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Updated: 21 जून, 2018 03:52 PM
मकरंद परांजपे
मकरंद परांजपे
 
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विदेश नीति में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश नीति की कई उत्कृष्ट सफलताओं में से एक है. दुनिया के जिस भी कोने में मैं जाता हूं, वहां मुझे इस कार्यक्रम के लिए लोग एकजुट दिखते हैं, उत्साहित रहते हैं और स्थानीय लोगों से इसे भरपूर भी समर्थन मिलता है.

वैश्विक अपील:

इस साल 21 जून इस विश्वव्यापी कार्यक्रम के समय मैं टेक्सस की राजधानी ऑस्टिन में हूं. यहां पर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस शनिवार, 16 जून, 2018 को मनाया गया. संयोग से ये कार्यक्रम भारत में ईद-उल-फ़ितर के जश्न के साथ हुआ. टेक्सस में इस समारोह को ह्यूस्टन स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास ने दर्जनों स्थानीय प्रायोजकों और सहयोगियों के सहयोग से 1994 बैच के आईएफएस डॉ. अनुपम रे के नेतृत्व में आयोजित किया था. भारत के लोगों को मैं बताना चाहता हूं कि अमेरिका में अब योग करने वालों की संख्या 20 मिलियन से अधिक हो गई है. ये एक चौंकाने वाला आंकड़ा है.

international yoga dayयोग के जरिए वैश्विक संबंधों को बढ़ावा देना अनूठा प्रयास था

प्रधानमंत्री पद संभालने के कुछ समय बाद, सितंबर 2014 में प्रधान मंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के अपने पहले संबोधन में ही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रस्ताव अपनी पूरी ताकत से रखा था. इस सभा को उन्होंने हिंदी में संबोधित किया था. संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, "अपनी जीवनशैली को बदलकर और चेतना पैदा करके, यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी हमारी मदद कर सकता है." उन्होंने सदस्य देशों से अपील की कि वे "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" की उनकी मांग का समर्थन करें.

मोदी के इस प्रस्ताव से सिर्फ संयुक्त राष्ट्र ही नहीं बल्कि विदेश मंत्रालय भी आश्चर्यचकित रह गई थी. दरअसल इस पर कोई 'फ़ाइल' पहले नहीं थी; यह बिल्कुल ही नया विचार था. सीमा सिरोही, जिन्होंने प्रारंभिक रिपोर्ट लिखी, उन्होंने माना कि "विदेश नीति के रूप में योग वास्तव में अद्वितीय है."

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मंजूरी दिलाना कोई आसान काम नहीं था. 1980 से, यूएनजीए के नियमों के अनुसार ऐसे प्रस्तावों को केवल तभी पारित किया जाता है जब "सभी देशों का बहुमत उसे मिला हो. साथ ही वो सारे देशों की प्राथमिकता से संबंधित हों और वैश्विक समस्याओं को हल करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के विकास में योगदान दे." तो सच में ये एक कठिन काम था.

आखिर हमें सफलता कैसे मिली? संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि और तत्कालीन राजदूत अशोक मुखर्जी ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मुझे ये बताने में बहुत गर्व है कि सेंट स्टीफन कॉलेज में मुखर्जी मेरे शिक्षक थे. जब 1977 में मैंने अंग्रेजी में बीए (ऑनर्स) में दाखिला लिया था तभी से इस बात का शोर था कि वो सिविल सेवा परीक्षा पास कर लेंगे. और उन्होंने कर भी ली.

कूटनीति:

हमारे रैगिंग के समय से ही मेरा उनसे परिचय हो गया था. और बच्चों द्वारा घिसे पिटे जवाबों को सुनकर वो पक गए थे. तभी मैंने ऐसा कुछ कहा था जो बेवकूफी भरा होने के साथ साथ गुस्सा दिलाने वाला भी था. लेकिन मुझे याद है कि मुखर्जी न तो मुझपर हंसे और न ही गुस्सा हुए. इसके बजाय उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. तभी मैं समझ गया था कि इनका व्यक्तित्व एक राजनयिक के लिए बिल्कुल सही है.

international yoga dayफिटनेस चैलेंज को इससे जोड़ कर देखिए

बेलग्रेड और वाशिंगटन में अपने सफल कार्यकाल के बाद, 1990 में मुखर्जी सोवियत मध्य एशिया में भारत के राजदूत बने. सोवियत संघ के पतन के बाद, उन्होंने नए बने देशों उज़्बेकिस्तान, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भारत की विदेश नीति को नया आकार देने में मदद की. फिर उन्होंने ब्रिटेन में भारत के उप उच्चायुक्त बनने से पहले रूस में डब्ल्यूटीओ और भारत के उप राजदूत के रूप में कार्य किया. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस शायद उनकी सबसे बड़ी जीत थी.

स्वास्थ्य चुनौती:

एक छोटी सी टीम के साथ मुखर्जी ने बहुत बड़ी उपलब्धी हासिल की. चीन के प्रारंभिक समर्थन के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और जापान ने काफी मदद की. मिस्र, नाइजीरिया, सेनेगल, तुर्की, इराक, ईरान और इंडोनेशिया सहित कई देशों के साथ साथ इस्लामी सहयोग समूह (ओआईसी) के 56 में से 48 देशों का समर्थन मिला.

सऊदी अरब, मलेशिया, ब्रुनेई, और ज़ाहिर है, पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. ब्राजील, मेक्सिको, कोलंबिया, अर्जेंटीना के साथ-साथ अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और कैरीबियाई में बड़े भारतीय डायस्पोरा वाले देश, सभी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. हमारे अपने क्षेत्र में, अफगानिस्तान, भूटान और म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल ने बड़े उत्साह से साथ दिया.

आखिरकार, 11 दिसंबर, 2014 को, यूएनजीए ने 193 देशों में से 177 के समर्थन के साथ इस प्रस्ताव को पास किया. मोदी द्वारा प्रस्तावित किए जाने के सिर्फ 75 दिन बाद ही. मुखर्जी ने इसे भारत की "समावेशी कूटनीति" की जीत बताया. और इससे बड़ी बात ये थी कि प्रस्ताव के विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा. भले ही लोग अनुपस्थित रहे.

21 जून, 2015 को पहले वैश्विक योग समारोह के बाद से ये मजबूत होता गया है. जो लोग प्रधान मंत्री की हालिया हेल्थ चैलेंज पर आश्चर्य कर रहे हैं. उन्हें उनके कार्यकाल की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के विचार से सीधा लिंक देखना होगा. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ने सभी भारतीयों को गर्व का एहसास कराया है. आइए इस अवसर पर न सिर्फ हम हमारे प्रधान मंत्री को सलाम करें, बल्कि दुनिया भर में योग के सभी शिक्षकों और चिकित्सकों को भी सलाम करें.

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लेखक

मकरंद परांजपे मकरंद परांजपे

लेखक कवि हैं और जेएनयू में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं

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