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Updated: 23 जुलाई, 2019 03:42 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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जब कोई महिला गर्भवती होती है तो खुशी के साथ-साथ मन में डिलिवरी का डर भी होता है. परिस्थिति नॉर्मल डिलिवरी की हो या ऑपरेशन की हर महिला को ये डर सताता ही है. नॉर्मल डिलिवरी में असहनीय कष्ट होता है फिर भी इसे सबसे अच्छा माना जाता है. वहीं सिजेरियन या सर्जरी से भले ही बच्चे का जन्म बिना तकलीफ के हो जाता हो लेकिन ये तरीका खर्चीला होने के साथ-साथ महिलाओं के लिए अनावश्यक जोखिम भी पैदा करता है.

लेकिन ऑपरेशन के जरिए बच्चे को जन्म देने वाली महिलाएं बहुत हिम्मती हैं. भले ही उन्होंने प्रसव पीड़ा को नहीं सहा हो, लेकिन डिलिवरी के बाद के उनके संघर्ष उन महिलाओं से कहीं ज्यादा होते हैं जिन्होंने प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म दिया होता है. उनके पेट पर उम्र भर के लिए रहने वाले कट के निशान इस बात के सबूत होते हैं.

कुछ महिलाओं ने प्रसव और सर्जरी से जुड़े अनुभव वेबसाइट बज़फीड के साथ साझा किए, जिनके जरिए ये पता चलता है कि ऑपरेशन से मां बनी महिलाओं के पेट पर रहने वाले ये निशान बदसूरत नहीं बल्कि बेहद खूबसूरत हैं. ये अनुभव उन माओं को हिम्मत देंगे जो खुद भी मां बनने जा रही हैं और उनकी गर्भावस्था में कुछ परेशानियां हैं.

lanour painगर्भवती महिलाओं का डर प्रसव पीड़ा भी है और सर्जरी भी

1. "डिलिवरी के 10 दिन बाद भी मेरे कट का निशान लाल था और बेंडेज के आसपास काफी खुजली हो रही थी. मेरे दोनों बच्चों का जन्म ऑपरेशन से ही हुआ है और मैं इसे छिपाती नहीं. मैं हर किसी को बताती हूं कि मैं किस तरह एक नहीं बल्कि दो बड़ी सर्जरी झेली हैं और उसके बाद भी कैसे मैं एक नवजात बच्चे की देखभाल करने में कामयाब रही. मैं एक रियल लाइफ हीरो हूं!"

2. "मेरे लिए यह स्वीकार करना अभी भी मुश्किल है कि मेरा ऑपरेशन हुआ था. मैंने 3 घंटे प्रसव पीड़ा सही लेकिन मेरे बच्चे के दिल की धड़कनें गिरने लगी थीं, तब मुझे ऑपरेशन के लिए ले जाया गया. मुझे इससे कोई परेशानी नहीं थी और ऑपरेशन की वजह से दर्द से भी राहत मिल गई. लेकिन, पूरी तरह से स्तनपान कराने और गंभीर पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने की वजह से मुझे लगा कि मैं हार चुकी हूं. हालांकि मुझे उबरने में बहुत वक्त लगा लेकिन अब मुझे सी सेक्शन के निशान और अपने स्ट्रेच मार्क्स पर गर्व है. मां बनने की इस स्थायी निशानी पर गर्व है और ये मुझे बहुत प्यारा है"

3. "दर्द के 23 घंटे के बाद इमरजेंसी में ऑपरेशन किया गया था, क्योंकि मेरी बेटी की धडकनें कम हो रही थीं. मैं ऑपरेशन की शुक्रगुजार हूं क्योंकि बच्ची के गले में गर्भनाल तीन बार लिपटी हुई थी. इससे मुझे जरूर तकलीफ हुई लेकिन मेरी बच्ची की जान बच गई. अब वो दो साल की है पूरी तरह से स्वस्थ है. मेरे घाव धीरे-धीरे भर गए और अब तो ये निशान दिखाई भी नहीं पड़ते. अगर ये ठीक से दिखाई भी पड़ते तो भी ये देखने योग्य हैं.''

4. ''मेरी मां एक जिमनास्ट, डांसर और अपने शरीर से प्रेम करने वाली महिला थीं. उन्होंने मुझे प्राकृतिक तौर पर जन्म दिया लेकिन मेरे बाद मेरे जुड़वां भाई-बहन का जन्म ऑपरेशन से हुआ था. उन्हें लगता था जैसे उनकी परफेक्ट बॉडी खराब हो गई हो. दुर्भाग्यवश इसी सोच के साथ उनकी मौत हो गई. वो आज के इस नए संसार को देख ही नहीं सकीं जहां माएं इस तरह के जन्म पर एकदूसरे का साथ दे रही हैं, हैसला बढ़ा रही हैं. पर मैंने उनके निशान को कभी खामी के रूप में नहीं देखा. ये मेरे लिए वो खिड़की थी जिसके रास्ते मेरे भाई बहन इस दुनिया में आए. ये निशान न होते तो मेरे भाई बहन भी मेरे साथ न होते. अपने निशान को अपनी खामी मत समझो, ये कोई ऐसी चीज नहीं है जिसपर शर्मिंदगी हो या फिर इसे छिपाया जाए. आपके शरीर ने एक बच्चे का सृजन किया है और उसे इस दुनिया में लाने के लिए आपको वही रास्ता मिला जो उस परिस्थिति में सबसे बेहतर था. इसलिए इसके लिए खुश रहिए.''

c sectionमुझे इस निशान पर गर्व है

5. ''मुझे ऑपरेशन के जरिए जन्म देने के बाद मेरी मां से पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने कहा- चूंकि तुमने अपने बच्चे को प्राकृतिक रूप से जन्म नहीं दिया है इसलिए बच्चा तुमसे उतना जुड़ नहीं पाएगा यानी मां और बच्चे के बीच की बॉन्डिंग अच्छी नहीं होगी. 34 सालों के बाद, मेरी मां ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं. हम हमेशा से ही बहुत क्लोज़ रहे हैं. वो एक बहुत अच्छी मां है. ये मेरी खुशनसीबी है कि मुझे इतनी उदार और मजबूत मां मिली है.''

