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Updated: 11 दिसम्बर, 2021 08:44 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मलयाली फिल्ममेकर अली अकबर (Ali Akbar) ने भी वसीम रिजवी (Waseem Rizvi) को फॉलो करने का फैसला किया है, लेकिन दोनों के हिंदुत्व (Hindutva) अपनाने की वजह भी अलग है और मकसद भी. राजनीतिक हिसाब से देखें तो जितेंद्र त्यागी बन चुके वसीम रिजवी यूपी के हैं जहां जल्द ही विधान सभा के लिए चुनाव होने हैं - और अली अकबर केरल से आते हैं जहां चुनाव हुए छह महीने से ज्यादा हो चुके हैं.

वसीम रिजवी के इस्लाम छोड़ कर हिंदुत्व अपनाने की वजह धर्म है, जबकि अली अकबर ने जो वजह बतायी है वो राष्ट्रवाद की तरह इशारा करता है. अली अकबर का कहना है कि जिस तरह से CDS जनरल बिपिन रावत के हादसे के शिकार होने पर लोगों ने स्माइली पोस्ट की और किसी मुस्लिम धर्मगुरु ने विरोध नहीं किया, उनको काफी तकलीफ हुई और वो इस्माम छोड़ने के अपने फैसले की भी यही वजह बता रहे हैं.

सिर्फ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ही नहीं, अली अकबर का भी पुराना बीजेपी कनेक्शन रहा है. केरल में बीजेपी के मुस्लिम फेस रहे अली अकबर पार्टी की स्टेट कमेटी के सदस्य रह चुके हैं, लेकिन स्थानीय नेतृत्व के साथ मतभेदों के चलते अक्टूबर, 2021 में ही इस्तीफा दे दिया था. केरल में भी देश के पांच राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव अप्रैल में हुए थे.

भले ही कई चीजें अलग हों, लेकिन दोनों ही के केस में एक चीज कॉमन है, वो है दोनों का इस्लाम छोड़ कर हिंदुत्व स्वीकार करने का फैसला - ऐसे फैसले कितने व्यक्तिगत होते हैं और कितने राजनीतिक - और अवसरवादिता की कितनी जगह होती है?

प्राथमिक तौर पर अली अकबर और वसीम रिजवी दोनों ही अपने फैसलों को निजी बता रहे हैं, लेकिन ये फैसले काफी दूर तक असर डालने वाले हैं क्योंकि दोनों का ही अरसे से अपने अपने इलाके में असर और दबदबा रहा है - फिर भी कुछ सवाल तो हैं ही जो दोनों के बयानों से भी खत्म नहीं होते लग रहे हैं.

अकबर और रिजवी का स्टैंड और सफाई

अब जितेंद्र त्यागी के नाम से जाने जा रहे वसीम रिजवी का तो ट्रैक रिकॉर्ड भी ऐसा रहा है कि लोगों में अब भी संशय बना हुआ है कि अगर यूपी चुनाव के बाद कहीं सत्ता परिवर्तन हो गया तो कहीं वो फिर से पाला तो नहीं बदल लेंगे - क्योंकि वसीम रिजवी का धार्मिक प्रतिबद्धता पर ही ज्यादा जोर है.

ali akbar, waseem rizviअली अकबर और वसीम रिजवी का त्यागी अवतार अभी तो महज मौसमी लगता है, चुनाव बाद क्या होता है, देखना होगा.

जनरल विपिन रावत को लेकर लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट से खफा होकर अली अकबर ने इस्लाम छोड़ने का फैसला किया. कहते हैं, देश के बहादुर बेटे का अपमान स्वीकार्य नहीं है. गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि किसी इस्लामिक धर्मगुरु ने ऐसा करने वालों की क्लास नहीं लगायी.

1. अली अकबर का मुस्लिमों को संदेश: अली अकबर ने एक वीडियो के जरिये अपनी भावनाएं फेसबुक पर शेयर की थी, लेकिन बाद में वो पोस्ट हटा दी गयी. अली अकबर की पोस्ट का जोरदार विरोध हुआ था, हालांकि, काफी लोगों का सपोर्ट भी मिला था.

अली अकबर का कहना है, 'मुझे पैदाइश के वक्त जो चोला मिला था, उसे उतारकर फेंक रहा हूं... आज से मैं मुस्लिम नहीं हूं... मैं भारतीय हूं... मेरा ये संदेश उन लोगों के लिए है, जो भारत के खिलाफ हंसते हुए स्माइली पोस्ट किये.'

