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Updated: 28 अगस्त, 2021 10:38 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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देश में बीते कुछ दिनों में कोरोना संक्रमण के मामलों में आई तेजी ने कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को बढ़ा दिया है. हालांकि, बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के नए मामले केवल पांच राज्यों में ही सामने आ रहे हैं. बाकी के राज्यों में स्थितियां नियंत्रण में कही जा सकती हैं. तमाम एक्सपर्ट्स संभावना जता रहे हैं कि आने वाले समय में होने वाले त्योहारों की वजह से कोरोना की तीसरी लहर अक्टूबर या नवंबर में आ सकती है.

देश में अनलॉक की प्रक्रिया के बीच स्कूलों को भी खोला (Schools Reopen) जा रहा है. लेकिन, जिस रफ्तार से कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, संभव है कि फिर से सब कुछ बंद हो जाए. इन सबसे इतर कोरोना महामारी की आशंका के बीच देश के 55 डॉक्टरों और शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर स्कूलों को खोलने की अपील की है. इस पत्र में स्कूलों को खुला रखने के लिए कई तर्क दिए गए हैं. आइए जानते हैं कोरोना के खतरे के बावजूद स्कूल खोलना क्यों जरूरी है?

भारत में कोरोना काल के दौरान स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई पर काफी जोर दिया गया.भारत में कोरोना काल के दौरान स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई पर काफी जोर दिया गया.

बच्चों का भविष्य बिगाड़ देगी 'ऑनलाइन पढ़ाई'

भारत में कोरोना काल के दौरान स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई पर काफी जोर दिया गया. बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप के जरिये पढ़ाने के लिए टीचरों से लेकर पैरेंट्स ने भी खूब मेहनत की. लेकिन, अभी भी देश के कई राज्यों में स्कूल पूरी तरह से नहीं खुल सके हैं. और, जहां खुल भी गए हैं, वहां अधिकांश पैरेंट्स कोरोना महामारी के डर से बच्चों को स्कूल भेजने में कतरा रहे हैं. यूनीसेफ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में हर 4 में से 1 बच्चे के पास ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है. इस दावे पर संसद में मुहर भी लग चुकी है. संसद के मानसून सत्र के दौरान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान में एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश के 24 राज्यों में करीब 3 करोड़ स्कूली बच्चों के पास किसी भी तरह की डिजिटल डिवाइस नहीं है.

ऐसे समय में जब पढ़ाई ऑनलाइन हो चुकी है, तो ये आंकड़े डरावने दिखाई पड़ते हैं. इस आंकड़े को लेकर गंभीर होने की जरूरत इसलिए भी है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के आंकड़े इसमें नहीं जुड़े हैं. जिन बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस नही है, वो क्या पढ़ाई कर रहे होंगे, ये बताने की जरूरत शायद नही पड़ेगी. वहीं, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कई एक्सपर्ट्स ने ये भी दावा किया है कि स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों की शैक्षिक और मानसिक स्थिति में बड़ा बदलाव हुआ है. ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की हैंडराइटिंग से लेकर लर्निंग हैबिट्स तक प्रभावित हुई हैं. मानसिक स्थिति की बात करें, तो स्कूल बंद होने से बच्चे अनुशासनहीन और बेपरवाह हो रहे हैं.

देश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की एक बड़ी संख्या है. इन बच्चों के पास वो तमाम सुविधाएं नहीं हैं, जो एक प्राइवेट स्कूल के बच्चे के पास होती हैं. वहीं, पैरेंट्स की आर्थिक स्थितियां भी कोरोना महामारी के दौरान काफी बिगड़ गई हैं. तो, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में इजाफा होना तय है. अनलॉक प्रक्रिया में जिन राज्यों में स्कूल-कॉलेज खोले गए हैं, वहां छोटे बच्चों के स्कूल अभी भी बंद हैं. शिक्षा श्रेत्र से जुड़े लोगों का का कहना है कि छोटे बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन माध्यम से केवल कहने को हो रही है. जरूरी नहीं है कि हर घर में पैरेंट्स (समय की कमी या अशिक्षित होने के चलते) बच्चों को पढ़ाई में मदद कर सकें. वहीं, गणित और विज्ञान जैसे विषयों की पढ़ाई हर बच्चा घर पर नहीं कर सकता है. अगर स्कूल नहीं खोले जाते हैं, इन बच्चों के भविष्य पर खतरा हो सकता है.

