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Updated: 08 अप्रिल, 2022 10:32 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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अल्लू अर्जुन नाम के लोग दिवाने हैं. उनके अभिनय में कुछ तो ऐसा है जो लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है. 'पुष्पा द राइज' (Pushpa The Rise) के बाद भारत का बच्चा-बच्चा अल्लू अर्जुन को बखूबी पहचानने लगा. इनकी फिल्में तो लोग पहले भी देखते थे, लेकिन जो माहौल पुष्पा के बाद बना उसने इतिहास कायम कर दिया.

8 अप्रैल यानी आज अल्लू अर्जुन अपना 40वां जन्मदिन मना रहे हैं. क्या कभी आपके दिमाग में आया कि इतने दिग्गजों के बावजूद अल्लू अर्जुन भारत के सुपरस्टार कैसे बन गए? ऐसा भी नहीं है कि पुष्पा में उन्हें किसी हैंडसम लड़के की भूमिका निभाई थी. तो फिर ऐसी क्या बात है जो मजदूर का रोल निभाने वाले अभिनेता की दुनिया फैन हो गई?

क्यों अल्लू अर्जुन के आगे लोगों ने बॉलीवुड के अभिनेताओं को नकार दिया. लोगों के सिर से अभी भी 'मैं झुकेगा नहीं साला और फ्लावर नहीं फायर है मैं'...का खुमार उतर नहीं रहा है. लोग उनके कितना क्रेजी हैं यह 'तेरी नजर श्री वल्ली' के डांस स्टेप के हजारों रील को देखकर समझा जा सकता है. आखिर लोगों ने इस हीरो में ऐसा क्या देखा और क्या पा लिया?

कुछ बिंदुओं में समझने की कोशिश करते हैं.

- अल्लू अर्जुन को इसलिए भी सुपरस्टार मान सकते हैं क्योंकि 'पुष्पा' से पहले हिंदी में उनकी कोई फिल्म नहीं आई थी, इसके बावजूद हिंदी पट्टी में उनकी टीवी पर प्रीमियर हुईं डब फ़िल्मों को खूब देखा गया. उनकी व्यूअरशिप इस बात का सबूत है कि लोग उन्हें पसंद करते हैं.

-अल्लू अर्जुन का अंदाज सबसे जुदा है. वे ना तो किसी के ट्रेंड को फॉलो करते हैं और ना ही किसी के स्टाइल को कॉपी करते हैं. वे अपने किरदार के हर कपड़े में उतना ही सहज नजर आते हैं, जैसे वह उनके लिए ही बनी हो. उनका अंदाज और स्टाइल बनावटी नहीं है.

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-लोगों को उनका एक्शन और अभिनय ऐसे लगता है जैसे वे उस किरदार को महसूस करके जी रहे हों. पैर से चप्पल निकालना, दांत में लड़की चबाना, एक कंधा झुका होना, मैले कपड़े, गले में काला धागा और देखने का स्टाइल और हाथ को ठुड्डी के नीचे फेरना का तरीका...सबकुछ एकदम रीयल दिखाने के काम अल्लू अर्जुन ही कर सकते हैं.

- पुष्पा को हिंदी भाषा में दर्शकों ने भर भरकर देखा. वह भी उस दौर में जब रणवीर सिंह की फिल्म 83 और स्पाइडर मैन जैसी फ़िल्में थीं. मतलब गैर तेलुगु ऑडियंस ने उन्हें रणवीर और हॉलीवुड पर भी वरीयता दी.

- उनकी उम्र कम है. वे एक आम आदमी जैसा दिखते हैं. उनके अंदर स्टार वाले लटके झटके नहीं हैं. लोग उन्हें अपने जैसे समझते हैं. वे उन्हें अपने करीब पाते हैं. ठीक उसी तरह जब एक समय में अमिताभ बच्चन के जेस्चर की वजह से लोगों ने उन्हें अपने करीब पाया था. अल्लू अर्जुन के अंदर कोई बनावटीपन और दिखावा नहीं है. उन्हें अपने संस्कृति से कोई शर्मिंदगी नहीं है. उन्हें देखकर लगता ही नहीं कि वे इतने बड़े सुपरस्टार हैं, वे हमेशा शालीन और साधारण नजर आते हैं. जबकि बॉलीवुड में शो ऑफ का कल्चर हावी हो रहा है.

-उनका पहनावा काफी सरल है. बॉलीवुड में लुंगी पहनना बेइज्जती मानी जाएगी. जबकि साउथ में कुर्ता, लुंगी, माथे पर तिलक लगाना हो, या जमीन पर बैठकर केले के पत्ते में खाना हो. वे आधुनिक हैं लेकिन अपनी संस्कृति को पिछड़ेपन की निशानी नहीं मानते हैं. वहीं आजकल के जमाने में बॉलीवुड का शायद की कोई अभिनेता ऐसा करता है. लोग खुद को अल्लू अर्जुन से जुड़ा हुआ पाते हैं, जहां लोगों को समानत दिखती वे उसकी तरफ खींचे चले जाते हैं.

- अल्लू फिल्मों में आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं. कभी फ़ौजी, कॉलेज स्टूडेंट या उनकी फिल्मों के ऐसे तमाम किरदारों में देखा जा सकता है. लोग उन्हें अपना नायक मानते हैं. ठीक वैसे ही जब 70-80 के दशक में मजदूर का रोल निभाने वाले हीरो से प्यार और अत्याचार करने वाले ठेकेदार से नफरत करते थे.

- परदे पर अल्लू कैसे भी दिखते हों, मगर सार्वजनिक मौकों पर उनकी पब्लिक अपीयरेंस में तेलुगु के साथ देश का एक बड़ा सेलिब्रिटी चेहरा होने के बावजूद काफी नर्म, शालीन और पारंपरिक नजर आते हैं. जिस तरह रेखा के दौर के सितारे मंच पर चढ़ने से पहले स्टेज को छूकर प्रणाम करते थे, अल्लू अर्जुन अभी भी यही करते हैं. बॉलीवड का कल्चर पहले से काफी तेजी से बदल रहा है, ऐसे में भारतीय परंपरा को बनाए रखने वाले को लोग क्यों पसंद नहीं करेंगे.

- अल्लू को साउथ के लोग पहले से ही भगवान की तरह मानते हैं. वहीं अब फिल्म पुष्पा ने भारत के घर-घर में उन्हें स्थापित किया है. फिल्म में वे चंदन की लकड़ी की स्मगलिंग का काम करते हैं, फिर भी लोग उनका साथ दे रहे हैं. लोगों को पुष्पा के दर्द में अपना दर्द दिखता है. वहीं फिल्म से बाहरी दुनिया में भी वे वैसे ही हैं, जिन्हें लोग अपने जैसा मानते हैं.

लोगों को पता है कि वे बहुत पैसे वाले हैं, लोगों को पता है कि उनके पास प्राइवेट जेट है...इसके साथ लोगों को यह भी पता है कि उनके अंदर घमंड नहीं है. वे किसी को छोटा नहीं समझते हैं. इस दुनिया में इज्जत वही पाता है जो दूसरों को इज्जत देता है. ध्यान रहे, इज्जत देने का अभिनय करने में और सच में आदर देने में फर्क है. यह बात आज के लोग अच्छी तरह समझते हैं.

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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