New

होम -> समाज

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 18 अगस्त, 2018 02:45 PM
अविनाश शर्मा
अविनाश शर्मा
 
  • Total Shares

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन की खबर से पूरा राष्ट्र शोकाकुल है. उनका निधन सभी के लिए अपूरणीय क्षति है. चारों ओर शोक की लहर है. हर कोई अपने तरीके से उनको श्रद्धांजलि दे रहा है. ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सप्प पर उनसे जुड़े तथ्यों और उनके द्वारा लिखी गयी कविताओं के साथ लोग अपने दुःख को व्यक्त कर रहे है. मैंने भी उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियों और उनकी एक तस्वीर अपने व्हाट्सऐप और फेसबुक पर लगा दी. कुछ ही देर में वहां दुःख संदेशों की बाढ़ आ गयी. उसमे कुछ सन्देश ऐसे थे जिन्होंने मुझे आज लिखने पर मजबूर के कर दिया. आज मैं उसी मुद्दे पे लिखने बैठा हूं, न जाने कितने महीनों बाद. वो सन्देश था RIP और R.I.P.

न जाने कितने लम्बे समय से मैं इस मुद्दे पे लिखना चाहता था पर लिखा नहीं. शायद ये सोचकर की आजकल किसी को कुछ समझाओ तो लोग आपको कट्टर RIGHTWING से जोड़ देते है. वो आपकी बात को समझने से पहले ही उसे एक ख़ास धर्म, जाति या राजनीतिक विचारधारा से जोड़ देते हैं और कुतर्क पर आ जाते हैं. मैंने इस मुद्दे पर व्यक्तिगत रूप से तो बहुत लोगों को समझाया है पर किसी बड़े मंच पर इस विषय में कभी बात नहीं की.

अटल बिहारी वाजपेयी, मृत्यु, श्रद्धांजलि, आरआईपी   पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारो वाजपेयी की मौत के बाद ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या है जो RIP कह रही है

RIP या R.I.P संस्कृति इस मोबाइल जनरेशन की एक सबसे बड़ी नासमझी या कॉपी-पेस्ट संस्कृति का नतीजा है. इनमे से कोई भी ये बात नहीं जनता या समझता की इस शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई या इसका अर्थ क्या है? या फिर यही की इसे कब और किसे कहना चाहिए ? कुछ एक लोगों को मैंने पहले भी इस विषय पर बताया है पर आज सोचा लिख ही दूं और चिपका दूं अपनी फेसबुक वाल या व्हाट्सऐप स्टेटस पर ताकि मुझे जानने वाले तो समझे कि ये है क्या और क्यों?

हां तो आज हुआ ये कि मैंने अटल जी पर स्टेटस लगाया और सबने अपना दुःख प्रकट किया. उसी में मेरे परम मित्र राज ने भी तपाक से RIP लिख दिया. न जाने क्यों मुझसे रहा नहीं गया. जी मैं आया की अभी रिप्लाई कर के सारी ज्ञान की गंगा बहा दूं. फिर न जाने क्यों जाने दिया ये सोचकर कि पहले ही दुःख में है और क्या बोलना पर अंततः कुछ 2 घंटे बाद मैंने उसे ज्ञान दे ही दिया.

तुम्हे मालूम है RIP कब कहते है? मैंने पूछा. हां किसी की मृत्यु हो जाने पर– उसने झट्ट से जवाब दिया. मैंने भी हां में सिर हिलाया और वो खुश हुआ जैसे की उसने शेर मार गिराया हो. तो फिर क्या गलत कहा मैंने बोलो, क्या गलती थी? उसकी आवाज़ में अब अभिमान था जैसे की उसने जंग जीती हो.

मैंने उसे बीच में ही काटते हुए कहा कि गलत ये कहना नहीं है, इसका गलत होना मृतक के ऊपर निर्भर करता है. यदि मृतक कोई ईसाई या इस्लाम धर्म को मानने वाला हो तो यह बात बिलकुल सही है पर यदि वह कोई सनातन धर्म या जैन, बौद्ध या सिख धर्म का हो तो यह गलत है क्योंकि RIP की उत्पत्ति Latin शब्द 'Requiescat in pace' से हुआ है जो की समय के साथ requiescat in permanens या फिर rest in peace से होता हुआ आज R.I.P बन गया है.  ये requiescat in permanens कैथोलिक प्रार्थनाओं में प्रयोग होता था जिसका अर्थ है कि 'आत्मा शान्ति से आराम करे फैसले के दिन का.' इसका प्रयोग अट्ठारवीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक मत को मानने वालों की कब्रों के शिलालेख पर लैटिन भाषा और बाद में अंग्रेजी में मिलता है.

अटल बिहारी वाजपेयी, मृत्यु, श्रद्धांजलि, आरआईपी   ऐसे में बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर RIP है क्या

इन प्रार्थना सभाओं में वे लोग मृतक के लिए प्राथना करते और कहते 'they died in the peace of the Church, that is, united in Christ' कब्रों के शिलालेख पर भी यह लिखा जाता था. वो ऐसा मानते हैं कि जीवन सिर्फ एक बार मिलता है और मृत्यु के पश्चात शरीर फैसले के दिन तक यही आराम करता है. यहीं से इसका प्रसार और प्रचार मिशनरीज और कान्वेंट स्कूलों से होता हुआ आज हर ओर फैल चुका है.

ईसाई धर्म पुनर्जन्म में यकीं नहीं करता और वो पुनरुत्थान को मानता है. पुनर्जन्म और पुनरुत्थान में अंतर है. जहां एक ओर पुनर्जन्म में हम शरीर की नहीं आत्मा की बात करते हैं तो वहीं दूसरी ओर पुनरुत्थान में आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होती. वहां शरीर होता है जिसे दफनाया गया है. वे परमेश्वर की शक्ति से दोबारा ज़िंदा किए जाएंगे.

