्षा के लिए कानून बनाएंगे. दूसरी ओर अदालत ने कहा है कि कोई भी सरकार किसी भी तरह से लोगों के खाने-पीने पर पाबंदी नहीं लगा सकती. यह व्यक्ति का मौलिक अधिकार है.

इससे द्वंद्व की स्थिति निर्मित हो चली है खासकर बीजेपी के सत्ता में आने की बाद चूंकि तमाम हिंदू संगठन मुखर जो हो उठे. देश के अधिकतर हिस्सों में गो हत्या गैर-कानूनी है. कुछ राज्यों ने इस पर सख्ती नहीं दिखाई है. जैसे गोवा, केरल, पूर्वोत्तर के कुछ राज्य. लेकिन गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड आदि में इस पर सख्ती दिखाई गई है. गुजरात की एक अदालत का पिछले साल का ये फैसला (हालांकि अब पब्लिक डोमेन में है शायद मूल फैसला गुजराती में था इस वजह से) उतना ही सख्त है जितने संबंधित कानूनों में प्रावधान सख्त है. कहने का मतलब आरोप अमीन को गुजरात पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2011, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, गुजरात आवश्यक वस्तु और मवेशी (नियंत्रण) अधिनियम, 2005, और मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2015 सहित विभिन्न कानूनों के तहत दोषी करार दे दिया.

गुजरात पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम की धारा 8(2) धारा 5 (1) के उल्लंघन के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान है. इसके तहत किसी भी पशु की हत्या करना अपराध है. कानून की धारा 5 सक्षम प्राधिकारी से प्रमाणपत्र के बिना पशुओं की हत्या पर रोक लगाती है. धारा 6ए कुछ विशिष्ट पशुओं की तस्करी पर रोक लगाती है. इसके तहत, “किसी व्यक्ति को हत्या के मकसद से ऐसे पशु की तस्करी करने वाला माना जाएगा, जब तक कि मामला इसके विपरीत साबित न हो”. और माननीय न्यायमूर्ति ने यही मान लिया आरोपी पशुओं को गोहत्या के इरादे से लेकर जा रहा था. एक बात तो स्पष्ट है कि अमीन का दुर्भाग्य ही था कि उसने कथित क्राइम गुजरात में किया वरना उसे इतनी सख्त सजा तो नहीं मिलती.

सवाल है 'एक देश एक कानून' क्यों नहीं? गोवंश यदि इतना महत्वपूर्ण है, जैसा न्यायमूर्ति व्यास ने खूब बखान किया है, तो गोवंश के प्रति अपराधों के लिए समान कानून होना चाहिए ना. चूंकि कानून समान नहीं है और कहीं कहीं तो कोई कानून है ही नहीं, इसलिए गोवंश रक्षा आस्था का मामला ही समझ आता है और समझा भी जाता है. हिंदू धर्म की गोवंश में आस्था निर्विवाद है. गोवंश की महत्ता से इंकार भी नहीं हो सकता है. परंतु न्यायमूर्ति ने जिस प्रकार गोवंश का महिमामंडन किया है, निर्णय के न्यायोचित होने पर संदेह पैदा कर देता है. इस मायने में कि कहीं आस्था के वश उन्होंने पूर्वाग्रह तो नहीं पाल लिया था आरोपी अमीन के लिए?

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लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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