6. ''मेरे पेट को तीन बार सीधे काटा गया था. पहले किसी बीमारी की वजह से और उसके बाद मेरे दो बच्चे भी ऑपरेशन से हुए. मुझे एक पल तो खुशी भी होती है कि मैं बीमारी से बच गई और वहीं परेशान भी होती हूं जब खुद को शीशे में देखती हूं क्योंकि मुझे लगता है कि मुझे ऐसा नहीं दिखना चाहिए. मेरे लिए ये बहुत मुश्किल है, क्योंकि अगर मैं किसी से इसकी शिकायत करती हूं तो वो कहते हैं- ओह, लेकिन तुम्हारे पास दे प्यारे प्यारे बच्चे हैं. क्योंकि तब ऐसा लगेगा जैसे मैं उन दोनों के लिए शुक्रगुजार नहीं हूं बल्कि अपने शरीर के लेकर ज्यादा परेशान हूं.''

7. ''दो दिन बाद मेरा ऑपरेशन होने वाला है. मेरा पहला ऑपरेशन 10 साल पहले हुआ था. तब ये शर्मिंदगी वाली बात होती थी और हर किसी ने तब इसी तरह की प्रतिक्रिया दी थीं कि बच्चा नॉर्मल नहीं हुआ तो इसकी वजह मैं खुद थी क्योंकि मैंने बच्चे के निकास के लिए ठीक से रास्ता नहीं बनाया था. यानी मेहनत नहीं की थी. लेकिन ऐसा तब होता है जब आपका बच्चा 11 पाउंड का हो और उसका सिर बहुत बड़ा हो और वो प्राकृतिक रूप से बाहर नहीं आ सकता हो.''

8. ''16 साल पहले मैंने ऑपरेशन के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया था. अब तो ऑपरेशन का निशान दिखाई भी नहीं देता. लेकिन मुझे याद है कि इसके बाद मुझे ठीक होने में बहुत वक्त लगा था. लेबर पेन के 21 घंटे बाद मेरा ऑपरेशन करना पड़ा था क्योंकि मेरी बच्ची फंस गई थी. ऑपरेशन के 5 दिन बाद मैंने टांकों को हटाने की कोशिश की. घाव ठीक नहीं हुआ था और उसमें से खून भी आने लगा था. डॉक्टर ने तब पूरे हिस्से को सुन्न करके दोबारा स्टिच लगाए थे. 3 हफ्तों के बाद टांके काटे गए और तब मुझे बेहतर लगा. ठीक होने में वक्त तो लगा लेकिन ये सब worth है.'' 

9. ''गर्भ में मेरा बेटा उल्टा हो गया था, इसलिए हमें ऑपरेशन करवाना ही थी. सच कहूं तो मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ मिस किया. जब वो पैदा हुआ तो कुछ मिनट मैं उसे खुद से चिपकाए रही, और एक घंटे के अंदर ही मैंने उसे अपना दूध भी पिलाया. मेरा जन्म देने का अनुभाव बहुत प्यारा था और मुझे इसमें कोई भी बदलाव नहीं चाहिए.

10. "तीन घंटे प्रसव के लिए प्रयास करने के बाद मुझे इमरजेंसी में ऑपरेशन करवाना पड़ा. बच्चे के दिल की धड़कने तेजी से नीचे गिर रही थीं. मैं बहुत डर गई थी और मुझे नहीं पता कि क्या हो रहा था. लेकिन जैसे ही उन्होंने उसे बाहर खींचा, उसकी तेज रोने की आवाज सुनकर खुशी के आंसू बहने लगे”

mother and babyअपने बच्चे को देखकर मां सारी तकलीफें भूल जाती हैं

सच ही है बच्चे की किलकारी हर मां के दर्द को छूमंतर कर देती है चाहे वो प्रसव पीड़ा हो या फिर सी सेक्शन. ये सच है कि प्रेग्नेंसी के लगभग 10 प्रतिशत मामलों में जटिलता को देखते हुए सिजेरियन की जरूरत सच में पड़ती है. लेकिन ये भी सच है कि प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन की संख्या पिछले 10 सालों में दो गुनी हो गई है. बच्चा सुरक्षित जन्म ले उसके लिए ऑपरेशन जरूरी भी है. और बड़ी हिम्मत वाली बात होती है एक मां का सी सेक्शन से गुजरना. क्योंकि इसके बाद वो काफी संघर्ष करती है. बच्चे को स्तनपान करवाने से लेकर उसके सभी जरूरी काम करने पर घाव के टांको पर दबाव पड़ता है और घाव देर से भरते हैं. कभी कभी तो ज्यादा दबाब से स्टिच टूट भी जाते हैं. कहा ये भी जाता है कि ऑपरेशन के बाद महिला का वजन भी बढ़ता है और मोटापा भी. ये सारी परेशानियां उन माओं के हिस्से नहीं आतीं जो नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को जन्म देती हैं. इसलिए इन माओं की हिम्मत को सलाम. ये निशान जिनके साथ वो उम्र भर जीती हैं वो उनकी हिम्मत की कहानी कहते हैं. जिसपर सिर्फ गर्व किया जाना चाहिए.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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