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Updated: 29 सितम्बर, 2022 05:21 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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सैनिटरी पैड के सवाल पर बच्ची को उल्टा जवाब देने वाली बिहार की आईएएस हरजोत कौर भामरा (IAS Harjeet Kaur) और घायल बच्चे को देखकर आंसू बहाने वाली लखनऊ की आईएएस रोशन जैकब (IAS Roshan Jacob)...दोनों महिलाएं हैं और दोनों अधिकारी हैं मगर दोनों के आचरण में जो अंतर है वह दुनिया के सामने आ चुका है. एक ने बच्ची को सबके सामने बुरी तरह झाड़ दिया तो दूसरी ने बच्चे के दर्द को महसूस किया.

दोनों अलग-अलग मामले करीब एक ही समय पर देखने को मिले हैं. दुनिया वाले दोनों के व्यवहार के अंतर को समझकर एक की तारीफ कर रहे हैं तो दूसरी को कोस रहे हैं. इस बात ने साबित कर दिया है कि सिर्फ पैसे और पॉवर की वजह से किसी को इज्जत नहीं मिलती.

Bihar IAS Harjeet kaur,  lucknow IAS Roshan Jacob आईएएस रोशन जैकब एक बच्चे की तकलीफ को देख फफक कर रो पड़ीं जबकि आईएएस हरजोत कौर छात्रा के सवाल पूछने पर भड़क गईं

हम भले ही कितने बड़े पद पर काबिज क्यों न हों, अगर हम दूसरे लोगों के साथ सही तरीके से पेश नहीं आते हैं, अपने व्यवहार में नर्मी नहीं बरतते हैं तो कोई भी हमारा सम्मान नहीं करेगा. लोग हमारे पद की वजह से डर सकते हैं मगर सम्मान नहीं दे सकते. बड़े बुजुर्ग सही कहते हैं कि इज्जत कमाई जाती है, छीनी नहीं जा सकती है. यह पूरी तरह से आपकी परवरिश की पहचान होती है. इसलिए हमारा संवेदनशील होना बेहद जरूरी है.

पहला मामला बिहार का है

बिहार महिला एवं बाल विकास निगम की प्रमुख आईएएस हरजोत कौर एक कार्यक्रम में गई थीं. जहां एक स्कूली छात्रा ने उनसे सवाल पूछा कि "मेरा नाम रिया कुमारी है और मैं पटना से आई हूं. मैंम जैसे हर कुछ के लिए तो सरकार देती ही है, जैसे कि पोशाक का, छात्रवृति… तो क्या सरकार 20-30 रुपये का व्हिस्पर (सेनेटरी पैड) नहीं दे सकती है?

लड़की का सवाल पूछने के बाद वहां बैठी दूसरी छात्राएं ताली बजाने लगती हैं. इस पर आईएएस हरजौत कौर कहता हैं कि "अच्छा ये जो अभी तालियां बजा रहे हैं इस मांग का कोई अंत है? 20-30 रूपए का व्हिस्पर भी दे सकते हैं, कल को जींस पैंट दे सकते हैं हैं, पर्सों को सुंदर जूते क्यों नहीं दे सकते हैं, नर्सों को वो क्यों नहीं कर सकते हैं औऱ अंत में जब परिवार नियोजन की बात आएगी तो निरोध भी मुफ्त में ही देना पड़ेगा है ना? सबकुछ मुफ्त में चाहिए.

सरकार से सबकुछ मुफ्त में लेने को तुमको जरूरत क्या है? खुद संपन्न बनो. इस पर छात्रा कहती है कि "नहीं मैंम लेकिन जो सरकार के हित में है जो सरकार को देना चाहिए..जब तक हम संपन्न नहीं है, हमारे पीछे छोटे बच्चे भी बैठे हैं. सरकार वोट लेने भी आती है". इस पर आईएएस मैडम कहती हैं कि मत दो तुम वोट, यह तो बेवकूफी की इंतहा है. जाओ पाकिस्तान...क्या तुम पैसे के लिए वोट देती हो. इस पर छात्रा कहती है कि, "मैं पाकिस्तान क्यों जाऊं मैं हिंदुस्तानी हूं..."

सोचिए एक बेटियों के लिए आयोजित वर्कशॉप में ही यह आईएएस मैडम कितने रूखे तरीके से एक 10, 11वीं क्लास की बच्ची के साश पेश आ रही हैं. अपनी तेज और सख्त रवैये से बच्ची की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही हैं. इनके इस व्यवहार को देखने के बाद लोग इनकी थू-थू कर रहे हैं.

दूसरा मामला उत्तर प्रदेश का है

आईएएस और लखनऊ मण्डल की कमिश्नर रोशन जैकब एक बच्चे की तकलीफ को देख फफक कर रो पड़ीं. वे लखीमपुर खीरी में हुए सड़क हादसे में घायल हुए लोगों का हाल जानने के लिए जिला अस्पताल पहुंची थीं. वे घायल यात्रियों से घटना के बारे में जानकारी ले रही थीं और उन्हें ढांढस बंधा रही थीं. इस बीच वे काफी भावुक थीं. उन्होंने गंभीर रूप से घायलों को तुंरत लखनऊ रेफर करने का आदेश दिया. इसी बीच उनकी नजर एक बच्चे पर पड़ी. जो दिवार के नीचे दब गया था. उसकी मां अपने बच्चे की हालत देखकर रोए जा रही थी. इसके बाद जैकब उस महिला के पास पहुंची और उससे बात करने लगीं.

पता चला दिवार के नीचे दबने से उसके एक बेटे की मौत हो गई. और दूसरे बच्चे की रीढ़ की हड्डी टूट गई है. वह बच्चा दर्द के मारे चिल्ला रहा था. वे उस बच्चे के दर्द को महसूस कर खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाईं, उन्होंने बच्चे को तड़पते हुए देखा तो खुद भी रोने लगीं. एक तरफ उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे तो दूसरी ओर वे उसके उचित इलाज के लिए आदेश दे रही थीं. वे कह रही थीं कि आप लोग रेड क्रास फंड से इसका इलाज करवाओ. जरूरत पड़े तो इसको रेफर करो. हर हाल में बच्चे को बेहतर इलाज दो. वे बच्चे की मां को समझा रही थीं मगर अपने आंसू रोक नहीं पा रही थीं. इसके बाद वे डॉक्टर से मिलीं औऱ एक-एक करके भर्ती सभी मरीजों से मिलीं. उन्होंने अस्पताल में 4 घंटे उनके बीच बिताया.

ऐसा पहली बार नहीं है जब आईएएस रोशन जैकब अपने आचरण से लोगों का दिल जीत रही हैं. इसके पहले जब भारी बारिश के बाद लखनऊ की सड़कों पर पानी लग गया था तो वे रूके पानी में पैदल उतर गई थीं. उन्होंने पानी लगे सड़कों का खुद जायजा लिया था और नगर निगम की ओर से पानी निकासी के बारे में पूछताछ की थी.

अब दो महिला आईएएस का उदाहरण हमारे समाने हैं. असल में यह मायने नहीं रखता है कि आप अधिकारी है, नेता या अभिनेता हैं...मायने तो सिर्फ यही एक बात रखती है कि आप लोगों के साथ आप किस तरह से पेश आते हैं. मायने रखता है कि आप जनता के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं. मायने यह रखता है कि आप अपने नीजी जीवन में कैसा आचरण रखते हैं...

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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