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Updated: 04 अगस्त, 2016 09:54 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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सुपर हीरो कोई भी हो लेकिन आज के बच्चों को दोस्त डोरेमॉन जैसा ही चाहिए. डोरेमॉन एक जापानी कार्टून कैरेक्टर है जो आजकल के बच्चों का फेवरेट है. नोबिता और डोरेमॉन की दोस्ती, उनसे जुड़े एडवेंचर बच्चों को खूब भाते हैं. इसका इतना क्रेज है कि जापान की ये कार्टून सीरीज पूरी दुनिया में अलग अलग भाषाओं में डब करके प्रसारित की जाती है. लेकिन आजकल डोरेमॉन खासी चर्चा में बना हुआ है. बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, मैक्सिको, रूस, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में जहां डोरेमॉन पर बैन लग चुका है, वहीं कई देशों में डोरेमॉन के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं.

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 डोरमॉन और नोबिता

पाकिस्तान डोरेमॉन से डर रहा है या हिंदी से-

इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रॉविंस की विधानसभा में डोरेमॉन को बैन करने की मांग की है. पार्टी का कहना है कि वहां बच्चे डोरेमॉन, नोबिता, शिजुका और जियान के अंदाज में हिंदी बोल रहे हैं. इससे बच्चों की पढ़ाई और फिटनेस खराब हो रही है. इसे भारत का पाकिस्तान पर कल्चरल अटैक भी कहा गया है. इनकी मांग है कि कार्टून को दिखाने वाले चैनलों पर बैन लगाया जाए. कार्टून चैनल्स को 24 घंटे के बजाए सिर्फ कुछ ही घंटों के लिए प्रोग्राम दिखाने के निर्देश दिए जाएं. इनका कहना है कि- उर्दू बोलने वाले परिवारों के बच्चे डोरेमॉन को अंग्रेजी के बजाए हिंदी में देखना पसंद करते हैं. इसलिए उनकी आम बोलचाल में हिंदी के शब्द बढ़ रहे हैं, इससे हमारे समाज को खतरा है.

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असल में भारत और पाकिस्तान के लिए डोरेमॉन को हिन्दी में डब किया गया है. पाकिस्तान में ये सबसे ज्यादा हिंदी डबिंग में ही देखा जाता है. जिससे तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के लोगों को परेशानी हो रही है. पाकिस्तान के पास इस कार्टून शो पर बैन लगाने के ये कारण बेहद अजीब हैं.

भारत में भी बैन के लिए लगाई गई है याचिका-

मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले को उजागर करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष चतुर्वेदी ने भारत सरकार के प्रसारण मंत्रालय और अन्य विभागों को नोटिस भेजकर डोरेमॉन और शिनचैन जैसे सीरियल्स पर रोक लगाने की मांग की है. उनका मानना है कि इन कार्टून शो के दुष्परिणाम अब बच्चों पर दिखाई देने लगे हैं. बच्चों के हाव भाव और खान पान पर इन सीरियल्स का असर दिख रहा है, जो व्यापम घोटाले से भी ज्यादा खतरनाक है. व्यापम में तो केवल दो या तीन राज्य शामिल हैं, लेकिन भारत में हर सप्ताह 3.6 करोड़ बच्चे कार्टून देखते हैं और जिनमें आधे से ज्यादा शिनचैन और डोरेमॉन देखना पसंद करते हैं.

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 शिन चैन

आशीष का दावा है कि उन्होंने इन सीरियल्स के दुष्परिणामों का खुद करीब 100 घरों में अध्ययन किया है. साथ ही देश के जाने माने डॉक्टर्स ने भी इसे बच्चों के लिए घातक माना है. शिनचैन को अपनी मां का मजाक उड़ाते देखा जाता है. वो अक्सर लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता भी दिखता है, और जिस भाषा का इस्तेमाल किया जाता है वो एक 5 साल के बच्चे के लिहाज से ठीक नहीं है. वहीं डोरेमॉन एक रोबोट है जो बुद्दू और पढ़ाई से जी चुराने वाले नोबिता की मदद गैजेट्स से करता है. अक्सर बच्चे नोबिता जैसी भाषा बोलते हैं और माता-पिता से ऐसे ही गैजेट्स की उम्मीद भी करते हैं.

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बच्चों का अपने फेवरेट कार्टून्स से प्रभावित होना स्वाभाविक है. बच्चों की समझ के हिसाब से उनपर इसके प्रभाव भी अलग-अलग हो सकते हैं. लेकिन इतना तो तय है कि यहां डोरेमॉन पर बैन लगा तो बच्चों के दिल जरूर टूटेंगे. बैन लगाना ही है तो फिर ऐसी तमाम चीजों पर भी लगाया जाए जो बच्चों की सोच को सच में प्रभावित करती हैं. डोरेमॉन ही क्यों?

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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