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Updated: 12 दिसम्बर, 2021 04:26 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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मजहबी कट्टरपंथ क्या होता है? इसके नुकसान क्या क्या है? इन प्रश्नों को लेकर लंबी और विस्तृत चर्चा हो सकती है. लेकिन ये कितना भयावह और असंवेदनशील है. अगर इस बात को समझना हो तो हम बीते दिन की उस घटना का अवलोकन कर लें जब तमिलनाडु के कुन्नूर में विमान हादसा हुआ और सीडीएस बिपिन रावत समेत 12 लोगों की मौत हुई.

खबर मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी फैली और देश शोक में डूब गया. एक तरफ जहां देश की बड़ी आबादी इन मौतों पर गमजदा थी. तो वहीं मुसलमानों की ठीक ठाक आबादी ऐसी थी जो इन मौतों पर अट्टाहास कर रही थी. और जिन्होंने सीडीएस बीपीन रावत की मौत को जायज ठहराया और अनर्गल बातें कीं. ऐसे कट्टरपंथी लोगों और इनके रिएक्शन ने मलयाली फिल्म निर्देशक अली अकबर ने न केवल आहत किया. बल्कि आवेश में आकर उन्होंने इस्लाम छोड़ने का फैसला किया है. 

अली अकबर का हिंदुत्व की तरफ आने का फैसला चर्चा का विषय है और लोग इसे वसीम रिजवी के हिंदू होने से जोड़ रहे हैं. ऐसे में हमें ये समझना होगा कि वसीम रिज़वी तो पहले से ही इस्लाम के खिलाफ एजेंडा चला रहे थे. अली अकबर, बिपिन रावत की मौत पर मुसलमानों द्वारा हंसी वाले इमोजी शेयर करने से आहत हैं. वो इसे मजहबी कट्टरपंथ के रूप में देखते हैं.तमाम कारण हैं जो बताते हैं कि अली अकबर का हिंदू बनना वसीम रिजवी के हिंदू बनने से कहीं अलग है

मलयाली फिल्म निर्देशक अली अकबर ने सोशल मीडिया पर कट्टरपंथियों के रिएक्शन देखकर कहा है कि,'यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसलिए मैं अपने धर्म (इस्लाम) का त्याग कर रहा हूं. इसके बाद अली अकबर ने हिंदू धर्म में वापसी की बड़ी घोषणा कर डाली. केरल के साथ साथ साउथ सिनेमा के जाने माने पब्लिक फिगर अली अकबर ने कहा कि सेना प्रमुख सीडीएस बिपिन रावत की वीरगति के बाद कई लोग फेसबुक पर जश्न मना रहे थे, जिसके विरोध में वो इस्लाम को ही छोड़ रहे हैं.

बताते चलें कि अभी बीते दिन ही विमान हादसे में जनरल बिपिन रावत की मौत के बाद अकबर ने फेसबुक पर एक लाइव वीडियो पोस्ट किया था, लेकिन फेसबुक ने उसपर नस्लीय का ठप्पा लगा दिया और फिल्म निर्देशक के अकाउंट को एक महीने के लिए सस्पेंड कर दिया. अपने साथ हुई इस घटना से अली अकबर भी रोष में आए और उन्होंने दूसरा फेसबुक अकाउंट बनाया और लाइव किया और लाइव पर ही इस्लाम धर्म का त्याग करने का फैसला किया.

अली अकबर का कहना है कि सीडीएस बिपिन रावत की मौत के बाद जो कुछ भी मुस्लिम कट्टरपंथियों ने किया, जिस तरह लोगों ने लाफिंग इमोजी पोस्ट की और किसी भी मुस्लिम धर्मगुरु ने इसका विरोध नहीं किया उससे उन्हें काफी तकलीफ हुई और उन्होंने इस्लाम छोड़ने का निर्णय लिया.

गौरतलब है कि फेसबुक पर अपने लाइव में अली अकबर ने कहा कि, मुझे पैदाइश के वक़्त जो चोला मिला था, उसे उतारकर फेंक रहा हूं. आज से मैं मुस्लिम नहीं हूं. मैं भारतीय हूं. साथ ही अकबर ने इस बात को भी स्पष्ट किया कि, मेरा ये संदेश उन लोगों के लिए हैं जो भारत के खिलाफ हंसते हुए स्माइली पोस्ट करते हैं.

अब जबकि मलयाली फ़िल्म निर्देशक अली अकबर ने इस्लाम छोड़ ही दिया है. तो लोग इसे सनातन धर्म की बड़ी जीत बता रहे हैं. लोग इसे वसीम रिज़वी मामले से भी जोड़कर देख रहे हैं और कह रहे हैं वसीम रिज़वी के जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी होने ने ही अली अकबर को इस्लाम धर्म छोड़ने के लिए न केवल प्रेरित किया. बल्कि बल दिया है.

ऐसे में हम लोगों को ये जरूर बताना चाहेंगे कि जहां वसीम रिजवी का इस्लाम छोड़ सनातम की शरण में आना पूर्ण रूप से पॉलिटिकल मसला है. तो वहीं अली अकबर के इस्लाम छोड़ने का कारण मुस्लिम कट्टरपंथ है. जिक्र क्योंकि वसीम रिज़वी का हुआ है तो बात आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि वसीम रिज़वी का इस्लाम छोड़ना कोई जज्बात में लिया फ़ैसला नहीं है.

रिज़वी लंबे समय से एजेंडा चला रहे थे और जब उन्हें लगा कि ये सही समय है तो यति की देख रेख में हिंदू हो गए. ऐसे में जब हम अली अकबर को देखते हैं तो उनकी इस्लाम छोड़ने की कहानी राष्ट्रवाद और देश से जुड़ी है. धार्मिक कट्टरपंथ से जुड़ी है. अली अकबर मानते हैं कि मुसलमानों का ये मजहबी कट्टरपंथ सीधे तौर पर न केवल देश को प्रभावित कर रहा है बल्कि उसे गर्त के अंधेरों में ले रहा है.

खैर, एक ऐसे समय में जब हिंदू और मुस्लिम की डिबेट अपने चरम पर हो अली अकबर यदि धार्मिक कट्टरपंथ से परेशान है तो उन्हें राहत किसी और पंथ में जाकर नहीं मिलेगी. हम ऐसा सिर्फ और सिर्फ इसलिए कह रहे हैं कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कट्टरता लगभग सभी धर्मों में विद्यमान है. ऐसे में अली अकबर के पास नास्तिकता ही एकमात्र इलाज बचता है. 

यदि अली अकबर नास्तिक हो जाते हैं तो ऐसा बिलकुल नहीं है कि समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी. ध्यान रहे भारत जैसे देश में नास्तिक बनने की अपनी अलग चुनौतियां हैं और साथ ही समाज भी नास्तिकों की आलोचना के मौके तलाशता है. अली अकबर को इस बात को समझना होगा कि कुछ लोग एक लत को छोड़ने के चक्कर मे दूसरी लत पकड़ लेते हैं और फिर वो न इधर के रहते हैं और न उधर के.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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