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Updated: 05 जनवरी, 2019 08:02 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI ने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को एक नोटिस जारी करते हुए कहा है कि वह सभी PhotoDNA तकनीक का इस्तेमाल करें, जिससे तस्वीरों को ट्रैक किया जा सके. सीबीआई इसके जरिए फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के डेटाबेस में जमा सभी तस्वीरों को स्कैन करना चाहती है, ताकि संदिग्धों का पता लगाया जा सके. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि अगर ऐसा होता है तो ये निजता का हनन होने के साथ-साथ इंटरनेट फ्रीडम का उल्लंघन भी होगा.

सीबीआई ने ये नोटिस सीआरपीसी की धारा 91 के तहत भेजा है. नोटिस में कहा गया है- 'जांच के उद्देश्‍य से आपसे गुजारिश की जाती है कि सीबीआई जिन संदिग्‍धों की तस्‍वीरों को संलग्‍न कर भेज रहा है, उस पर PhotoDNA चलाया जाए. यह जानकारी जांच के लिए तुरंत चाहिए.' PhotoDNA से तस्वीरों के स्कैन को लेकर यूरोप में भी बहस छिड़ी हुई है और अब भारत में ये बहस का मुद्दा बन चुका है.

सीबीआई, सोशल मीडिया, निजता, सुरक्षासीबीआई PhotoDNA तकनीक के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के डेटाबेस को स्कैन करना चाहती है.

सबसे पहले समझिए क्या है PhotoDNA

PhotoDNA तकनीक के इस्तेमाल से क्या फायदे-नुकसान होंगे, ये जानने से पहले इस तकनीक को समझना जरूरी है. यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा डिजाइन की गई तकनीक है, जिसे एक्सक्लूसिव तौर पर सिर्फ बच्चों के शोषण और चाइल्ड पोर्नोग्राफी को ट्रैक करने के मकसद से डिजाइन किया गया था. इसके तहत सिस्टम किसी भी तस्वीर का एक डिजिटल सिग्नेचर या हैश बनाता है और उसे आधार मानते हुए अन्य तस्वीरों को स्कैन किया जाता है. फेसबुक और ट्विटर से चाइल्ड पोर्नोग्राफी के कंटेंट हटाने के लिए इस तकनीक का खूब इस्तेमाल किया जाता है. माइक्रोसॉफ्ट के अनुसार चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिए तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, जो मुफ्त भी है, लेकिन अन्य किसी मकसद से इसके इस्तेमाल की इजाजत नहीं है.

सीबीआई, सोशल मीडिया, निजता, सुरक्षासिस्टम किसी भी तस्वीर का एक डिजिटल सिग्नेचर या हैश बनाता है और तस्वीरों के स्कैन करता है.

तो फिर अब क्या दिक्कत है?

अभी तक इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्राफी का पता लगाने के लिए होता था, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई इसका इस्तेमाल जांच अन्य मामलों में भी करना चाहती है. अगर ऐसा होता है तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सभी तस्वीरों को स्कैन किया जाएगा, जिसमें आपकी तस्वीरें भी होंगी. इस स्कैन में न सिर्फ संदिग्धों पर सर्विलांस होगा, बल्कि इसमें वो लोग भी शामिल होंगे जो संदिग्ध नहीं हैं. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि सर्विलांस की ये तकनीक निजता के हनन के साथ-साथ इंटरनेट की आजादी का भी उल्लंघन करेगी.

सुरक्षा जरूरी या निजता?

ये तो हर कोई जानता है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अधिकतर चीजें निजी नहीं होती हैं. बल्कि यूं कहें कि लोग अपनी निजी चीजें सोशल मीडिया पर शेयर नहीं करते. अगर सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सीबीआई की गुजारिश मान लेते हैं तो इससे निजता का हनन तो होगा, लेकिन ये भी समझना जरूरी है कि इससे संदिग्ध अपराधियों की पहचान करना आसान हो जाएगा. हो सकता है बहुत सारे अपराधी कानून के शिकंजे में आ जाएं और अपराध की संख्या में थोड़ी कमी आ जाए.

PhotoDNA पर यूरोप में जोरदार बहस चल रही है और सीबीआई के नोटिस ने भारत में भी ये बहस पैदा कर दी है. यूरोपियन प्राइवेसी रेगुलेशन तो सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा इस तकनीक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है. अगर PhotoDNA को लागू नहीं किया जाता है तो हमारी निजता तो बनी रहेगी, लेकिन साथ ही बहुत से अपराधी भी पकड़ से बाहर रहेंगे. पिछले ही साल सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है. ऐसे में PhotoDNA तकनीक को इस्तेमाल करने की सीबीआई की ये राह आसान नहीं होगी. अब ये आपको और हमें मिलकर सोचना है कि सोशल मीडिया पर हमारी निजता ज्यादा जरूरी है या वास्तविक दुनिया में हमारी सुरक्षा?

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