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Updated: 14 मई, 2021 07:41 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहे देश में हर रोज कोई न कोई कोरोना संक्रमण से हार कर अपनी जान गंवा रहा है. देश में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मरीज अस्पतालों में हैं. कोरोना वायरस के कहर से स्थितियां ऐसी हो गई हैं कि एक अच्छा-भला सा दिखने वाला शख्स भी कब काल के गाल में समा जाए, पता ही नहीं चल पा रहा. कोरोना संक्रमण से जूझ रहे ये मरीज और परिजन पीड़ा के किस दौर से गुजर रहे हैं, इसे कोई नहीं समझ सकता है. सोशल मीडिया पर ऐसी कई दिल तोड़ने वाली कहानियां सामने आई हैं, जो कोरोना पीड़ितों का आखिरी संदेश बन गईं. इनमें से ही कुछ कहानियों को आपके सामने ला रहे हैं.

सोशल मीडिया पर ऐसी कई दिल तोड़ने वाली कहानियां सामने आई हैं, जो कोरोना पीड़ितों का आखिरी संदेश बन गईं.(प्रतीकात्मक फोटो)सोशल मीडिया पर ऐसी कई दिल तोड़ने वाली कहानियां सामने आई हैं, जो कोरोना पीड़ितों का आखिरी संदेश बन गईं.(प्रतीकात्मक फोटो)

कोरोना से हारती हुई मां के लिए बेटे ने गाया गाना

कोरोना संक्रमण की वजह से मौत के मुहाने पर पहुंच चुकी मां के लिए गाना गा रहे बेटे के मन में क्या चल रहा होगा, ये वह खुद ही बयान कर सकता है. कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहीं डॉक्टर दीपशिखा घोष ने ट्विटर पर अपना अनुभव साझा करते हुए लिखा कि आज अपनी शिफ्ट खत्म करने से पहले मैंने एक मरीज के परिजन को वीडियो कॉल की. हमें पता था कि वो अब बच नहीं सकेंगी. अगर कोई मरीज ऐसा करने को कहता है, तो हम आमतौर पर करते रहते हैं. इस मरीज के बेटे ने अपनी मरती हुई मां से बात करने के लिए मुझसे कुछ समय मांगा. इसके बाद उसने अपनी मां के लिए 'तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई' गाना गाया. मैं फोन पकड़े वहीं खड़ी होकर कभी उस मरीज मां को तो कभी उसके बेटे को देख रही थी. इस दौरान वार्ड की नर्से भी आ गईं, जो चुपचाप खड़ी रहीं. वह गाने के बीच में रोने लगा, लेकिन उसने गाना पूरा किया. बेटे ने मां की नब्ज के बारे में जानकारी ली और मुझे शुक्रिया कह कर फोन रख दिया. मैं और नर्सें वहीं खड़े थे. हमने सिर हिलाया, हमारी आंखें नम थीं. नर्सें अपनी जगहों पर चली गईं. इस गाने के मायने हम सबके लिए बदल गए थे, कम से कम मेरे लिए तो बदल ही गए थे. यह गाना हमेशा उनका रहेगा.

ऐसे समय में जब कई लोग अपने माता-पिता की परवाह नहीं करते हैं, यह घटना दिल को अंदर तक छू जाती है. कोरोना संक्रमण की वजह से रोजाना कोई न कोई अपने माता या पिता को खो रहा है. इस पीड़ा से गुजर रहे लोगों से मां-बाप की कीमत पूछेंगे, तो आपको अंदाजा हो जाएगा कि लोग अपने जीते जी किन जरूरी चीजों को खुद से दूर कर देते हैं.

जागरुक शख्स भी कोरोना से संक्रमित हो सकता है

कोरोना संक्रमण को लेकर लोगों में अभी जागरुकता की कमी साफ देखी जा सकती है. आपको आज भी लोग बिना मास्क के सड़कों पर घूमते मिल जाएंगे. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में रोटी बैंक चलाने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कांत तिवारी ने भी अपनी मौत से पहले सोशल मीडिया पर इन आदतों के बारे में ही एक वीडियो साझा किया था. उन्हें नहीं पता था कि यह उनका आखिरी संदेश साबित हो जाएगा. वह पहले टायफाइड से पीड़ित थे, जिसके बाद उन्हें कोरोना हुआ था. मौत से जंग लड़ रहे किशोर कांत तिवारी ने अस्पताल के बेड से फेसबुक पर लाइव पर कोरोना के बारे में अपनी राय और अनुभव साझा किए थे. वीडियो में तिवारी ने कहा था कि लोग अपनी जान की सुरक्षा का खुद ख्याल रखें. कोरोना भयावह रूप ले रहा है. मैंने कोरोना को जाना और समझा है. इसे हल्के में न लें, क्योंकि यह पैर पसार चुका है. मैं बहुत पीड़ा में हूं. बहुत कष्ट झेल रहा हूं. मैं जो दर्द झेल रहा हूं, वो आप कभी न झेलें, इसलिए चाहता हूं कि आप कोरोना को हल्के में न लें.

