New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 24 अप्रिल, 2020 09:40 PM
हिमांशु सिंह
हिमांशु सिंह
  @100000682426551
  • Total Shares

किताबें कुछ कहना चाहती हैं,

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं.

किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं,

किताबों में खेतियां लहलहाती हैं.

किताबों में झरने गुनगुनाते हैं,

परियों के किस्से सुनाते हैं.

किताबों में राकेट का राज़ है,

किताबों में साइंस की आवाज़ है.

किताबों में कितना बड़ा संसार है,

किताबों में ज्ञान की भरमार है.

क्या तुम इस संसार में,

नहीं जाना चाहोगे.

किताबें कुछ कहना चाहती हैं,

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं.

सालों पहले सफ़दर हाशमी की लिखी ये पंक्तियां मुझे जादू सरीखी लगीं. किताबों से प्रेम हो गया था मुझे. लोगों ने कहा किताबें दोस्त होती हैं, मैंने मान लिया. फिर उन्होंने कहा किताबें गुरू हैं, मैंने वो भी मान लिया. पर अंत में निष्कर्ष पाया कि किताबें चाहे दोस्त हों चाहे गुरू, एक सीमा के बाद अधिकांश किताबें उस कुंठित मास्टर की भूमिका में आ जातीं हैं जिसके लिए 12 का मतलब छह दूनी बारह होता है, और जो आठ और चार को जोड़कर बारह बनाने वाले को कनखियों से देखता है.

Books, Social Media, Coronavirus, Lockdown किताबों से दुनिया को फायदा तो पहुंचा ही मगर साथ ही इससे दुनिया का नुकसान भी खूब हुआ

लॉक डाउन के इस समय तमाम लोग हैं जो किताब पढ़ रहे हैं उन्हें अपनी अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पर डाल रहे हैं. लोगों को ऐसा करते देख बरबस ही लगा कि किताबें अच्छी हों या बुरी, पर ओवररेटेड जरूर हैं. सच तो ये है कि दुनिया की सर्वाधिक पवित्र किताबों ने दुनिया को सबसे ज्यादा बर्बाद किया है.

जगत माफिया रामाधीर सिंह के अंदाज़ में कहें तो सनीमा का तो पता नहीं, पर जब तक दुनिया में किताबें हैं, लोग मूर्ख बनते रहेंगे.

क्या ये कहना गलत होगा कि दुनिया को सबसे ज्यादा धर्मों ने बांटा है. दुनिया के सभी धर्म-मज़हब दरअसल कुछ साहित्यिक रचनाओं की बेहिसाब बढ़ी हुई फैन फॉलोइंग का नतीजा हैं? दरअसल यही किताबें आज दुनिया में फसाद की सबसे बड़ी वजहें हैं. बाकी रही-सही कसर उस दढ़ियल ने पूरी कर दी, जो खुद मार्क्सवादी नहीं था.

शुरुआती किताबें दुनिया में ज्ञान के संकलन हेतु आईं, पर जल्दी ही इनका हाल विज्ञान सरीखा हो गया, और आज जब मैं विलियम शेक्सपियर का ये बयान कि, 'Nothing is a good or bad but thinking makes it show.' पढ़ता हूं, तो ये मुझे विज्ञान और किताब, दोनों पर सही लगता है. महसूस होता है एक शोध किताबों के वरदान या अभिशाप होने के विषय पर होना चाहिए.

किताबें, जो पहले जहालत दूर करतीं थीं, बाद में लोगों को जाहिल बनाने के काम में उपयोग की जाने लगीं. इनके द्वारा पूरी की पूरी आबादी का ब्रेनवाश किया जाता रहा. किताबें दुनिया में औजारों की तरह आईं और हथियारों की तरह उपयोग की गईं. फिर एक समय के बाद किताबें हथियार बन गईं और उन्होंने किताबी हथियारों की होड़ को जन्म दिया. किताबों ने शोषण के तमाम सिद्धांतों को उचित ठहराने के उपाय किये, क्योंकि समाज में ये भ्रम फैलाया जा चुका था कि छपे हुए अक्षर अकाट्य होते हैं.

ये संभवतः मेरी व्यक्तिगत नाराजगी और नासमझी है, पर मैं कहूंगा कि किताबें पढ़कर इंसान जाहिल हो जाता है. उसकी बुद्धि कुंद हो जाती है. उसकी विचार प्रक्रिया सीमित हो जाती है और संभावनाएं खत्म होने लगती हैं. विरोधाभास यहां ये है, कि ये अनुभव मुझे किताबों के सानिध्य में ही मिले.

किताबों ने दुनिया के बेहतरीन इंसानों को उनकी अच्छाई दुनिया में खर्च करने से रोका, और उन्हें एस्केप रुट दिया. किताबों ने उनकी अच्छी भावनाओं को एक तरह से सेफ्टी वॉल्व मुहैया कराया, जिसके चलते दुनिया और बेहतर होने से रह गयी. बाकी जिन्हें दुनिया बिगाड़नी थी, उन्हें वैसे भी किताबों से कोई ज्यादा काम नहीं था, तो वो कभी भटके नहीं, और दुनिया को जी भर के बिगाड़ा.

शास्त्रों को इसमें थोड़ी छूट दे भी दें, पर साहित्य के लिए ये शत-प्रतिशत सही है. फिलहाल, किताबों के बारे में ये मेरी व्यक्तिगत राय है. आप इनसे असहमत हो सकते हैं, इसका विरोध कर सकते हैं. विरोध की ये स्वीकार्यता मुझे किताबों से ही मिली है.

ये भी पढ़ें -

वे भ्रम जो कोरोना ने तोड़े, वे सबक जो कोरोना ने दिए!

Coronavirus ने हमला करने के लिए 'AC' को बनाया है अपना हथियार!

World Earth Day 2020: पहली बार हम रोए तो पृथ्वी मुस्कुराई!

 

 

लेखक

हिमांशु सिंह हिमांशु सिंह @100000682426551

लेखक समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय