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Updated: 01 नवम्बर, 2017 04:21 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले कुछ दशकों में डयूटी के दौरान शहीद होने वाले पुलिसकर्मियों के प्रति किसी तरह की कृतज्ञता का भाव तक नहीं दर्शाने की परंपरा सी बन गई है. मानो उनकी मौत, मौत ही न होय यहां यह जानना और समझना महत्वपूर्ण है कि पुलिसकर्मियों को लगातार विपरीत और कठिन परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता है. सितंबर 2015 से लेकर अगस्त 2016 के दौरान देश में 473 पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी करते हुए मारे गए. यानी रोजाना एक से अधिक पुलिसकर्मी मारे जा रहे हैं.

यह भी शर्मनाक है कि जहां आतंकियों की मौत पर मोमबत्ती मार्च तक निकाले जाते है, आतंकियों के हाथ मारे गए पुलिसकर्मियों के बच्चों के आंसू पोंछने या उनके मां-बाप को सांत्वना देने भी गिने-चुने लोग ही आते होते हैं.

police, criminalsअपराधियों में पुलिस का भय क्यों खत्म हो रहा है?

यह तो मानना ही पड़ेगा कि समाज से अब पुलिस का डर तेजी से घटता जा रहा है. कुछ लोग अपने स्तर पर ही आरोपी को पीट-पीट कर मार देते हैं या अधमरा तो कर ही देते हैं. राजधानी दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में बीते दिनों एक नाइजीरियाई युवक की खम्भे से बांधकर पिटाई का दिल दहलाने वाला वीडियो वायरल हुआ. नाइजीरियाई युवक पर एक घर में चोरी करके भागने का आरोप था. इससे पहले की पुलिस उस नाइजीरियाई युवक को पकड़ती, भीड़ ने उसे पीटकर अधमरा कर दिया था.

एक और उदाहरण लें तो कुछ समय पहले झारखंड में बच्चा चोरी की अफ़वाहों के बीच दो जगहों पर उग्र भीड़ ने छह लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. चलिए मान लेते हैं कि जिन अभागों को मारा गया, वे दोषी थे. तो भी किसी को ये हक कैसे मिल गया कि वे किसी को मार डालें? अगर ये क्रम जारी रहा तो फिर देश में पुलिस की जरूरत ही क्यों बचेगी?

खाकी का खौफ गायब हो गया

बेशक, समाज से खाकी वर्दी का भय खत्म सा हो गया है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक साल 2015 में देशभर में 731 पुलिसकर्मी मारे गए. इन 731 में से 412 यानी 48.8 फीसद सिर्फ देश के छह बड़े राज्यों में हताहत हुए. उत्तर प्रदेश में 95. महाराष्ट्र में 82. पंजाब और तमिलनाडू में 64-64. गुजरात में 55. राजस्थान में 52 पुलिसवाले ड्यूटी के दौरान मारे गए. इन अभागे पुलिसकर्मियों में 427 कांस्टेबल, 178 हेड कांस्टेबल और 68 सहायक सब-इंस्पेक्टर शामिल थे.

गुंडे-मवालियों का पुलिस को अपना शिकार बनाना ही इस बात का संकेत है कि देशभर की पुलिस के कामकाज के तरीके में बदलाव जरुरी है. कहीं न कहीं पुलिस महकमें में भी भारी कमजोरी आई है. अभी बीते अगस्त महीने में उत्तर प्रदेश के संभल में दो शराबियों ने यूपी पुलिस के एक सिपाही को सरेआम डंडों से जमकर पीटकर अधमरा कर दिया था. इस मामले का वीडियो भी वायरल हुआ. इन दोनों शराबियों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने पुलिसकर्मियों पर ही हमला बोल दिया. पुलिसवाले का सिर्फ इतना ही सा कुसूर था कि उसने शराबियों को सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने से रोका था और शराबियों की गाड़ी रोक ली थी. जिसके बाद शराबी युवकों ने पुलिसकर्मी को दौड़ा-दौड़ाकर सड़क पर पटक-पटक कर पीटा.

police, criminalsखादी का खौफ लोगों के अंदर से गायब हो गया

आत्महत्याएं करते पुलिसवाले-

निश्चित रूप से बदलते हालतों में पुलिसकर्मी भारी दबाव में हैं. इनके तनाव और उससे पैदा होने वाले निराशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते अगस्त माह में सिर्फ दिल्ली में चार पुलिसकर्मियों ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली. वहीं अगस्त 2016 से अगस्त 2017 के बीच, इसके अलावा भी 6 पुलिसकर्मियों ने आत्महत्या कर ली थी. इन आत्महत्या करने वालों में से पांच ने खुद के सर्विस पिस्टल से ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी. जबकि, एक ने अपने घर में ही फांसी लगा ली थी. इन मरने वालों में कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, एएसआई और इंस्पेक्टर सभी स्तर के अधिकारी शामिल थे. इनमें से दो के परिजनों ने वरिष्ठ अधिकारियों पर ही मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया.

28 अगस्त 2017 को दक्षिण-पश्चिम जिले के दिल्ली कैंट थाने में तैनात हैड कांस्टेबल प्रमोद कुमार (46) ने थाने में ही सर्विस पिस्टल से गोली मार आत्महत्या कर ली थी. घटनास्थल से एक मिले सुसाइड नोट में उसने खुद को गोली मारने की वजह पारिवारिक तनाव बताया था.