क्यों खुलने चाहिए स्कूल?

अब बात उस पत्र की जिसे डॉक्टरों और शिक्षाविदों ने लिखा है. इस पत्र में तर्कों के जरिये बताया गया है कि कोरोना के खतरे के बावजूद स्कूल खोलना क्यों जरूरी है? इस पत्र में कहा गया है कि अमेरिका में हुए शोध में पाया गया है कि 25 साल से कम उम्र के लोगों में कोरोना वायरस से मौत की संभावना बहुत कम है. डेल्टा वेरिएंट को लेकर पैरेंट्स की चिंता को सीरो सर्वे के नतीजे कम कर देते हैं. पत्र में कहा गया है कि शिक्षा में कमी बच्चों के भविष्य पर बड़े स्तर पर प्रभाव डालेगी. स्कूलों के लंबे समय तक बंद होने से भविष्य में बच्चों के सामने गरीबी से लेकर नौकरी तक की समस्याएं आ सकती हैं. स्कूल जाने की वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है. वहीं, इंडिया टुडे से बातचीत में महामारी विशेषज्ञ डॉ चंद्रकांत लहरिया ने भी कहा कि ये स्कूल खोलने का सही वक्त है. बीते 17 महीने में ये सामने आ चुका है कि बच्चों में कोरोना का खतरा बहुत कम है, इसलिए उन्हें शिक्षा से वंचित रखना गलत है.

अगर कोरोना के खतरे की बात की जाए, तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका बनी हुई है. लेकिन, जब तमाम सर्वे और शोध में ये बात साबित हो चुकी है कि बच्चों को कोरोना से नुकसान की संभावना बहुत कम है, तो स्कूलों को खोला ही जाना चाहिए. वहीं, देश में अब तक 62 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की एक डोज दी जा चुकी है, जो काफी हद तक सुरक्षित माहौल बनाने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है. केरल को छोड़कर किसी भी राज्य में कोरोना संक्रमण के ज्यादा मामले सामने नहीं आ रहे हैं. इन मामलों में बच्चों की संख्या केवल चुटकी भर है. WHO ने एक हालिया बयान में कहा था कि भारत को कोरोना के साथ जीना सीखना होगा. जब कोरोना लंबे समय तक हमारे बीच रहने वाला है, तो बच्चों की पढ़ाई का और ज्यादा नुकसान नहीं जा सकता है.

आईसीएमआर (ICMR) द्वारा जून-जुलाई के बीच किए गए सीरो सर्व में 6 से 9 साल के 2,892, 10 से 17 साल के 5,799 बच्चों के सैंपल लिए गए थे. सर्वे के नतीजों में 6-9 साल के बच्चों में 57.2 फीसदी और 10-17 साल के बच्चों में 61.6 फीसदी एंटीबॉडी पाई गई. यानी ये सभी बच्चे कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना वायरस से संक्रमित हो चिके थे. उस दौरान आईसीएमआर के डीजी डॉ. बलराम भार्गव ने कहा था कि छोटे बच्चे वायरल इंफेक्शन को आसानी से हैंडल कर लेते हैं. यह बात साबित हो चुकी है कि कोरोना वायरस रिसेप्टर्स के जरिये ही फेफड़ों को संक्रमित करता है और बच्चों में रिसेप्टर्स की संख्या कम होती है. तो, बच्चों के संक्रमित होने की संभावना कम है. उन्होंने ये भी बताया था कि यूरोप के कई देशों में पूरे कोरोना काल में प्राइमरी स्कूल बंद नहीं किए गए थे. तमाम नतीजे इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अगर भारत में सावधानी के साथ स्कूलों को खोला जाए, तो नुकसान की संभावना कम होगी. इस स्थिति में सरकारों को चाहिए कि पैरेंट्स को समझाए और सावधानी से स्कूल खोलने की ओर आगे बढ़े.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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