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Updated: 05 जनवरी, 2022 06:46 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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बधाई हो प्रीत (Preet Chandi) तुमने दक्षिणी ध्रुव (South Pole) तक सोलो ट्रिप (Solo Trip) करके इतिहास कायम कर दिया है लेकिन हमें तो अकेले ट्रेवल करने भी इजाजत नहीं मिलती है. अगर मिलती भी है तो उसमें 10 शर्ते रख दी जाती हैं.

असल में ब्रिटिश मूल की सिख सेना अधिकारी प्रीत चंडी (Sikh army officer Preet Chandi) सोलो ट्रेवल करके दक्षिणी ध्रुव पहुंच गईं हैं. प्रीत पहली "गैर श्वेत महिला” हैं जिन्होंने अकेले दक्षिणी ध्रुव का सफर तय किया है. ऐसा करके उन्होंने इतिहास रच दिया है. इतिहास रचने के बाद प्रीत का कहना है कि "अभी बहुत सारी भावनाओं को महसूस कर रही हूं ..."

हर तरफ सिख सेना अधिकारी प्रीत चंडी की चर्चा हो रही है, क्योंकि वो अकेले सफर करके दक्षिणी ध्रुव पहुंच गईं है जहां इतनी ठंड रहती है कि किसी भी इंसान की कुल्फी जम जाए, जहां कि हवाएं इतनी शुष्क रहती हैं कि स्किन छिल जाए लेकिन मानना पड़ेगा कि प्रीत ने सच में बहुत हिम्मत दिखाई है.

जिन लोगों को लगता है कि अकेले ट्रिप करना कौन सी बड़ी बात है वो जान लें कि अंटार्कटिका पृथ्वी पर सबसे ठंडा, सबसे ऊंचा, सबसे शुष्क और सबसे हवा वाला महाद्वीप है. वहां कोई भी स्थायी रूप से नहीं रहता है. ऊपर से जब वहां अकेले पहुंचने वाली लड़की हो तो बात और चिंताजनक हो जाती है.

british indian, woman traveller, solo travel, south pole, antartica, british sikh woman लो भाई ऐसा अगर प्रीत चंडी के घरवालों ने उनके साथ किया होता तो वे क्या इतिहास रच पातीं?

हम अगर कहीं अकेले घूमने का नाम लें तो पहले ही मना कर दिया जाएगा यही सोचकर ज्यादातर लड़कियां सोलो ट्रिप के बारे में घरावलों से पूछती ही नहीं हैं. सोलो ट्रिप की तो बात ही छोड़ दीजिए यहां को कहीं अकेले ट्रेन या बस से सफर भी नहीं करने दिया जाता. ऐसे में सोलो ट्रेवल का सपना तो पूरा होने से रहा. शादी से पहले पापा, मम्मी, भाई मना कर देते हैं और शादी के बाद पति कहीं अकेले नहीं जाने देते. बहाना होता है कि परवाह है जैसे अपनी बेटी पर भरोसा ही नहीं है.

लड़कों को है आजादी

अगर घर का बेटा कहीं जाने की बात करता है तो उसे रोका-टोका नहीं जाता. कोई इतना पूछता भी नहीं है कि कैसे जा रहे हो? किसके साथ जा रहे हो लेकिन अगर लड़की को अकेले ट्रेवल करना पड़े तो सबसे पहले तो घरावाले पूरी कोशिश करते हैं कि कोई साथ में चला जाए. अगर फिर भी कोई नहीं जा पता तो कोशिश की जाती है कि कोई स्टेशन तक तो छोड़ ही आए.

सिर्फ स्टेशन ही क्यों जो बंदा छोड़ने जाता है उसे सीट तक बिठा कर और समान जमाकर ही आता है. ट्रेन चलने लगती है तब तक वह लड़की को यही समझाता है कि किसी ने बात मत करना, गेट पर मत जाना, वॉशरूम में देरी मत जाना, कैब से ही घर जाना, लोकेशन शेयर कर देना...इसके बाद लड़की के पास घरवालों के तबतक हर एक घंटे पर फोन आता रहता है जब तक वह अपनी मंजिल पर न पहुंच जाए. वहीं लड़का जब चाहे अकेले या अपने दोस्तों के साथ ट्रिप पर जा सकता है. उसे कोई मनाही नहीं होती है. वहीं ट्रेन या फ्लाइट का समय भी सुबह 8 बजे और शाम 7 बजे तक ही होना चाहिए... 

कुछ लड़कियों ने बाताया ट्रेवल को लेकर उनका एक्सपीरियंस कैसा रहा?

