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Updated: 20 दिसम्बर, 2018 09:43 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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साल 2018 खत्म होने वाला है. यदि 2018 का अवलोकन किया जाए तो ऐसे तमाम कारण हैं जिनके चलते ये साल चर्चा में रहा.  बात बड़े कारणों की हो तो सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की मौत वो वजह थी जिसके चलते 2018 ने विश्व पटल पर खूब सुर्खियां बटोरीं. ध्यान रहे कि सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी को उनके सरकार विरोधी उत्तेजक लेखों के चलते अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

जमाल ने सरकार के खिलाफ खूब लिखा और बिना किसी डर के लिखा और बदले में उन्हें एक ऐसी मौत मिली जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. सऊदी अरब के पत्रकार और लेखक जमाल की मौत हमें ये बताती है कि कैसे न सिर्फ एक व्यवस्थित तरीके से आवाज उठाने वालों की आवाजें दबाई जा रही हैं. बल्कि किस हद तक पत्रकार बिरादरी एक बड़े खतरे का सामना कर रही है.

पत्रकार, हत्या, रिपोर्ट, भारत, अफगानिस्तान   हालिया दौर में भारत समेत दुनिया भर के पत्रकार संकट की स्थिति का सामना कर रहे हैं

बात भारत की हो तो, भारत, साल 2018 में मॉब लिंचिंग के कारण हुई मौतों  की वजह से खूब चर्चा में रहा. यदि आंकड़ों पर एक सरसरी निगाह डाली जाए तो मिलता है कि साल 2018 में, भारत में करीब 28 लोगों को भीड़ द्वारा मारा गया और इन मौतों से जुड़ी ख़बरों को पत्रकारों द्वारा रिपोर्ट किया गया. मगर क्या कभी आपका ध्यान पत्रकारों की उन मौतों पर गया जिनकी इसी 2018 में भारत में हत्या हुई?

Reporters without Borders नाम की एक संस्था है, जिसने एक रिपोर्ट पेश की है. यदि उस रिपोर्ट पर नजर डालें तो मिलता है कि साल 2018 में पूरे विश्व में 80 पत्रकारों की हत्या हुई है. पूरी दुनिया में भारत पत्रकारों के लिए पांचवां सबसे बुरा देश साबित हुआ है. वहीं रिपोर्ट ये भी कहती है कि अफगानिस्तान पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक देश है.

चूंकि रिपोर्ट ने भारत को पत्रकारों के लिहाज से पांचवा सबसे बुरा देश मान लिया है. अतः हमारे लिए भी ये जरूरी हो जाता है कि हम इस रिपोर्ट की रोशनी में उन मौतों का रुख करें जहां पत्रकारों को खतरा मानकर उनकी हत्या कर दी गई. ध्यान रहे कि साल 1992 से लेकर 2018 तक भारत में तकरीबन 47 पत्रकारों की मौत हुई हैं और इनमें भी अकेले साल 2018 में 6 लोग मारे गए हैं.

पत्रकार, हत्या, रिपोर्ट, भारत, अफगानिस्तान     भारत में 1992 से लेकर 2018 तक करीब 47 पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया है

इसी साल 25 मार्च को खबर फ़्लैश हुई कि बिहार में दो पत्रकारों की एसयूवी से कुचलकर हत्या कर दी गई है. मामले ने जब सुर्खियां पकड़ी तो पत्रकारों की हत्या के लिए गांव के प्रधान को दोषी ठहराया गया. इसके अलावा इसी दिन मध्य प्रदेश में रेत माफिया पर खबर कर रहे एक पत्रकार की ट्रक से कुचलकर मौत हो गई. इसमें भी शक की सूई रेत माफिया पर गई.

ध्यान रहे कि पत्रकार ने पुलिस को बताया था कि उसकी जान को रेत माफिया से खतरा है. बात भारत में पत्रकारों की हत्या की चल रही है तो हम अभी कुछ दिनों पूर्व कश्मीर में मारे गए पत्रकार शुजात बुखारी को नहीं भूल सकते. शुजात को लश्कर के आतंकियों द्वारा बीते नवम्बर में गोली मारी गई थी.

बहरहाल हम बात साल 2018 में मारे गए पत्रकारों का वर्णन कर रहे थे. बात आगे बढ़ाने से पहले आपको बताते चलें कि जिन 80 पत्रकारों को अलग-अलग कारणों के चलते मौत के घाट उतरा गया उनमें 63 पेशेवर पत्रकार थे. इसके अलावा रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इस साल 348 पत्रकारों को हिरासत में लिया गया था और 60 पत्रकारों का अपहरण हुआ, जबकि तीन पत्रकार लापता हैं.

रिपोर्ट में दिए गए तथ्य न सिर्फ हैरान करने वाले हैं. बल्कि ये भी बताते हैं कि मारे गए 80 पत्रकारों में से 49 पत्रकारों का मर्डर सिर्फ इसलिए हुआ, क्योंकि उनकी रिपोर्टिंग के कारण ऊंची आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक ताकत रखने वाले लोगों या फिर अपराधिक संगठनों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा था.

पत्रकार, हत्या, रिपोर्ट, भारत, अफगानिस्तान     दुनिया भर में पत्रकार उन लोगों के गले की हड्डी बन गए हैं जो गलत काम में लिप्त हैं और इसीलिए ही उन्हें मारा जा रहा है

ज्ञात हो कि साल 2018 में अफगानिस्तान में 15 पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया. जबकि सीरिया में 11, मैक्सिको में 9, यमन में 8 और भारत और अमेरिका में 6-6 पत्रकार मारे गए हैं. 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' की इस पूरी रिपोर्ट में सबसे दिलचस्प तथ्य इराक से मिले हैं.

इराक इस लिस्ट से बाहर रहा है. इराक में इस साल एक भी पत्रकार नहीं मारा गया है. ऐसा 2003 के युद्ध के बाद से पहली बार हुआ है. रिपोर्ट में इस बात का साफ वर्णन है कि इनमें से कई देश ऐसे हैं जहां किसी तरह का कोई युद्ध नहीं हो रहा है और पत्रकारों की मौत का कारण उस देश के खराब हालात हैं.

अंत में हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि, देश कोई भी हो. यदि वहां पर मीडिया पर हमला हो रहा है तो इस बात का फैसला खुद ब खुद हो जाता है कि उस देश में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है. साथ हीये भी पता चल जाता है कि

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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