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Updated: 03 जून, 2018 03:22 PM
अर्घ्‍या बनर्जी
अर्घ्‍या बनर्जी
 
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कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलती.

मैंने पश्चिम बंगाल बोर्ड से पढ़ाई की थी. जब 1993 में मैंने दसवीं और 1995 में 12वीं बोर्ड का टॉपर हुआ था, तो मैं रातों-रात अपने शहर में एक सेलिब्रिटी बन गया था. कई पत्रकार मेरे घर पहुंच गए. समाचार पत्रों में मेरे बारे में पूरे विस्तार से छापा गया- मैं रोजाना कितने घंटे पढ़ता था. मैं जीवन में आगे क्या बनना चाहता हूं.

तब से, 25 साल बीत चुके हैं. लेकिन मीडिया, और आम लोग बोर्ड परीक्षा के परिणामों के बारे में वैसे ही पागल रहते हैं जैसे वे तब थे. टॉपर्स का जश्न मनाना खेल का सिर्फ एक हिस्सा है. बोर्ड परीक्षा के सभी पहलुओं पर कई रिपोर्ट हैं. कैसे एक पुलिस ने बोर्ड परीक्षा के एक छात्र को परीक्षा केंद्र तक पहुंचने में मदद की. रिक्शा खींचने वाले के बेटे को 93 प्रतिशत नंबर मिले.

हालांकि, मैं उन छात्रों की उपलब्धि को कम नहीं करना चाहता. लेकिन फिर भी सच्चाई यही है कि ये तथाकथित "उपलब्धियां" हमारे सिस्टम के भीतर की एक बड़ी खामी को छुपा लेती हैं. बोर्ड परीक्षा के नतीजों का ये जश्न ये बताने के लिए होता है कि आगे का भविष्य अब कैसा होगा. लेकिन यकीन करिए ऐसा नहीं है. बिल्कुल नहीं.

हमारे अधिकांश बोर्डों की बोर्ड परीक्षा बच्चों की याददाश्त का परीक्षण करती है. वे तर्कसंगत कारण और सोचने की क्षमता की जांच नहीं करते हैं. न ही वे छात्रों की नई समस्याओं को हल करने की क्षमता का परीक्षण करते हैं. और वे अपने लेखन के माध्यम से कुछ नया व्यक्त करने की क्षमता का भी परीक्षण नहीं करते हैं. कई बोर्डों में, पिछले साल के प्रश्न इस बात का संकेत देते हैं कि इस साल किस तरह के प्रश्न आ सकते हैं. कभी-कभी तो प्रश्न भी शब्दशः दोहराए जाते हैं. ऐसी परिस्थिति में, ऐसे संभावित प्रश्नों के उत्तर याद कर लेना फायदेमंद साबित होता है. यहां तक कि अगर प्रश्न दोहराए नहीं जाते हैं, तो वे अक्सर सीधे पाठ्यपुस्तकों से ही पूछे गए होते हैं, कोई सोच या विश्लेषण की आवश्यकता नहीं होती है.

लेकिन जीवन और काम में अच्छा करने के लिए हमें हमेशा सोचने और अपने कौशल को बढ़ाने की आवश्यकता होती है. हमें एक नई समस्या को हल करने की क्षमता की आवश्यकता होती है. हमें हाथ में आए नए मुद्दों के बारे में स्पष्ट रूप से संवाद करने की क्षमता की आवश्यकता है. उनमें से किसी भी चीज का हमारी बोर्ड परीक्षा में परीक्षण नहीं किया जाता है.

borad exam, resultपरीक्षा दिमाग का नहीं याद्दाश्त का खेल है

एक तरह से इन बोर्ड परीक्षाओं के आस-पास उन्माद को जन्म देकर मीडिया इस भ्रम को कायम रखने में मदद करता है कि स्कूल में बच्चा कुछ सीख रहा है. यह साधारण नागरिकों को कुछ तसल्ली देता है. बोर्ड परीक्षा हमारे बचपन से परीक्षा तक स्कूली शिक्षाओं से प्राप्त जानकारी की समाप्ति है. जब हम इसे मनाते हैं, तो हमें अभी तक जो शिक्षा प्राप्त हुई है उसे हम अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता दे रहे होते हैं.

सच कहा जाना चाहिए. हमें अपने स्कूलों में ज्यादा शिक्षा नहीं मिलती है. पीआईएसए या टीआईएमएमएस जैसे अंतरराष्ट्रीय टेस्ट में, भारत बहुत नीचे है. पिछले साल जब बिल गेट्स भारत आए थे, तो उन्होंने कहा था कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली से बहुत ही कम उम्मीद करते हैं. एक तरह से, यह एक समस्या है. हम शिक्षा में होने वाले धोखे के बारे में सवाल नहीं करते हैं. हम खुश रहते हैं अगर हमारे बच्चे किताब के कुछ पन्नों को याद कर लेते हैं. हम अपने शिक्षाविदों, राजनेताओं और स्कूल के नेताओं से अधिक मांग नहीं करते हैं.

बोर्ड परीक्षाओं को कवर करने का एक अच्छा तरीका ये होगा कि उसका कुछ गहन विश्लेषण किया जाए. बोर्ड परीक्षा के पिछले टॉपर्स का कैरियर क्या रहा है?  जो लोग टॉप नहीं कर पाए उनकी तुलना में, टॉप करने वाले छात्रों को जीवन में कितनी वित्तीय सफलता प्राप्त हुई? उनमें से कितने लोगों ने अलग राह पकड़ी और दुनिया को बेहतर जगह बनाने में योगदान दिया है?

संभव है कि कुछ बोर्ड परीक्षा टॉपर्स ने वास्तव में जीवन में अच्छा प्रदर्शन किया हो. लेकिन ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उनके पास कुछ अतिरिक्त कौशल थे. अधिक समस्या सुलझाने की क्षमता, बेहतर संचार कौशल, अधिक चतुरता. उनकी सफलता बोर्ड परीक्षा प्रणाली के परीक्षण के कौशल के कारण नहीं हो सकती है.

लेकिन गहन विश्लेषण के लिए पूछना बहुत ज्यादा हो सकता है. मीडिया को लोगों को वह देना चाहिए जो वे सुनना चाहते हैं. लेकिन एक तरह से वे यह भी तय करते हैं कि लोगों को चाहिए क्या. नतीजतन, हम एक कभी न खत्म होने वाले दुष्चक्र में फंसे रहते हैं. कोई भी असली सवाल नहीं पूछता कि यह शिक्षा वास्तव में हमें क्या देती है?

इस बार बोर्ड परीक्षा के परिणामों की घोषणा के बाद, हम उन्माद में नहीं आते हैं. आइए खुद से पूछें - क्या इससे वाकई कोई फर्क पड़ता है?

चलो उन चीजों को सीखने में समय लगाते हैं जो एक सफल जीवन जीने के लिए असल में जरुरी हैं. और आइए हमारी सरकारों से परीक्षा तंत्र में सुधार करने की मांग करें ताकि हम वास्तव में एक परीक्षा कर सकें जिनके टॉपर्स मनाए जाने योग्य हों.

(DailyO से साभार)

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लेखक

अर्घ्‍या बनर्जी अर्घ्‍या बनर्जी

लेखक द लेवलफील्ड स्कूल के संस्थापक और आईआईटी-आईआईएम पूर्व छात्र हैं.

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