स्कूल टीचर लीला का कहना है कि मुझे कभी किसी ने अकेले छोड़ा ही नहीं...ना शादी से पहले और ना शादी के बाद. एक बार मुझे उड़ीसा से दिल्ली ट्रेन से आना था. मां मायके में थी और ससुराल आना था. मैंने जैसे-तैसे मेरे पापा को तो मना लिया लेकिन मेरे पति ने आखिर में मना ही कर दिया. आज भी सिर्फ मैं बच्चों के स्कूल या लोकल मार्केट में ही अकेल जा सकती हूं. शहर से बाहर जब भी जाना होता है कोई न कोई परिवार का सदस्य जरूर साथ होता है. मेरे घरवालों को मुझे अकेले छोड़ने में डर लगता है. शुरु में मुझे लगा कि ये उनका मेरे लिए उनका प्यार है लेकिन असल में शायद उन्हें मेरे पर भरोसा ही नहीं है कि मैं अकेले कहीं आना-जाना कर सकती हूं. हालांकि मैं पढ़ी-लिखी हूं, बच्चों को पढ़ाती हूं लेकिन अपने लिए ही घरवालों को समझा नहीं पाई.

वहीं रैना का कहना है कि पहली बार मैं घर से दिल्ली आई थी. हालांकि उसके पहले भी मैं घरवालों के साथ दिल्ली आ चुकी थी. इसके बाद भी कोई नहीं चाहता था कि मैं ट्रेन से अकेले सफर करूं. अकेले सफर करने के नाम पर सबका मुंह बन गया था. स्टेशन कैसे जाओगी? सामान भारी होगा और सीट का पता कैसे करोगी. मैंने जिद कर ली थी कि मैं अकेले जा सकती हूं, इसके बाद तय हुआ कि कोई मुझे सीट तक बिठाने आएगा और फिर दिल्ली में रिसीव करने...इसके बाद मुझे अकेले ट्रेन से जाने दिया गया. हालांकि अब मैं अकेले ट्रेवल कर लेती हूं लेकिन अनजान जगह अब भी अकेले नहीं जाने दिया जाता है.

सरिता का कहना है कि मैं कई बार काम के सिलसिले में अकेले सफर किया है. पहली बार पापा छोड़ने आए थे, लेकिन आज भी जब किसी अजनबी शहर में जाना होता है तो वो कहते हैं कि साथ में किसी सहकर्मी को साथ लेलो. उसमें भी शर्त यह है कि वो सहकर्मी महिला ही होनी चाहिए. आज भी अगर सुबह जल्दी या रात की ट्रेन होती है तो पापा छोड़ने जरूर आते हैं. मैं जब तक घर ना आ जाऊं उन्हें मेरी चिंता लगी रहती है.

मोना कहती हैं कि मैंने कभी अकेले तो ट्रेवल नहीं किया. आज तक मैं कहीं अकेले नहीं गई. घर से तो मैं अकेल ही गई थी. ऐसे में माता-पिता को बहुत डर लग रहा था, क्योंकि 10 दिन का स्टडी ट्रिप था. बार-बार घर से फोन आ रहा था. किस होटल में रूके हो, वहां सब सेफ है कि नहीं. मुझे मम्मी नीचे जब छोड़ने आई थी तो रोने ही लगी थी. दो महीने पहले दोस्तों के साथ ग्रुप में हिल स्टेशन पर गई थी. उसके लिए भी बड़ी मुश्किल से घरवाले माने. उन्होंने सबका नंबर लिया और सबसे बात की. घरवाले हर घंटे में फोन करते हैं और हर लोकेशन ट्रैक करते हैं. उन्हें डर रहता है कि कहीं ऊंच-नीच न हो जाए, तबिय़त ना खराब हो जाए. यह सारी दिक्कत लड़कियों के साथ ही होती है. मेरे भाई के साथ ऐसी कोई परेशानी नहीं होती. वो तो जब चाहें कहीं भी आ-जा सकता है. असल में जब लड़कियां घर से दूर रहती हैं तो मम्मी-पापा को चिंता लगी रहती है.

लो भाई ऐसा अगर प्रीत चंडी के घरवालों ने उनके साथ किया होता तो वे क्या इतिहास रच पातीं? लड़िकियों की सुरक्षा की सबसे बड़ी रूकावट है, इसलिए परिवार वाले उन्हें कहीं भी अकेले नहीं भेजना चाहते. हालांकि अब कई लोग अपनी बेटियों पर भरोसा करके शर्तों के साथ अकेले ट्रेन में भेजने लगे हैं लेकिन सोलो ट्रिप पर जाने की इजाजत आज भी नहीं है.

 
 
 
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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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