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Updated: 21 मई, 2022 01:57 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:, नास्ति मातृसमं त्राणं. नास्ति मातृसमा प्रिया. इसका मतलब है "माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है. माता के समान कोई रक्षक नहीं, माता के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं है..." एक फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की और मां के साथ न्याय किया.

वह मां जो अपने गर्भवस्था के कारण पिछले साल फिजिकल टेस्ट में शामिल नहीं हो सकी थी. उस मां को न्याय देते हुए कोर्ट ने कहा कि, 9 महीने का सफर तय करते हुए वह गर्व करने वाली मां तो बन गई, लेकिन इसके लिए उसे भारी कीमत चुकानी पडी. इसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को जेल वार्डर के पद के लिए फिजिकल टेस्ट करवाने का आदेश दिया.

Allahabad high court, She Became Proud Mother But Paid Heavy Price, State Government,  Maharishi Ved Vyasकोर्ट ने समझाया कि कैसे एक मां कैसे 9 महीने तक अपने अंदर एक जीव को पालती है

इस महिला का नाम प्रीति मलिक है. जो यूपी पुलिस जेल वार्डर बनना चाहती है. उसकी शादी हो जाती है फिर वो अपने सपने के पीछे भागती रहती है. वह घर के काम करती है और सुबह उठकर दौड़ती भी है, क्योंकि उसे जेलर बनना है. वह परीक्षा भी पास कर लेती है और फिटनेस टेस्ट की तैयारी करने लगती है.

एक दिन उसे पता चलता है कि वह मां बनने वाली है. वह अपने बच्चे को दुनिया में लाने का फैसला करती है, लेकिन यह बच्चा एक दिन उसके सपनों में तब रोड़ा बन जाता है जब उसे फिजिकल टेस्ट देने से मना कर दिया जाता है. प्रीति को पिछले साल 23 मार्च को ही पीईटी में भाग लेना था, लेकिन 7 महीने की ग्रर्भवती होने के कारण उसे अनुमति नहीं मिली. उसने मार्च में ही टेस्ट लेने वाले अधिकारियों को इस बारे में जानकारी दी लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी थी.

बच्चे को जन्म देने के बाद उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि गर्भवती होने के कारण उसे मौका नहीं मिला, इसलिए उसे अपना सपना पूरा करने के लिए एक मौका मिलना चाहिए. कोर्ट ने समझाया कि कैसे एक मां कैसे 9 महीने तक अपने अंदर एक जीव को पालती है. उसने बच्चे को जन्म देने के बाद टेस्ट देने की कोशिश की लेकिन उसे रोक दिया गया.

अब अगर मां इस परीक्षा में पास होती है और कटऑफ लिस्ट के हिसाब से नंबर लाती है तो यूपी पुलिस में भर्ती होने का उसका सपना पूरा हो सकता है. इस तरह कोर्ट ने साबित कर दिया कि सच में मां से बढ़कर कोई नहीं और दुनिया की हर मां को दूसरा अवसर मिलना ही चाहिए.

हमारे हिसाब से तो मां होने की सजा किसी भी महिला को नहीं मिलनी चाहिए. किसी रूप में, किसी भी वजह से भी मां का दिल कभी भी नहीं दुखना चाहिए. गर्भवती महिला न ठीक से सो पाती है, ना ठीक से खा पाती और ना ही ठीक से उठ-बैठ पाती है. कभी पेट में दर्द होता है, कभी पैर सूज जाता है, कभी उल्टी आने लगती है तो कभी कमजोरी से चक्कर खा कर गिर जाती है.

उसके खाने का स्वाद बदल जाता है, खुशबू वाली चीजों में भी उसे बदबू आने लगती. हारमोनल बदलाव के कारण किसी गर्भवती को अपने पति से ही चिढ़ होने लगती है तो किसी को अपने आप से. इन सबके बावजूद होने वाली मां घर के काम करती है और पति के लिए खाना भी बनाती है. इसलिए किसी भी महिला को मां होने की सजा नहीं मिलनी चाहिए...वैसे आप इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले से सहमत तो होंगे ही?

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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