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Updated: 04 जून, 2021 12:17 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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देश में कोरोना वायरस (coronavirus) की पीक झेलने वाले लोगों ने जो कुछ सहा है उसे शब्दों में बयां करना इतना आसान नहीं है. बड़ी मुश्किलों के बाद कोरोना की दूसरी लहर (covid secod wave) की पीक जा रही है. नए मामले कम आ रहे हैं लेकिन अभी भी इस महामारी से होने वाली मौतों का आंकड़ा करीब 3 हजार के पार बना हुआ है. इसके साथ ही ब्लैक फंगस (black fungus) का संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है.

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हमारे देश में भी इस महामारी को हराना आसान हो जाता लेकिन हमें बस कोरोना (covid-19) से ही थोड़ी लड़ना है. इसके अलावा भी 10 तरह के वायरस हमारे बीच मौजूद हैं जिनको हराना इतना आसान नहीं है. आप भी इन वायरस से वाकिफ हैं. जो हमारे देश को दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं. जब कोरोना वायरस से हमारा पाला पड़ा तो ये 10 वायरस एक बार फिर हावी होते दिखे, हो सकता है कि आपका भी इनसे पाला पड़ा हो. तो चलिए बताते हैं कि कोरोना ने किन बाकी वायरस को जिंदा कर दिया.

1- अंधविश्वास फैलाने वालों से

कोरोना के इलाज के लिए लोगों ने इतने तरह का अंधविश्वास फैलाया कि विज्ञान भी शर्मा गया. कभी गोमूत्र पार्टी को कभी गोबर स्नान. कहीं कोरोना को देवी माई बताकर पूजा गया तो कहीं कोरोनासुर बताकर भस्म किया गया. आपको केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का नापा ‘गो कोरोना गो’ तो याद ही होगा. बेचारे नारा देने वाले मंत्री जी खुद पॉजिटिव हो गए. कहीं भीड़ में बिना मास्क लगाए कलश यात्रा निकाली गई तो कहीं पानी पीलाकर इसका इलाज खोजा गया, लेकिन हार मानकर अंत में सबने विज्ञान की ही शरण लिया. आस्था और अंधविश्वास में अंतर होता है, लेकिन अंधविश्वास का यह वायरस अपने देश से खत्म ही नहीं होता.

2- नियम का पालन न करने वालों से

पिछले साल भी लॉकडाउन लगा था, लेकिन लोगों को एक साल में समझ नहीं आय़ा कि लॉकडाउन में हमें घर से बाहर नहीं निकलना है. मास्क लगाना है, हमने तो ठान लिया है कि हम किसी नियम का पालन नहीं करेंगे. पुलिस हाथ जोड़ती रही, डंडे भी बरसाए लेकिन हम ऐसे कैसे मान जाते. हमारे देश में कहा जाता है कि नियम होते ही हैं तोड़ने के लिए. खुद को रूल ब्रेकर्स बोलने वाले लोगों को तब समझ आता है जब कोरोना भी उनकी कोई बात ना मानकर सीधे घर में घुस जाता है. समझ नहीं आता कि ट्रेन की सीट के उपर लगे पंखा पर जूता बांधने वाले देश के लोग कोरोना वायरस को लेकर इतने लापरवाह कैसे हैं.

3- सांप्रदायिक हिंसा फैलाने वालों से

एक तरफ लोग कोरोना वायरस से मर रहे हैं. पूरे देश के लोग चिंता में है कि हम इस वायरस से कैसे उबरे, कैसे हराएं इस कोरोना को. वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जो नॉर्मल सी घटना को तिल का ताड़ बनाकर धर्म से जोड़कर हिंसा की चिंगारी लगा देते हैं. खुद तो किनारा कर लेते हैं और छोड़ देते हैं लोगों को आपस में मरने के लिए. हिंसा एक वायरस है जो कोरोना पर भी भारी पड़ सकता है. कोरोना फैलाने के लिए जब अलग-अलग समुदाय के लोगों पर आरोप लगे तो वहां हिंसा ने जन्म ले लिया.

4- आर्थिक तंगी से

कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन लगा. मजदूर से लेकर, छोटे कारोबारी और प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले लोगों के ऊपर आफत आ पड़ी. कंपनियों ने कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी. लोग शहर से अपने गांवों की तरफ रुख करने लगे. रिक्शा वाले, सब्जी वाले, दिहाड़ी मजदूर पैदल ही घर जाने लगे. कई लोग कोरोना से तो बच लेकिन आर्थिक तंगी के कारण अपनी जान गवां दी. सिर्फ कोरोनाकाल मे ही क्यों, नौकरी के लिए तो लोग सामान्य दिनों में भी परेशान रहते हैं.

