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Updated: 28 मार्च, 2020 03:29 PM
अभिषेक सिंह राव
अभिषेक सिंह राव
  @AbhishekSinghGRao
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कुछ दिन पहले तक रामायण (Ramayana) एवं महाभारत (Mahabharata) के कारण 80 एवं 90 के दशक की सुनी सड़कें हमें याद आती थी लेकिन कोरोनावायरस लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) के बाद आज सूनी सड़कों के कारण रामायण एवं महाभारत की याद आ रही हैं. 7 मार्च, दी कपिल शर्मा शो (The Kapil Sharma Show) में मेहमान थे, रामानंद सागर की रामायण से राम, सीता एवं लक्ष्मण के किरदार निभाने वाले अरुण गोविल, दीपिका चिखलिया एवं सुनील लहरी. बहुत से वाकयों के बीच एक वाकया उन्होंने यह भी बताया कि उस दौर में 22 से 30 प्रतिशत फ़ैन-मेल उन्हें पाकिस्तान से आती थी. 26 मार्च, लॉकडाउन के चलते सोशल मीडिया पर लोग दूरदर्शन पर रामायण एवं महाभारत के पुनः दूरदर्शन प्रसारण की मांग करने लगे.

27 मार्च, प्रकाश जावड़ेकर इस बात की पुष्टि करते हैं कि ‘28 मार्च से 'रामायण' का प्रसारण पुनः दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर शुरू होगा.’

प्रकाश जावड़ेकर के इस ट्वीट के बाद हर कोई अपने उस दौर को याद कर रहा है जब कुछ घंटों के लिए पूरा देश मानो ठहर सा जाता था. काम-काज बंद, यातायात ठप्प, सड़कें सुमसाम, हर कोई रामायण एवं महाभारत के माध्यम से अपने टीवी से चिपका रहता था. ख़ैर, मैं भी जब अपने माज़ी को याद कर रहा था तो मेरी ये जानने में रूचि बनी कि रामायण के वे फैन जो पाकिस्तान में रहते हैं उनके पास क्या कुछ ऐसी स्मृतियां हैं जो हमे जाननी चाहिए. मैंने मेरे एक पाकिस्तानी मित्र को फ़ोन लगाया. उसका नाम है धर्मेंद्र जो पाकिस्तान के पंजाब सूबे में बस्ती अमानगढ़, रहीम यार खान में रहता है.

मैंने जैसे ही उसको बताया कि ‘भारत सरकार कल से रामायण का री-टेलीकास्ट करने वाली है.’ तो उसने तुरंत मेरी बात उसके दादाजी मोहब्बत राम दास जी से करवाई जिन्होंने हिन्दू बस्ती को रामायण दिखाने के लिए खूब पापड़ बेले थे. मोहब्बत राम दास जी बताते हैं कि, 'वह 90 का दशक था जब एक रोज़ हमें पता चला कि पाकिस्तान में सोमवार शाम 7:30 बजे सोनी पर रामायण प्रसारित होगी. हम खुश तो हुए लेकिन दिक्कत थी कि बस्ती में किसी के भी घर डिश-रिसीवर नहीं था. और इसके लिए 5000 पाकिस्तानी रुपयों की जरुरत थी.

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चूंकि बस्ती में मिडिल क्लास से लोअर मिडिल क्लास तबके के लोग रहते थे इसलिए 5000 रुपया जमा करना किसी एक, दो या तीन घरों के बस की बात नहीं थी.तब हम सब बस्ती वाले इकट्ठे हुए और इस पर चर्चा की. आप मानेंगे नहीं लेकिन इस बातचीत के बाद, हर घर ने अपने सामर्थ्य से 50, 100 रूपये हमें दिए और इस तरह हम डिश-रिसीवर खरीद सकें.