22 अगस्त 2017 को दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली के जैतपुर थाना में तैनात एएसआई देवेंद्र (55) ने 22 अगस्त की रात थाने से कुछ दूरी पर कालिंदी कुंज के सुनसान स्थान पर जाकर अपनी सर्विस पिस्टल से खुद को गोली मार ली थी. उन्होंने अपने घर में सुसाइड नोट लिख छोड़ा था. इसमें उन्होंने थाना के एसएचओ और एक अन्य एएसआई पर प्रताडि़त किए जाने का आरोप लगाया था.

police, criminalsखुद पुलिसवालों को अब सुरक्षा की जरुरत पड़ रही है

3 अगस्त 2017- नई दिल्ली के बंग्ला साहिब स्थित ट्रैफिक उपायुक्त कार्यालय में तैनात 2010 बैच के कांस्टेबल परविंदर (32) ने 3 अगस्त की रात खुद के सर्विस पिस्टल से सिर में गोली मार ली थी. वह कार्यालय में नाईट ड्यूटी पर तैनात था.

02 जनवरी 2017- सर्वोच्च न्यायालय की सुरक्षा में तैनात 1993 बैच के कांस्टेबल चंदपाल (45) ने 2 जनवरी की सुबह करीब सवा आठ बजे खुद को सर्विस पिस्टल से गोली मार ली थी. इन घटनाओं से यह साफ झलकता है कि पुलिसकर्मियों को बेहद कठोर हालातों में काम करना पड़ रहा है. इस तरफ भी ध्यान देना होगा कि ऐसे वातावरण का निर्माण हो कि ये रीलेक्स होकर काम करें.

पुलिस पर हल्ला बोल-

आपको शायद याद होगा कि सहारनपुर जिले में कुछ समय पहले जातीय हिंसा हुई थी. वैसे, सहारनपुर यूपी के बेहतरीन जिलों में एक रहा है. वहां पर ऐसी परिस्थितियां बनीं कि राजपूत और दलित समुदाय के लोग एक-दूसरे की जान के प्यासे हो गए. जमकर आगजनी हुई. कौन दोषी है? इस लेख में इस सवाल का जवाब नहीं खोजा जा रहा है. यह काम तो जांच एजेंसियां करेंगी. पर यह तो सबको जानने का हक है ही कि आखिर हिंसा और आगजनी में लिप्त उपद्रवियों को अब पुलिस का कोई भय क्यों नहीं रहा?

5 मई को सहारनपुर के थाना बडगांव के शब्बीरपुर गांव में दलित और राजपूत समुदाय के बीच जमकर हिंसा हुई थी. इस जाति आधारित हिंसा के दौरान पुलिस चौकी को जलाने और 20 वाहनों को आग के हवाले कर देने की घटना को दिन दहाड़े अंजाम दिया गया था. दूसरी ओर झारखंड में घटना स्थल पर पुलिस के पहुंचने पर भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर भी हमला बोला था. तो लब्बो-लुबाब यह है कि खत्म हो रहा है खाकी वर्दी का खौफ!

कानून के दुश्मनों के निशाने पर अब पुलिस वाले भी आ ही गए हैं. शातिर अपराधियों को तो पुलिस का रत्तीभर भी खौफ नहीं रहा. ये पूरी तरह बेखौफ हो चुके हैं. ये पुलिस वालों की हत्या करने से भी तनिक परहेज नहीं करते. अब तो पुलिस को अधिक चुस्त होना ही पड़ेगा. अगर कानून की रक्षा करने वाले पुलिसकर्मी ही अपराधियों से मार खाने लगेंगे तो फिर देश के सामान्य नागरिकों का क्या होगा?

police, criminalsइन पर काम का दबाव बहुत ज्यादा है

अपराधियों के दिलों-दिमाग में पुलिस का खौफ फिर से पैदा करने के लिए सबसे पहले सभी राज्यों में पुलिस बल के रिक्त पद भरा जाना जरुरी है. पुलिस वालों की ड्यूटी का टाइम तय हो. जो आठ घंटे प्रतिदिन से ज्यादा न हो. आपातकालीन स्थितियों की बात तो अलग है. आबादी और पुलिककर्मियों का अनुपात भी तय हो. हर हालत में देश में गुंडे और मवालियों पर पुलिस को भारी पड़ना चाहिए.

पुलिस महकमें में भ्रष्टाचार का घुन बहुत अंदर तक जा चुका है. ये ठीक है कि सारे पुलिसकर्मी खराब नहीं हैं. पर हालात अब इतने खराब हो चुके हैं कि फौरी एक्शन लिए बगैर कोई सार्थक बात नहीं बनेगी. सरकार को अब कामचोर पुलिस वालों को निकाल बाहर करना ही होगा. दूसरी ओर ईमानदार और कर्मठ पुलिसकर्मियों को पुरस्कृत करना होगा. दूसरी बात यह है कि पुलिस महकमे में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद होना चाहिए.

जो भी हो, पुलिस के सम्मान की बहाली निहायत ही जरूरी है. अन्यथा देश के कानून में यकीन रखने वाले नागरिकों के लिए देश में अब कोई भी जगह नहीं बचेगी. और, जो पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी के दौरान शहीद होते हैं, उन्हें उसी तरह का सम्मान मिले जैसा सेना के शहीदों को मिलता है.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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