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Updated: 17 अप्रिल, 2021 09:29 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत में कोरोना की दूसरी लहर से कोविड-19 संक्रमण के मामलों में चौंकाने वाली बढ़ोत्तरी हुई है. बीते महीने मार्च के पहले हफ्ते में करीब 17000 मामले प्रतिदिन सामने आ रहे थे, लेकिन अप्रैल में यह बढ़कर एक लाख से भी ज्यादा हो गए हैं. बीते कुछ दिनों में हालात इस कदर खराब हुए हैं कि 7 अप्रैल को 1,15,736 मामलों से शुरू हुआ आंकड़ा 15 अप्रैल को 2,17,353 पहुंच गया. बीते सात दिनों में प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के मामलों का औसत 1,75,911 हो गया है. केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कोरोना संकमण को रोकने कोशिश में लगी हुई हैं, लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आया है. इन तमाम आंकड़ों के बीच सबसे जरूरी चीज है कोरोनारोधी टीकाकरण. कोविड-19 महामारी से सर्वाधिक प्रभावित कई राज्यों ने मांग की है कि कोरोनारोधी टीकाकरण को सभी व्यस्कों के लिए शुरू कर दिया जाए.

दुनियाभर में आबादी के नजरिये भारत दूसरा सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है. कोरोना संक्रमण के मामलों में भी भारत दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है. 16 जनवरी से शुरू हुए कोरोनारोधी टीकाकरण में अब तक 11,72,23,509 लोगों को वैक्सीन की लगाई जा चुकी हैं. इस आंकड़े के अनुसार, प्रतिदिन वैक्सीन लगाने का औसत 13 लाख से कुछ ज्यादा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़े के अनुसार, भारत में बीते 24 घंटों में 27,30,359 लोगों को वैक्सीन का डोज दिया गया है. जिसमें वैक्सीन की पहली डोज लेने वालों की संख्या 21,70,144 है और दूसरी डोज लेने वालों की संख्या 5,60,215 है. इस आंकड़े के अनुसार, पहली बार वैक्सीन लेने वालों की संख्या करीब 22 लाख है. अगर इसे साप्ताहिक औसत मान लिया जाए, तो अभी भारत को 90 करोड़ जनता तक वैक्सीन की डोज पहुंचाने में 15 महीने और लगेंगे. टीकाकरण के ये आंकड़ें भारत की जनसंख्या और लगातार बढ़ रहे मामलों के लिहाज से सही नही कहे जा सकते हैं.

भारत में वैक्सीन के नाम पर अभी केवल कोविशील्ड और कोवैक्सीन ही ही विकल्प हैं.भारत में वैक्सीन के नाम पर अभी केवल कोविशील्ड और कोवैक्सीन ही ही विकल्प हैं.

भारत में वैक्सीन के नाम पर अभी केवल कोविशील्ड और कोवैक्सीन ही ही विकल्प हैं. हाल ही में भारत सरकार ने रूसी वैक्सीन स्पूतनिक V को हाल ही में मंजूरी दी है. लेकिन, यह वैक्सीन भी अगले महीने से पहले उपलब्ध नहीं हो सकेगी. अन्य वैक्सीन को भी भारत में मंजूरी देने की कोशिशें तेज कर दी गई हैं, लेकिन उनके आने में भी समय लग सकता है. इस लिहाज से यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में वैक्सीनेशन की रफ्तार आने वाले समय में धीमी पड़ सकती है. वैक्सीनेशन की गति में कमी का सीधा असर वैक्सीन को लेकर बनाए गए लक्ष्य और समयसीमा पर पड़ेगा. 

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से वैक्सीन बनाने में लगने वाले कच्चे माल की आपूर्ति भी अप्रैल के महीने में बाधित रही है. जिसकी वजह से उत्पादन क्षमता पर असर पड़ना तय है. भारत में कोरोना मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वैक्सीनेशन की रफ्तार पहले ही काफी कम नजर आ रही है. अन्य विदेशी वैक्सीन की सप्लाई भी भारत को जल्द होने के रास्ते नहीं दिख रहे हैं. इसका एक पहलू ये भी है कि विदेशी वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होगी, तो हर व्यक्ति इसे अपने पैसों से नही लगवा सकेगा. भारत में कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीब वर्ग से आता है. इस स्थिति में विदेशी वैक्सीन उन तक कैसे पहुंचेगी, ये एक बड़ा सवाल है. भारत सरकार को टीकाकरण की गति को युद्धस्तर पर बढ़ाना ही होगा. अगर यही टीकाकरण की यही रफ्तार और परिस्थितियां रहीं, तो भारत में वैक्सीनेशन को पूरा करने में कई साल लग सकते हैं. 

कोरोनारोधी टीकाकरण में लोगों की वैक्सीन को लेकर हिचक भी इसके लिए घातक सिद्ध हो रही है. 16 जनवरी को फ्रंटलाइन वर्क्स और डॉक्टरों के लिए शुरू हुए टीकाकरण में काफी संख्या में लोगों ने टीके नहीं लगवाए थे. अब इनके लिए रजिस्ट्रेशन बंद हो चुका है. इसी से समझा जा सकता है कि तीन महीनों में जब सभी फ्रंटलाइन वर्क्स और डॉक्टरों ने वैक्सीन नहीं लगवाई है, तो 45 साल से ऊपर की उम्र वाले लोग ऐसे समय में वैक्सीन को लेकर कितने जागरूक होंगे.

45 साल से अधिक उम्र के लोगों में भी वैक्सीन लगवाने को लेकर भरपूर हिचक मौजूद है.45 साल से अधिक उम्र के लोगों में भी वैक्सीन लगवाने को लेकर भरपूर हिचक मौजूद है.

45 साल से अधिक उम्र के लोगों में भी वैक्सीन लगवाने को लेकर भरपूर हिचक मौजूद है. भारत में हर व्यक्ति इतना पढ़ा-लिखा नहीं होता है कि वह वैक्सीन लगवाने के फायदे को समझ सके. कोविड-19 संक्रमण की वजह से जान गंवा रहे लोगों की संख्या भी 45 साल से ऊपर की आबादी में डर बना रही है. बड़ी संख्या में लोग अभी भी टीकाकरण कराने से दूरी बनाए हुए हैं. कोरोनारोधी टीकाकरण के लिए अभी केंद्र सरकार 45 साल से ऊपर के लोगों में बसे डर को खत्म नहीं कर पा रही है और इसे खत्म करने के लिए कोई कोशिश भी करती नहीं दिख रही है.

भारत में जिस रफ्तार से कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, उसकी वजह से लॉकडाउन की स्थिति बनती जा रही है. कई राज्यों में आंशिक रूप से लॉकडाउन लगा भी दिया गया है. इसकी वजह से भी वैक्सीनेशन पर असर पड़ सकता है. आगे आने वाले समय में स्थितियां और चुनौतीपूर्ण होती दिख रही हैं. इस स्थिति में केंद्र सरकार को वैक्सीन के निर्यात को बंद कर भारत में ज्यादा से ज्यादा लोगों के वैक्सीनेशन पर ध्यान देना होगा. अगर भारत में जल्द ही टीकाकरण की रफ्तार को नहीं बढ़ाया गया, तो स्थितियों को गंभीर से भयावह होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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