वे आगे बताते हैं कि, 'हमारी बस्ती के पास में ही एक खाली मैदान था वहां हमने टीवी लगा दी और बस फिर क्या! सोमवार को 7:30 बजे नहीं कि बस्ती से बच्चे-बूढ़े-महिलाएं-नौजवान हरकोई टीवी के सामने आकर बैठ जाते थे. बस्ती में क़रीब 100 घर थे. रामायण वाले दिन महिलाएं अपना काम जल्दी खत्म कर लेती थी, आदमी काम-धंधा कर उजलत से घर आ जाते थे और बच्चों के तो मज़े ही मज़े थे. 7:30 से पहले किसी का कोई काम बाकी रह जाए या कहीं बाहिर जाना हो तब भी रामायण कोई नहीं छोड़ता था.'

मोहब्बत राम दास जी एक बात पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि 'हमने और भी बहुत सारी रामायणें देखी हैं लेकिन रामानंद सागर जी ने जिस तरह से किरदारों को चुना था और उन किरदारों ने जिस कदर काम किया, मतलब कमाल ही कर दिया. हमारे आँसू रोके नहीं रुकते थे जब हम राम-सीता-लक्ष्मण-भरत-हनुमान को टीवी पर देखते थे'

राम-राज्य के बारे में जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि, 'हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि राजा अपनी आवाम को पुत्र-तुल्य समझे. यदि वह ऐसा नहीं समझता है तो उस राजा को कोई हक़ नहीं है राज करने का, चाहे कोई भी मुल्क हो. प्रजा के लिए, प्रजा को राज़ी रखने के लिए रामजी ने अपनी पत्नी का भी त्याग किया था. अगर वे चाहते तो खुद सुख भोगने के लिए राजधर्म त्याग कर सकते थे लेकिन राजधर्म के खातिर उन्होंने अपने सुख-सुविधाओं-पत्नी का त्याग किया. सच्चा राजा वही है.

पाकिस्तान में रामायण के प्रभाव के बारे में बात करते हुए मोहब्बत राम दासजी कहते हैं कि, 'यहां के मुसलमान भी रामायण पसंद करते थे. उस दौर में हमारे आस-पास के मुसलमान अक्सर ऐसी बातें किया करते थे और आज भी करते हैं कि ‘अगर भाइयों का सलूख देखना हो तो राम-लक्ष्मण-भरत से सीखना चाहिए.’

वे आगे कहते हैं कि 'अब तो हमारे पास मोबाइल-कंप्यूटर आ गए हैं. मैंने रामानंद सागर की रामायण के तमाम एपिसोड्स कंप्यूटर में सेव कर रखे हैं और कितनी ही बार देख चूका हूँ फिर भी बार-बार देखने की तलब लगी रहती है.'

मोहब्बत राम दास बस्ती अमानगढ़ में काफ़ी चर्चित व्यक्ति हैं. वे सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रीय हैं. उन्होंने उर्दू में एक किताब लिखी है ‘मुक्ति का मार्ग’ जिसके लोग बखान करने से नहीं थकते.

मोहब्बत राम दास जी ने पहली बार टेलीकास्ट हुए रामायण के सभी एपिसोड्स के साथ-साथ सभी रिपीट एपिसोड्स भी देखे हैं. इसके बाद, जब रामायण खत्म हो गई, तो उन्होंने सीडी-डीवीडी में भी कई बार रामायण देखी. और जब कंप्यूटर आए, तो ख़ास रामायण देखने के लिए उन्होंने केवल कंप्यूटर-इंटरनेट सीखा. रामायण को देखकर उन्होंने अपने विचार लिखने के लिए टाइपिंग सीखी और टाइपिंग सीखने के कारण, उन्होंने तब भगवद-गीता का उर्दू में अनुवाद किया और कई किताबें लिखीं.

यूं देखें तो मोहब्बत राम दास जी के जीवन में रामानंद सागर की रामायण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

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लेखक

अभिषेक सिंह राव अभिषेक सिंह राव @abhisheksinghgrao

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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