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Updated: 10 जुलाई, 2021 04:09 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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जब कोई पुरुष किसी महिला से जीत नहीं पाता तो उसके लिए बड़ा आसान होता है उसकी अस्मत पर हाथ डालना. चाहें बात द्वापर की हो या कलियुग की पुरुष अपना जांगर, महिला का चीरहरण करने में ही क्यों दिखाता है. हम यहां सभी पुरुषों की बात नहीं कर रहे, सभी पुरुष ऐसे होते भी नहीं जो महिलाओं पर जीत हांसिल करने के लिए अपनी ताकत (Lakhimpur kheri news) का इस तरह इस्तेमाल करें.

यूपी के लखीमपुरी खीरी में सपा से ब्लॉक प्रमुख की उम्मीदवार रितु सिंह की प्रस्तावक अनिता यादव की साड़ी उतारने की कोशिश की गई और उनके कपड़े फाड़े गए. इसी घटना पर महाभारत हुआ था. लोग चाहे द्वापर के हों या कलियुग के उनको सुकून महिलाओं का अपमान करके ही मिलता है. किसी महिला प्रतिद्वंदी को अगर हराना है तो अपने तर्क से और बुद्दि से हराओ ना. एक असली मर्द की तरह अपने काम से लड़ाई लड़ो ना, यह हर बात पर ओछी हरकत पर क्यों उतर आते हो.

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दरअसल, पसगवां ब्लॉक की सपा प्रत्याशी रितु सिंह ने आरोप लगाया है कि जब वह नामांकन पत्र दाखिल करने जा रही थीं तभी रास्ते में मौजूद बीजेपी विधायक लोकेंद्र के कार्यकर्ताओं ने उनकी प्रस्तावक अनिता यादव के साथ मारपीट की और उनके कपड़े फाड़ दिए. इतना ही नहीं नामांकन पत्र दाखिल करते समय उनका नामांकन पत्र भी छीनकर फाड़ दिया गया.

हम बात कर रहे हैं तुच्छ पुरुषोंं की जिनकी नजर में महिलाओं की कोई औकात नहीं होती. पुरुषों की तिलमिलाहट कहीं ना कहीं जाकार स्त्री के शरीर पर दाग लगाकर खत्म होती है. उनकी बौखलाहट का अंदाजा आप इस बात से लागइए कि जब वे कुछ नहीं कर पाते तो किसी महिला को चरित्रहीन बता देते हैं.

ऐसे पुरुष शराब के नशे में अपनी पत्नी को भी नहीं छोड़ते. कभी उसे गालियों से नवाजते हैं तो कभी उसके साथ जबरदस्ती करते हैं. इतना करने के बाद भी अगर उनका नशा नहीं उतरता तो उसे मारते-पीटते हैं. तब जाकर उन्हें लगता है कि वे मर्द हैं. लड़की ने शादी से इनकार कर दिया तो छिनार बता देते हैं. गर्लफ्रेंड ने ब्रेकअप कर लिया तो उसे ब्लैकमेल करते हैं. ऐसा करके शायद वे खुद को आईना में देखना भूल जाते हैं कि समाज में उनका कितना नाम हो रहा है.

जब भी महिला अपने हक की लड़ाई लड़ती है या कुछ ऐसा करती है तो पुरुषों की एक एक बड़ी जमात सबसे पहले उसका चरित्र चित्रण करता है. ऐसी भी क्या लड़ाई, आखिर क्यों आप असहमत होते ही, किसी स्त्री का बलात्कार करने की इच्छा से भर उठते हैं? क्यों उसके पुरुष मित्र से अश्लील रिश्ते तलाशते हैं?

ठीक है, हो सकता है कि आप किसी महिला से असहमत हैं तो भी उसे जवाब अपने तर्क से दीजिए. आप गलत का वैचारिक धरातल पर ही विरोध कीजिए. अपने विचार के पक्ष में समर्थन जुटाइए, लेकिन इतना नीचे चो मत गिर जाइए कि कल को अपनी बहन या बेटी के सामने नजरें उठाने के काबिल ना रहें.

हम यह नहीं कह रहे कि वह महिलाएं 100 फीसदी सही होती हैं, कोई भी इतना सही हो ही नहीं सकता, चाहें पुरुष हों या महिला लेकिन गुस्से में आपके मुंह से मां-बहन की गालियां ही क्यों निकलती हैं. इतना करने से भी मन नहीं भरता तो उस महिलाओं के फेसबुक इनबॉक्स में ऐसे पुरुष अपने दिमाग की गंदगी साफ करते हैं. माफ कीजिए, लेकिन समझ नहीं आता कि सभ्य समाज इसे क्यों स्वीकार करता है? क्योंकि इस बदबू मारती अराजकता पर लड़ाई की झूठी पट्टी लपेटकर नहीं छोड़ा जा सकता.

