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Updated: 12 नवम्बर, 2019 06:39 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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कहते हैं जब पति-पत्नी के झगड़े घर के बाहर आ जाएं तो वो निजी नहीं रहते. अगर ये झगड़े अदालत को सुलझाने पड़ें तो समझिए कि दोनों के बीच रिश्तों में अब वो गर्माहट नहीं रही. तमाम घरेलू मुद्दे हैं जो किसी न किसी वजह से पति और पत्नी के बीच अलगाव का कारण बनते हैं. ऐसे में सुझाव दिए जाते हैं कि घर के झगड़ों को घर के अंदर ही सुलझा लेना चाहिए. और इसीलिए कई जोड़े अपनी अनबन का हल निकालने का उपाय खोजते रहे हैं.

पिछले दिनों भोपाल जिला विधिक प्राधिकरण में एक जोड़ा अपने आपसी विवाद को खुद के बनाए कुछ समझौतों के जरिए खत्म करने के लिए पहुंचा. भोपाल में रहने वाले पति-पत्नी दोनों प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. दोनों की शादी को 10 साल हो चुके हैं. दो बच्चे हैं. लेकिन, घर के कामों को लेकर दोनों के बीच झगड़े होने लगे. जिसकी वजह से दोनों अलग अलग रहने लगे. 6 साल की बेटी पिता के पास रहती थी और 8 साल का बेटी मां के पास. दोनों भाई बहन केवल रविवार को ही मिल पाते. माता-पिता की वजह से बच्चों पर बहुत बुरा असर हो रहा था. इसलिए बच्चों की खातिर दंपति ने अपने रिश्ते को एक मौका और देने की कोशिश की.

husband wifeपति पत्नी के बीच की छोटीछोटी बातें अलगाव की वजह बनती हैं

दोनों ने समझदारी से कुछ शर्तों के साथ आपस में समझौता किया. 100 रुपए के स्टांप पेपर पर कुछ शर्तें लिखीं. इन शर्तों को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए ये दोनों जिला विधिक प्राधिकरण पहुंचे थे. वहां से इस केस को जिला अदालत भेजा जा रहा है जिससे इस समझौते पर कानूनी मान्यता मिल सके.

पति-पत्‍नी ने शादी बरकरार रखने के लिए साइन किया करारनामा

भोपाल निवासी पति-पत्नी ने आपसी सहमति से कुछ शर्तें एक एग्रीमेंट के जरिए साइन कीं. और उन बातों का समाधान निकालने का रास्‍ता तय किया, जिनसे उनके रिश्‍ते में दरार आई थी. आइए, पहले उन शर्तों पर नजर डालते हैं:

* हफ्ते के पांच दिन पत्नी खाना बनाएगी और घर की देखभाल के साथ बच्चों का होमवर्क भी कराएगी. शनिवार और रविवार को यही काम पति को करने होंगे. यानी शनिवार और रविवार जब पति घर का काम करेगा तो पत्नी बाहर का काम करेगी.

* किसी एक के बीमार पड़ने पर परिवार के लिए होटल से खाना आएगा.

* दोनों पक्ष एक दूसरे के माता-पिता से संबंधित कोई छींटाकशी नहीं करेंगे, न कोई हस्तक्षेप. दोनों अपने माता-पिता के लिए भरण पोषण की राशि अपनी इच्छानुसार दे सकेंगे.

* ऑफिस में लेट घर पहुंचने की सूचना दो घंटे पहले एक-दूसरे को देना होगी, ताकि कोई एक घर पहुंचकर बच्चों को संभाल सके.

* बच्चों के भविष्य के लिए दोनों अपने अकाउंट से कुछ राशि जमा कराएगें.

* बच्चों के स्कूल में होने वाली पैरेंट मीटिंग को भी पति-पत्नी एक-एक माह अटेंड करेंगे.

* यदि दोनों में कोई भी एक यात्रा पर जाए, तो इसकी सूचना दूसरे को 5 दिन पहले देनी होगी.

* दोनों घर का खर्च बराबर बाटेंगे.

* खरीदे गए मकान को या तो संयुक्त रूप से दोनों के नाम से होगा या बच्चों के नाम से.

* एक दूसरे के प्रोफेशनल रिलेशनशिप पर कोई टीका टिप्पणी नहीं करेगा.

इस समझौते को तोड़ने पर दोनों ने खुद के लिए सजा का प्रावधान भी किया है.

* अगर कोई शर्तों का उल्लंघन करता है तो एक दूसरे से अलग होने के लिए स्वतंत्र है.

* बच्चे शर्तों का उल्लंघन करने वाले के साथ नहीं रहेंगे. उल्टे बच्चों के भरण-पोषण के लिए 20 हजार रुपए हर महीने देने होंगे.

शादी के 7 वचनों को संशोधित करने का समय आ गया है

आज जब हर कामकाजी जोड़ा इन परेशानियों से जूझता है तो क्या ये जरूरी नहीं कि पति-पत्नी के बीच की समस्याओं को बारीकी से समझा जाए और नए सिरे से समस्याओं का हल निकाला जाए. शादी करते वक्त पति और पत्नी 7 वचन लेते हैं. लेकिन अब जरूरत आन पड़ी है कि इन वचनों में थोड़े से संशोधन किए जाएं. भविष्य को ध्यान में रखते हुए ही तो समाज ने ये 7 वचन बनाए थे. लेकिन वक्त बदल गया और ये 7 वचन पुराने जमाने के हिसाब से ही चले आ रहे हैं.

marriageबदलते समय के हिसाब से वचन भी बदलने चाहिए

वचन नं.1

पति पत्नी एक दूसरे को वचन देते हैं कि यदि पति कभी तीर्थयात्रा पर जाए तो पत्नी को भी अपने संग लेकर जाए. कोई व्रत-उपवास, दान या अन्य धर्म कार्य करें तो पत्नी को अपने वाम भाग में स्थान दिया जाएगा. यानी इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पति और पत्नी की सहभा‍गिता का महत्व समझाया गया है.

आज के परिवेश में पति अगर तीर्थ पर जाए या कहीं भी घूमने जाए तो ये जरूरी नहीं हो कि पत्नी साथ जाए ही. पत्नी और पति दोनों को अपना समय और स्पेस मिलना चाहिए. अगर पति कहीं जाना चाहता है तो जाए, उसी तरह पत्नी अगर घूमने जाना चाहे तो पति का साथ होना आवश्यक न हो. रही बात सहभा‍गिता की तो सिर्फ धार्मिक कार्यों में ही सहभागिता जरूरी क्यों हो. समान रूप से काम करते हैं तो हर कार्य में सहभागिता हो. दोनों कामकाजी हैं तो घर खर्च में दोनों की सहभागिता हो. प्रॉपर्टी खरीदने में दोनों की सहभागिता हो. बच्चों की देखभाल करने में, उनकी पढ़ाई लिखाई होमवर्क करवाने में भी दोनों की सहभागिता हो. घर के काम करने में भी पत्नी के साथ पति की सहभागिता हो. जब दोनों मेहनत करते हैं तो घर सिर्फ पत्नी के भरोसे क्यों रहे.

वचन नं.2

कन्या वर से वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें. वहीं पति को ये वचन भी देती है कि आपके परिवार के बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्गों तक सभी की देखभाल करूंगी और जो भी जैसा भी मिलेगा उससे संतुष्ट रहूंगी.

दोनों एक दूसरे के माता-पिता का सम्मान करें. दोनों के बारे में कोई भी टीका टिप्पणी न करे. अपने अपने माता-पिता की देखभाल के लिए दोनों जिम्मेदारी लें और खर्च उठाएं. पत्नी अगर पति के माता-पिता और परिवार को संभालती है तो पति भी पत्नी के माता-पिता का ख्याल रखें. जो बेटियां अपने माता-पिता की अकेली होती हैं वो शादी के बाद अपने माता-पिता के लिए कुछ कर नहीं पातीं. आज लड़कियां आत्मनिर्भर हैं, अकेले होते हुए भी अपने माता-पिता का ख्याल रख सकती हैं. लेकिन जो कामकाजी नहीं है उनके पति, पत्नी के माता-पिता की जिम्मेदारी भी संभालें.

वचन नं.3

पति वचन देता है कि वो जीवन की तीनों अवस्थाओं- युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था में पत्नी का पालन करते रहेंगे. वहीं पत्नी वचन देती है कि वो प्रतिदिन पति की आज्ञा का पालन करेगी और समय पर पति के मनपसंद व्यंजन बनाकर दिया करेगी.

ये वो वक्त था जब महिलाएं पूरी तरह से अपने पति पर ही निर्भर हुआ करती थीं. अच्छा पति पाना और पत्नी धर्म निभाना ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता था. पति जीवन भर उसका ख्याल रखता था उसके एवज में पत्नी पति को खाना बनाकर देती और उसकी सेवा करती थी. लेकिन आज वो समय नहीं है. आज महिलाओं को उद्देश्य सिर्फ मिसेज शर्मा, या मिसे वर्मा बनने का नहीं है. आज वो अपनी पहचान बना रही हैं. आत्मनिर्भर बन रही हैं. इसलिए इस वचन की जरूरत नहीं, दोनों उम्र भर एक दूसरे का साथ दें. और घर गृहस्थी का काम आधा आधा बांटें. वो जमाने लद गए जब पत्नियों का दूसरा घर उनकी रसोई होता था.

वचन नं.4

पति वचन देता है कि अभी तक वो घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त था. लेकिन विवाह के बाद भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व अपने कंधों पर लेगा. तो वहीं पत्नी पति को वचन देती है कि वो स्वच्छता पूर्वक सभी श्रृंगार धारण कर मन, वचन और कर्म से शरीर की क्रिया द्वारा क्रीडा में पति का साथ देगी.

आज लड़कियों को भी इतना पढ़ाया लिखाया जाता है कि वो चाहें तो वो भी अपने पति के घर जाकर परिवार की जिम्मेदारी संभाल लें. कुछ हाउस वाइफ बनना ही पसंद करती हैं लेकिन कुछ पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर घर चलाती हैं. इसलिए ये वचन भी बदलना चाहिए. क्योंकि पति घर चलाता था तो उसे खुश रखने के लिए पत्नी तन और मन से पति का साथ देती थी. अब दोनों घर चला रहे हैं तो पत्नी के मन का भी ध्यान रखना होगा.

वचन नं.5

पती वचन देता है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन या अन्य जगह खर्च करते समय पत्नी की सलाह लेगा. तो पत्नी वचन देती है कि वो पति के दुख में धीरज और सुख में प्रसन्नता के साथ रहेगी.

पति और पत्नी दोनों समझदार है. और दोनों की सलाह एक दूसरे के लिए फायदेमंद ही होगी. इसलिए कोई भी फैसला करते वक्त दोनों एकमत हों. पत्नी अगर कामकाजी नहीं भी हो तो भी पति पति, पत्नी के अधिकारों को न भूलते हुए उसे महत्व दें. दोनों एक दूसरे के दोस्त बनकर रहें.

वचन नं.6

पति वचन देता है कि पत्नी अगर अपनी सहेलियों या अन्य महिलाओं के बीच बैठी हो, तब पति सबके सामने किसी भी कारण से पत्नी का अपमान नहीं करेंगे. और जुआ व अन्य प्रकार के दुर्व्यसन से खुद को दूर रखेगा. वहीं पत्नी वचन देती है कि वो सास-ससुर की सेवा, सगे संबंधियों और अतिथियों का सत्कार और बाकी काम सुख पूर्वक करेगी. पति के साथ ही रहेगी. पति का विश्वास नहीं तोड़ेगी.

पति और पत्नी दोनों एक दूसरे के मान सम्मान की रक्षा करें. अपमान सिर्फ शब्दों से नहीं होता. अक्सर घरेलू महिलाओं को पति सिर्फ इतना ही कहकर उन्हें नीचा दिखा देते हैं कि 'पूरा दिन घर में रहती हो, काम क्या करती हो'. वो सारे कम करके भी पति का सम्मान नहीं पातीं. दोनों खुद को किसी भी नशे से दूर रखें. नशा सोशल मीडिया और मोबाइल गेम्स का भी होता है.

वचन नं.7

पति वचन देता है कि वो पराई स्त्रियों को माता के समान समझेगा और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के बीच किसी और को भागीदार नहीं बनाएगा. पत्नी वचन देती है कि धर्म, अर्थ और काम संबंधी मामलों में वो पति की इच्छा का पालन करेगी.

इस तरह से महिलाएं खुद का भविष्य सुरक्षित रखना चाहती हैं. लिहाजा नया वचन हो कि दोनों एक दूसरे के प्रति वफादार रहें. एक दूसरे पर शक न करें. पति धर्म से ज्यादा अहम होते हैं पत्नी धर्म जिनका हवाला देकर हमेशा से महिलाओं को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी है. वो पति की हर आज्ञा मानने के लिए बाध्य रही है, नहीं तो वो अच्छी पत्नी नहीं है. लेकिन आज महिलाएं समानता चाहती हैं. पत्नी धर्म चाहिए तो पति धर्म भी निभाए जाएं. धर्म, अर्थ और काम के मामले में पत्नी भी अपनी इच्छा रखने में स्वतंत्र हों, और पति उनकी इच्छा का सम्मान करें.

एक स्त्री के नजरिए से दुनिया को देखना हर किसी के लिए जरूरी है. स्त्रियों की दशा अब बदल रही है. पहले जैसा अब कुछ भी नहीं. तो फिर क्यों पुराने नियमों को नए परिवेश के मुताबिक नहीं बदला जाना चाहिए. भोपाल का ये मामला इसी तरफ इशारा कर रहा है कि कुछ बातों में अब समाज को बदलने की जरूरत है. और ये जितना जल्दी हो उतना ही अच्छा है. ये बदलाव न सिर्फ महिलाओं के लिए जरूरी हैं बल्कि पति-पत्नी के सुरक्षित भविष्य और सुखद रिशते के लिए भी.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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