अली अकबर का ये कहना कि वो मुस्लिम नहीं है, ठीक है. और ये भी कहना कि वो भारतीय हैं, ये भी ठीक है - और सेना के सबसे बड़े अफसर की मौत पर स्माइली पोस्ट किये जाने का विरोध भी हर भारतीय करेगा ही - अली अकबर ने भी किया है और तारीफ के काबिल हैं.

अली अकबर के साथ साथ उनकी पत्नी लुसीअम्मा ने भी इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने का फैसला किया है. एक इंटरव्यू में अली अकबर कहते हैं, 'जनरल बिपिन रावत की मौत की खबर पर हंसने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम थे.'

साथ ही वो ऐसा किये जाने की वजह भी बताते हैं, 'ऐसा इसलिए किया क्योंकि जनरल रावत ने पाकिस्तान और कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये थे - मैं ऐसे धर्म के साथ नहीं जुड़ा रह सकता.'

2. भारतीय होने के लिए धर्म कितना जरूरी: अली अकबर का कहना है कि अब वो मुस्लिम नहीं हैं. अब वो एक भारतीय है - तो क्या वो ये कहना चाहते हैं कि पहले ऐसा नहीं था? भारतीय तो वो पहले से ही हैं.

वो ऐसे भी कह सकते हैं कि पहले वो मुस्लिम थे, लेकिन आगे से हिंदू होंगे - लेकिन धर्म बल लेने से किसी के भारतीय होने के स्टेटस में तो कोई फर्क नहीं आ सकता!

वेल्लोर की स्नेहा को जाति और धर्म के बंधन से औपचारिक मुक्ति के लिए नौ साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी - और 5 फरवरी, 2019 को उनको जाति-धर्म मुक्त होने का सर्टिफिकेट मिला. पेशे से वकील स्नेहा बचपन से देखती आ रही थीं कि उनके माता-पिता जब भी फॉर्म भरते जाति और धर्म वाली जगह खाली छोड़ दिया करते और फिर एक दिन इसे औपचारिक रूप देने का फैसला कर लिया.

अंग्रेजी अखबार द हिंदू से बातचीत में स्नेहा ने बताया था, सभी तरह के प्रमाण पत्रों में उनको एक भारतीय के तौर पर उद्धृत किया गया है - मतलब ये कि भारतीय होने के लिए किसी भी जाति या धर्म को होना जरूरी नहीं है.

अली अकबर के केरल में ही 1999 में जानी मानी लेखिका और कवयित्री कमला दास ने हिंदू धर्म छोड़ कर इस्लाम कबूल कर लिया था और उस पर काफी बवाल हुआ था. हिन्दू धर्म की कुरीतियों और महिलाओं की स्थिति को लेकर तो कमला दास पहले से ही हमलावर रहीं, लेकिन 65 साल की उम्र में जब धर्म बदल लिया तो लोग सन्न रह गये थे.

कमला की शादी 15 साल की उम्र में बैंककर्मी माधव दास से हुई थी. 76 साल की उम्र में पुणे के अस्पताल में मई, 2009 में उनका निधन हुआ. तिरुअनंतपुरम की पालायम मस्जिद में उनको पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया.

हाल ही में जाति और धर्म के कॉकटेल का एक मामला मद्रास हाईकोर्ट में पहुंचा था. असल में एक शख्स धर्म परिवर्तन कर इंटरकास्ट मैरेज के नाम पर फायदा उठाने के चक्कर में था. हाई कोर्ट ने ये कहते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी कि एक धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाने से व्यक्ति की जाति नहीं बदलेगी. कोई दलित व्यक्ति धर्म परितवर्तन करता है तो कानूनन उसे आरक्षण का फायदा पिछड़े वर्ग के तौर पर मिलता है, न कि अनुसूचित जाति के तौर पर.

धर्म परिवर्तन का ये केस निजी फायदे के लिए नजर आया - और कमला दास को लेकर भी एक कनाडाई लेखक ने ऐसा ही बताया है. मेरिल वीजबोर्ड अपनी किताब 'लव क्वीन ऑफ मालाबार' में लिखते हैं, कमला ने धर्म इसलिए बदला क्योंकि एक मुस्लिम नेता से प्यार हो गया था. शादी के लिए धर्म बदला और वो सुरैया बन गईं - लेकिन वो मुस्लिम नेता पीछे हट गया.'

3. ये वोट बैंक की राजनीति नहीं तो क्या है: अली अकबर की ही तरफ वसीम रिजवी भी इस्लाम छोड़ने की वजह तो गैर-राजनीतिक बताते हैं, लेकिन हिंदुत्व अपनाने को लेकर उनके जवाब से साफ हो जाता है कि ये फैसला पूरी तरह राजनीतिक है - और ये बात भी कि किसी राजनीतिक दल के फायदे के मकसद से लिया गया है.