अपने आखिरी संदेश में किशोर कांत तिवारी ने लोगों से उन सभी चीजों को अपनाने की बात कही, जिससे कोरोना से बचा जा सकता है. उन्होंने लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क वगैरह का इस्तेमाल करते रहने की सलाह दी. भारत में कोरोना की दूसरी लहर आने की एक बड़ी वजह कोविड-एप्रोपिएट बिहेवियर में कमी भी रहा. बीते साल किशोर ने कोरोनाकाल में वाराणसी के कोरोना अस्पतालों में मरीजों को खाना पहुंचाया था. लेकिन, इस साल उन्होंने अप्रैल महीने में कोरोना से आखिरी सांस ली.

अच्छे इलाज की सबको है जरूरत

कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं बुरी तरह से चरमरा गई हैं. अच्छे इलाज या ऑक्सीजन या समय से दवाईयां न मिल पाने पर कई जानें जा चुकी हैं. दिल्ली के रहने वाले अभिनेता और यूट्यूबर राहुल वोहरा भी इसी का शिकार हुए. सिस्टम के लचर रवैये ने उनकी जान ले ली. राहुल वोहरा ने अपनी मौत से पहले ही उसकी भविष्यवाणी कर दी थी. पति-पत्नी के रिश्तों में उलझनों को सुलझाने के वीडियो बनाने वाले राहुल वोहरा ने अपनी मौत से चार दिन पहले एक पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने लिखा था कि मुझे भी अच्छा इलाज मिल जाता, तो मैं भी बच जाता. उन्होंने पोस्ट में अपनी डिटेल्स भी साझा की थीं और आखिर में लिखा था कि जल्द जन्म लूंगा और अच्छा काम करूंगा. अब हिम्मत हार चुका हूं. इस पोस्ट में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को भी टैग किया था. अच्छे इलाज के अभाव में दम तोड़ने वाले राहुल वोहरा अकेले नही हैं. भारत में हजारों की संख्या में लोग सही समय पर अच्छा इलाज न मिलने की वजह से जान गंवा चुके हैं.

चिकित्सा व्यवस्था को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच हो रही लड़ाई में आम से लेकर खास इंसान तक पिस रहा है. नेताओं का ध्यान लोगों से हटकर राजनीतिक लाभ लेने के लिए व्यवस्थाओं पर सवाल उठाकर नंबर बढ़ाना भर रह गया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए. लेकिन, अपने ही राज्य में लोगों को अच्छा इलाज तक मुहैया नहीं करवा सके हैं. जितना हो सके इस वायरस से बचें.

हौसला भी स्वास्थ्य सेवाओं के आगे तोड़ रहा दम

डॉक्टरों की ओर से लगातार बताया जा रहा है कि उम्मीद की एक किरण भी आपको कोरोना संक्रमण से जीतने में मदद कर सकती है. लेकिन, कई बार उम्मीद और साहस भी लोगों के काम नहीं आ पाता है. यहां तक की कोरोना वायरस से लड़ने में समय पर इलाज मिलने पर भी लोग नहीं बचा पा रहे है. डॉक्टर मोनिका लंगेह ने कोरोना से जंग लड़ रही एक महिला का एक फिल्मी गाने पर झूमते हुए वीडियो साझा किया था. गाने पर झूमती यह कोरोना से जंग हार गई. डॉक्टर ने ट्विटर पर लिखा कि वह केवल 30 साल की है और उसे आईसीयू बेड नहीं मिल सका है. हम बीते 10 दिनों से उसे कोविड इमरजेंसी में रखे हुए हैं. वह NIV support पर है, उसे रेमडेसिविर और प्लाज्मा थेरेपी मिल चुकी है. वह एक मजबूत इच्छा शक्ति से भरी हुई महिला है. उसने मुझसे कोई गाना प्ले करने को कहा और मैंने इसे मान लिया. सीख- कभी उम्मीद का साथ मत छोड़ो. इस वीडियो के बैकग्राउंड में शाहरुख खान की फिल्म का गाना 'लव यू जिंदगी' बज रहा है. महिला को बाद में आईसीयू बेड मिलने के बाद भी बचाया नहीं जा सका.

कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्थाएं बुरी तरह से चरमरा गई हैं. लोगों को जरूरत के बाद भी अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहा है. सही समय पर बेड न मिलने के बाद लोगों का हौसला टूट रहा है. उम्मीद की हर किरण स्वास्थ्य सुविधाओं के आगे धुंधली होती जा रही है. कोविड 19 से बचने का एक ही रास्ता दिखाई देता है कि आप कोविड-19 संक्रमित न हों.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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