बाइबल का मत क्या है पुनर्जन्म को लेकर

न तो बाइबल में कहीं 'पुनर्जन्म' शब्द आता है, न ही बाइबल की किसी और आयत में इस तरह का विचार दिया गया है. पुनर्जन्म की शिक्षा इस बात पर आधारित है कि इंसान के अंदर अमर आत्मा होती है जो मरने के बाद भी जिंदा रहती है. जबकि बाइबल ऐसा नहीं सिखाती. यह बताती है कि इंसान मिट्टी से बना है और मरने के बाद पूरी तरह खत्म हो जाता है, उसके अंदर साए जैसी कोई चीज़ नहीं जो निकलकर इधर-उधर भटकती है. मरने के बाद एक इंसान का कुछ भी ज़िंदा नहीं बचता.

पुनरुत्थान क्या है?

बाइबल पुनरुत्थान की शिक्षा सिखाती है, लेकिन यह अमर आत्मा की शिक्षा पर आधारित नहीं है. पुनरुत्थान का मतलब है, जो लोग मर चुके हैं वे परमेश्वआर की शक्ति से दोबारा ज़िंदा किए जाएंगे. यह शिक्षा हममें उम्मीद जगाती है कि अगर हम मर भी जाएं तो हमें नयी दुनिया में फिर से ज़िंदा किया जाएगा और हम फिर कभी नहीं मरेंगे.

अब आप सोचेंगे कि एक इंसान जीते-जी दोबारा कैसे पैदा हो सकता है? हो सकता है क्योंकि जब बाइबल दोबारा पैदा होने की बात करती है तो इसका मतलब सचमुच जन्म लेना नहीं है. इस तरह से दोबारा जन्म लेना इसलिए नहीं होता कि उस इंसान ने पिछले जन्म में अच्छे कर्म किए थे, बल्कि यह परमेश्वर की तरफ से मिला आशीष है जिससे उस इंसान को भविष्य के लिए एक अनोखी आशा मिलती है.

वहीं दूसरी और सनातन धर्म को मानने वाले मानते हैं कि शरीर नश्वर है और आत्मा अजर अमर है इसलिए शरीर को पंचतत्वों में विलीन करने हेतु उसे जलाया जाता है. तो rest in peace (RIP) का कोई मतलब ही नहीं बनता. श्रीमद भगवत अध्याय 2, श्लोक 23 में कहा गया है -

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः

अर्थात इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती है.

सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए जीव/शरीर में प्रवेश कर जाती है. या मोक्ष प्राप्त कर परब्रह्म में विलीन हो जाती है. हम यह मानते हैं कि आत्मा अमर है और वो पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर में चली जाती है या मोक्ष प्राप्त कर परब्रह्म में विलीन हो जाती है. सनातन धर्म में rest in peace (RIP) जैसा कुछ भी नहीं. यह तो उस दिवंगत आत्मा को कोसना हुआ कि तू यहीं पड़े रह. बताओ ऐसा भी भला कोई करता है.

इस बात पर राज ने कहा तो बताते क्यों नहीं, समझाते क्यों नहीं की क्या कहना चाहिए?

मैंने कहा कहना चाहिए – भगवान इनकी आत्मा को शांति दे/सद्गति दे/मोक्ष दे या ॐ शांति, शांति, शांति ऐसा कहना चाहिए.

राज – पर तुमने कहा कि मोक्ष मिल जाता है तो शान्ति और सद्गति का क्या करना?

मैंने उसे समझाया की मोक्ष इतनी आसानी से नहीं मिलता. मोक्ष के पथ पर चलने के लिए कर्म करना होता है और अच्छे कर्म ही मोक्ष की ओर लेकर जाते हैं. नहीं तो आत्मा फिर से जीवन और मृत्यु के चक्र में फांसी रहती है. जब तक की हमारे कर्म हमे मोक्ष न दिलाएं.

मोक्षाय अधिकारः केवलं विरलानां सन्यासिनामिति ईशावास्यभाष्यात्.

सर्वैः अन्यैः तु पुनर्जन्म प्राप्य क्रमशः गतिः

''ईशावास्योपनिषद के भाष्य के अनुसार मोक्ष केवल विरले सन्यासियों को ही प्राप्त होता है बाकी सभी पुनर्जन्म लेकर क्रमशः अपनी अपनी गति को प्राप्त करते है.''

वहीं भगवन श्री कृष्णा ने श्रीमद् भगवद् गीता के अध्याय 9, श्लोक 32 में कहा है –

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः

स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्

अर्थात मेरी शरण में आकर ही समस्त पापी भी तर जाते हैं चाहे वह कोई भी पाप योनि वाले हों, मुझ पर आश्रित (मेरे शरण) होकर परम गति को प्राप्त होते हैं. हम नहीं जानते कि मृतक की आत्मा को क्या मिलेगा पर हम उसके भले की कामना करते हुए ही उसके सद्गति या मोक्ष की प्रार्थना करते हैं. यही हमारा कर्तव्य है.

ये भी पढ़ें -

अविश्‍वसनीय सरल अटल: स्‍मृतियों का सिलसिला जो सदियों साथ रहेगा

अटल के निधन पर भारत के साथ पाकिस्तान भी रोया

क्यों अटल बिहारी वाजपेयी का पुनर्जन्म जरूरी है

लेखक

अविनाश शर्मा अविनाश शर्मा

लेखक छात्र हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय