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Updated: 04 अगस्त, 2018 03:46 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी धारा 497 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई जारी है. अंदर सुनवाई और बाहर इस मामले पर बहस हो रही है. कि ये कानून महिला विरोधी है या पुरुष विरोधी.

पहले ये जान लीजिए कि धारा 497 है क्या-

ये कानून 1860 में बना था, जो अब काफी पुराना हो गया है. इसके तहत-

- अगर कोई मर्द किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर इस मामले में पुरुष को अडल्ट्री क़ानून के तहत गुनहगार माना जाता है.

इस धारा में कई और पेंच भी हैं-  

- अगर कोई शादीशुदा मर्द किसी कुंवारी या विधवा औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो वह अडल्ट्री के तहत दोषी नहीं माना जाएगा.

- अगर एक शादीशुदा महिला अपने पति की मर्जी से किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाती है तो उसे अडल्ट्री के तहत दोषी नहीं माना जाएगा.

adultery lawशादीशुदा महिला पति की मर्जी से दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाती है तो दोषी नहीं

जाहिर सी बात है कि अगर कोई महिला और पुरुष अपनी रजामंदी से किसी रिश्ते में हैं और यदि महिला का पति इस बात की शिकायत करता है तो दोषी पुरुष ही कहलाया जाता है, सजा पुरुष को ही मिलती है महिला को नहीं. जब बात समानता की आती है तो यहां पर असमानता क्यों? और इसी बात को लेकर सेक्शन 497 को चुनौती दी गई जिसपर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए पूछा है कि-

- अगर कोई विवाहित महिला किसी अन्य विवाहित पुरुष से संबंध बनाती है, तो फिर इस मामले में सिर्फ पुरुष को ही दोषी क्यों माना जाए?

- अगर अविवाहित पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ संबंध बनाता है तो वो व्यभिचार नहीं होता, लेकिन यही काम कोई विवाहित पुरुष करे तो अपराध? जबकि महिला अपराध में हिस्सेदार होकर भी जिम्मेदार नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को पुरुषों के साथ भेदभाव करने वाला बताया है और इसे समानता के मौलिक अधिकार का हनन कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि कैसे कानून बनाने वालों ने इस बात की इजाजत दी कि पति की सहमति से संबंध हो सकते हैं. क्या महिला प्रॉपर्टी है. पति की सहमति होने पर अडल्टरी केस नहीं बनता और ये प्रावधान कानून को मनमाना और पक्षपातपूर्ण बनाता है.

अगर आप सोचते हैं कि ये कानून पुरुष विरोधी है तो जान लें कि महिलाएं इससे किस तरह प्रभावित हैं और कैसे ये हमारी रूढ़ियों को दिखाता है-

* पत्नियां व्यभचारी पति के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकती.

यह कानून एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार सिर्फ पति को देता है. उस महिला को एफआईआर दर्ज करवाने का अधिकार नहीं देता, जिसे पता है कि उसके पति के किसी अन्य महिला से शारीरिक संबंध हैं. इसकी आड़ में पुरुष पत्नी से तलाक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है, जबकि पत्नी ऐसा नहीं कर सकती.

* पति अगर वेश्या, विधवा या अविवाहित महिला के साथ संबंध बनाता है तो वो दोषी नहीं-

कानून कहता है कि अगर शादीशुदा पति किसी शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाता है तो वो दोषी है, अविवाहित के साथ बनाए तो दोषी क्यों नहीं? ये उस जमाने का बनाया हुआ नियम है जब महिलाओं को पुरुषों की जागीर समझा जाता था.  

* पति अपनी पत्नी को किसी और के साथ संबंध बनाने की इजाज़त दे सकता है-

इस बात की मूल भावना ही स्त्रियों के खिलाफ है. और निसंदेह ये महिलाओं के लिए अपमानजनक भी है कि ये कानून कहता है कि अगर पति इजाज़त देता है, तो पत्नी किसी पुरुष से संबंध बना सकती है.

क्या है समाधान-

* अगर समान सजा का प्रावधान हो-

सुप्रीम कोर्ट ने जो सवाल किए हैं उनके रुख से तो स्पष्ट है कि ये कानून अब समानता को ध्यान में रखते हुए महिला और पुरुष दोनों के लिए बराबर होगा. यानी अगर पुरुष अडल्ट्री का दोषी है तो महिला भी बराबर की जिम्मेदार मानी जाए. जो सजा पुरुष को मिले वही सजा महिला को मिले.

* अगर खारिज हो जाए धारा 497 -

याचिकाकर्ता का कहना है कि अडल्टरी प्रावधान को जेंडर समानता के लिए न पढ़ा जाए, बल्कि इसे खारिज किया जाए. इस कानून को अगर खारिज कर दिया जाएगा तो ये शादी जैसी संस्था प्रभावित होगी. समाज में जिन चीजों को नियंत्रित करने के लिए शादी जैसे रिवाज बनाए हैं, उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा. संबंध अनियंत्रित, न कोई रोक टोक और न ही कोई डर. समाज का प्रारूप बिगड़ जाएगा.

मेरे पड़ोस में रहने वाली एक लड़की का किसी के साथ अफेयर था. लेकिन लड़के को परिवार के दबाव में किसी और से शादी करनी पड़ी. शादी के बाद भी दोनों को मिलना जारी रहा, क्योंकि दोनों प्रेम में विवश थे. धीरे-धीरे लड़के की पत्नी को पति के प्रेम संबंधों के बारे में पता चल गया. लेकिन वो कुछ नहीं कर सकी. क्योंकि पति के किसी अविवाहित लड़की के साथ संबंध थे. वो परेशान रही, डिप्रेशन में आ गई क्योंकि नई-नई शादी से उसने ये उम्मीद नहीं की थी. और कुछ समय बाद पता चला कि उसने आत्महत्या कर ली.

ये एक उदाहरण है, लेकिन ऐसे कई उदाहरण समाज में भरे पड़े हैं, जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर बने इस कानून के लचर होने का अहसास करते हैं. हालांकि ये दो लोगों के बीच का निजी मामला है. लोग अपने जीवन में क्या चाहते हैं क्या नहीं चाहते इससे किसी और को कोई परेशानी होनी नहीं चाहिए.

क्या कहते हैं आंकड़े-

विवाहेतर संबंधों पर भले ही किसी की भी क्या राय हो, लेकिन आंकड़ें चौंकाने वाले हैं और ये बताते हैं कि हमारा समाज अब काफी बदल चुका है. यहां महिला और पुरुष दोनों एक्ट्रा मैरिटल अफेयर को सहजता से स्वीकार कर रहे हैं. आंकड़े बताते हैं-

* डेटिंग वेबसाइट ऐश्ले मेडिसन पर 2.75 लाख भारतीय सदस्य हैं और इसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है.

* अमेरिका के जर्नल ऑफ मैरिटल एंड फैमिली थेरेपी की ओर से 2013 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार 41 फीसदी लोगों ने माना है कि शादी के बाद शारीरिक या मानसिक तौर पर वे अपनी साथी के प्रति वफादार नहीं रहे.

* 2014 में एश्ले मैडिसन के एक सर्वे से भी हैरान करने वाले आंकड़े मिले. दरअसल, भारत में 76 फीसदी महिलाएं और 61 फीसदी पुरुष बेवफाई किए जाने को अब पाप नहीं मानते. यह सर्वे 75,321 लोगों पर किया गया. दस शहरों से लिए गए इस सैंपल में 80 फीसदी शादीशुदा हैं. इस सर्वे के मुताबिक 81 फीसदी पुरुषों और 68 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि विवाहेतर संबंधों का उनकी शादी पर अच्छा असर पड़ा. इनमें 80 फीसदी लोगों ने अरेंजड मैरेज की थी. जिन लोगों को सर्वे के लिए चुना गया उसमें पुरुषों की औसत आयु 45 जबकि औरतों की 31 साल थी.

लेकिन पति-पत्नी और वो, सहमति या असहमति जैसी बातें हमारे समाजिक ढांचे को कहीं न कहीं प्रभावित तो करती ही हैं, इसलिए कानून ऐसा हो जिसमें बराबरी और संतुलन साफ दिखे.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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