5- भुखमरी से

जब लोगों के पास नौकरी नहीं रहेगी, पैसे नहीं रहेंगे तो भुखमरी तो आनी ही है. लॉकडाउन में ऐसे हालात का लोगों ने सामना किया कि कई-कई दिन भूखे रहे, बिस्कुट खा कर जिंदा रहे. कई को तो वो भी नसीब नहीं हुआ. हमारे देश में गरीबी सबसे बड़ा वायरस है. हालांकि लोगों तक राशन-पानी पहुंचाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन लोगों को सही जानकारी की कमी थी.

6- अफवाह फैलाने वालों से

अफवाह एक ऐसा वायरस है जो एक बार फैल गया तो समेटना बहुत मुश्किल हो जाता है. याद है लोग कोरोना का इलाज करने वाले डॉक्टर और नर्स को ही मारना शुरू कर दिए थे. सोशल मीडिया पर कोरोना के इलाज के लिए इतने तरह की अफवाह फैली है कि पूछिए मत. कभी नीम को पीसकर पीना तो कभी नींबू से इलाज. कभी अजवाइन की पोटली तो कभी शराब का सेवन. इन अफवाहों से इलाज तो हुआ नहीं नुकसान जरूर हो गया. अफवाह का असर यह रहा कि लोग वैक्सीन लेने से डरने लगे.

7- आपदा में अवसर यानी करप्शन

भाई इन लोगों से हाथ जोड़े. इनकी आत्मा मर चुकी है. जब लोग अपनों को खो रहे हैं. दब लोग दर्द से चिल्ला रहे हैं उस समय में भी दवाइयों की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है. एक-एक इंजेक्शन की 6 गुना कीमत. ऑक्सीजन के लिए मुंह मांगी कीमत. शवों से कफन उतारकर बेचना, नकली रेमडेसिवीर को बेचना. जांच में इस्तेमाल की गई स्टिक को दोबारा इस्तेमाल करना. कई डॉक्टर भी ऐसे जिन्होंने फोन पर इलाज करने की फीस डबल कर दी. नकली कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट बनाकर लोगों को बेवकूफ बनाना.

8- शिक्षा की कमी से

सोचिए इस समय जो बच्चे स्कूल नहीं जा रहे कॉलेज नहीं जा रहे वो क्या खो रहे हैं. उनका घर में रहना मजबूरी है लेकिन उनकी पढ़ाई भी जरूरी है. कई स्कूलों ने मनमानी फीस वसूली. कई ने प्राइवेट कोचिंग खोलकर पैसा बनाना चालू कर दिया. सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि बच्चों की पढ़ाई चलती रहे. देश के लोग शिक्षित होंगे तभी जाकर देश का विकास संभव है. आज भी कई बच्चे पढ़ नहीं पाते. हर बच्चे को शिक्षित होना बेहद जरूरी है.

9- राजनीति चमकाने वालों से

राजनीति में सब जायज है. कोरोना जब चरम पर था तो चुनाव हो रहे थे. नेता प्रचार-प्रसार करने के लिए रैलियां कर रहे थे. हम किसी एक पार्टी की बात नहीं कर रहे, क्योंकि नेता को अपनी कुर्सी सबसे ज्यादा प्यारी होता है चाहें वह किसी भी पार्टी का क्यों ना हो. नगर पंचायत चुनाव कराए गए, शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई जिनमें से कई की मौत हो गई. बंगाल चुनाव का हाल तो आपको पता ही है. सबको अपनी कुर्सी की पड़ी थी जनता की नहीं. सब एक तरफ और राजनीति एक तरफ.

10- क्राइम करने वालों से

कोरोना काल में भी महिलाओं से अपराध कम नहीं हुए. कोरोना पॉजिटिव के साथ रेप, पति के साथ अस्पताल पहुंची महिला के साथ छेड़खानी. फोन कॉल पर ठगी, ऑक्सीजन और एंबुलेंस के नाम धोखाधड़ी खूब चली. अस्पतालों में भी लापरवाही के मामले सामने आए. समझ नहीं आता कि पर जब गंगा में लाशें बह रही थीं. जब रेत और मिट्टी में शव दफनाए जा रहे थे, तब शवों से कफन चुराने वाले वे लोग कौन थे. आपकी बात सही है सरकार नाकाम रही, कोरोना वायरस के रोक थाम में फेल रही, लेकिन इन 9 वायरस को फैलाने वाले लोगों ने भी कोरोना काल में कोई कसर नहीं छोड़ा. सरकार को कोसने के लिए आप आजाद हैं लेकिन इनकी गलतियों पर पर्दा कौन डालेगा.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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