एक तो महिलाएं बड़ी मुश्किल से घर से बाहर निकल पाती हैं. असली चुनौती तो उन्हें खुद को साबित करना होती है. बाहर जाना, लोगों के बीच काम करना. घर और परिवार के साथ ऑफिस का काम देखना फिर भी वे हार नहीं मानतीं. इसी बीच उन्हें कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं जो उनके रास्ते का रोड़ा बनने लगते हैं. उन्हें आगे नहीं बढ़ने देते हैं. घर से बाहर निकल कर नौकरी करना इस जमाने में कोई बड़ी बात नहीं है, मुश्किल तो यह है कि वह उस जगह से आगे बढ़ पाती है या हार मानकर दोबारा चारदिवारी में सिमट जाती है.

लखीमपुर खीरी जिले में पसगवां ब्लॉक की सपा प्रत्याशी रितु सिंह ने आरोप लगाया है कि जब वह नामांकन पत्र दाखिल करने जा रही थीं तो रास्ते में मौजूद बीजेपी विधायक लोकेंद्र के कार्यकर्ताओं ने उनकी प्रस्तावक अनिता यादव के साथ मारपीट की और उनके कपड़े फाड़ दिए. उन्हें रोकने की कोशिश की गई लेकिन लंबी जद्दोजहद के बाद वे नामांकन पत्र दाखिल करने पहुंच पाईं.

असल में राजनीति में झड़प की घटनाएं होती रहती हैं. बंगाल का खेला होबे और मायावती का गेस्टहाउस कांड तो आपको याद ही होगा. उत्तर प्रदेश में ब्लॉक प्रमुख के चुनावों को लेकर हलचल तेज है समझ आता है, होना भी चाहिए लेकिन किसी महिला के साथ इसतरह की बदसलूकी करने आप क्या दिखाना चाहते हैं.

पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भले ही जवाब में सत्ता के भूखे गुंडे कहते हुए पलटवार किया लेकिन यह पलटवार महाभारत नहीं बनेगा. यह घटना कुछ द्रौपदी के चीरहरण जैसी ही है. सत्ता की लड़ाई में महिलाओं का सम्मान पर दाग लगाने वाले तब भी थे और अब भी हैं.

द्रौपदी से अपने अपमान का बदला लेने के लिए दुर्योधन ने भी भरी सभा में उन्हें निर्वस्त्र करने की कोशिश की थी. जब जुआ खेलने में अपना सबकुछ हारने के बाद पांडव ने अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया. दुर्योधन तो जैसे इसी पल के इंतजार में था. शकुनि मामा के छल कपट से उसने जुए में द्रौपदी को भी जीत लिया. इसके बाद जो दुर्योधन ने जो किया वह महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा कारण बना.

दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को आदेश दिया कि वो द्रौपदी को भरी सभा में बाल पकड़कर और घसीटते हुए लेकर आए और निर्वस्त्र कर दे. दुशासन, द्रौपदी का चीर खींचता रहा, लेकिन वो जितना खींचता वस्त्र उतना बढ़ता जाता. आखिर वह थक गया और द्रौपदी का वस्त्र हरण नहीं कर सका.

इसके बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि यदि तुम दुर्योधन और उनके भाइयों से मेरे अपमान का बदला नहीं लेते तो तुम पर धिक्कार है. द्रौपदी ने कसम खाई कि मेरे केश तब तक खुले रहेंगे जब तक कि दुर्योधन के खून से इन्हें धो नहीं लेती. इसके बाद क्या हुआ यह बताने की जरूरत नहीं है.

महिलाएं किसी भी युग की हों लोग बदला लेने के लिए उन्हें अपना निशाना बनाते हैं, जब तार्किक क्षमता में हार होती दिखती है तो यह चालबाजी अपनाई जाती है. ऐसे लोगों को उन पुरुषों से सीखना चाहिए जिनके लिए महिलाओं के सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं. जो महिलाओं को आगे बढ़ने में मदद करते हैं, ना की प्रतिस्पर्धा में अंधे होकर उसे बेआअबरू करते हैं.

असल में मर्द वो होता है जो औरतों की इज्जत करता है. ना की अपनी झूठी मर्दानगी दिखाने के नाम पर महिलाओं का अपमान करता है, यह काम तो तुच्छ पुरुषों का होता है.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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