नवभारत टाइम्स के साथ इंटरव्यू में वसीम रिजवी कहते हैं, 'मैं किसी पार्टी का मेंबर नहीं हूं, लेकिन इतना जानता हूं कि मुसलमान हिंदुत्व को हराने के लिए गोलबंद होकर वोट करते हैं... उनको हिंदुत्व की हार में गर्व का अनुभव होता है.'

अब जरा हिंदू वोटर से वसीम रिजवी की अपील पर भी ध्यान दीजिये, 'मैं हिंदुओं से ये जरूर कहूंगा कि अगर मुसलमान गोलबंद हो सकते हैं तो उन्हें भी गोलबंद होना होगा' - और समझाइश भी जान लीजिये, 'उन दलों को हराना होगा जो मुसलमानों का वोट लेते हैं - क्योंकि मुसलमानों के वोटों से जीते दल मुसलमानों को उनकी मनमर्जी की छूट देंगे.'

और फिर अपनी भूमिका भी स्पष्ट कर देते हैं, 'मुसलमानों को मनमर्जी की छूट का मतलब तो सभी जानते हैं... वो मैं नहीं होने दूंगा - यही मेरी भूमिका होगी.'

यूपी चुनाव में ऐसे धर्म परिवर्तनों का कितना असर होगा

1. अली अकबर का चुनावों में कितना असर होगा: अली अकबर के फ्यूचर प्लान अभी सामने नहीं आये हैं, लेकिन उनकी बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है. वो केरल में बीजेपी के मुस्लिम फेस रहे हैं. फिल्म मेकर होने के नाते उनकी अपनी निजी शख्सियत भी प्रभावकारी होगी ही, लेकिन केरल जैसे राज्य में बीजेपी के जीरो इफेक्ट की वजह से उनको वो सब नहीं मिला जो वो सोचे होंगे.

विधानसभा चुनावों में भी हर तरफ मेट्रो मैन ई. श्रीधरन की ही चर्चा रही, जबकि वो पहले से बीजेपी से जुड़े हुए थे और स्टेट कमेटी के सदस्य बने हुए थे. हालांकि, उनके इस्तीफे की एक वजह एक मुस्लिम नेता को सस्पेंड किया जाना रहा. वो भी पार्टी में पदाधिकारी थे.

अली अकबर ने अब जो कदम उठाया है, एक झटके में नये सिरे से चर्चित हो गये हैं - और इस्लाम छोड़ कर हिंदुत्व अपनाने वाले समूह के सदस्य बन गये हैं. अगर अली अकबर के नये अवतार को नये नाम के साथ यूपी चुनाव प्रचार में घुमाया जाता है तो जितेंद्र त्यागी की तरह वो भी हाथों हाथ लिये जा सकते हैं - ये बात अलग है कि हिंदू अली अकबर के नये अवतार को किस नजरिये से देखते हैं.

2. वसीम रिजवी के जितेंद्र त्यागी बनने का प्रभाव: जितेंद्र त्यागी बन कर वसीम रिजवी खुद ही कह रहे हैं कि वो चुनावों में हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ गोलबंद करेंगे - मतलब, ऐसे ध्रुवीकरण की कोशिश करेंगे, जिस क्रिया की प्रतिक्रिया भी पहले से तय होगी.

जाहिर है चुनावों में भगवाधारी जितेंद्र त्यागी का नाम भले लिया जाये, लेकिन चेहरा तो वसीम रिजवी का ही नजर आएगा - और ऐसा होने पर रिवर्स पोलराइजेशन होना भी स्वाभाविक लगता है - क्योंकि वो अपनी पसंदीदा पार्टी को वोट दिलाने के लिए मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को भड़काएंगे.

बात बस इतनी ही नहीं है, वसीम रिजवी शिया समुदाय से आते हैं. ऐसे में शियाओं के साथ साथ सुन्नी मुस्लिम समुदाय को भी स्वाभाविक तौर पर अलग से गुस्सा आएगा और वहां भी असर ध्रुवीकरण के तौर पर ही देखने को मिलेगा.

दिमाग पर ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं अली अकबर और वसीम रिजवी के नये अवतार से फायदे में वही राजनीतिक पार्टी होगी जो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति करती है. ऐसी राजनीति तो शिवसेना भी करती रही है, लेकिन यूपी में तो वो जाने से रही - लिहाजा फायदे में तो भारतीय जनता पार्टी ही रहने वाली है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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