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Updated: 16 नवम्बर, 2021 11:02 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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जो लोग यह कहते हैं कि लड़कियां बस नाम का रोना रोती हैं उन्हें यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए. छह दशकों के बाद पहली बार लड़कियों को NDA की परीक्षा में बैठने का अवसर मिला है. महिलाओं के आवेदन की संख्या को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें कबसे इस मौके का इंतजार था. NDA की परीक्षा के लिए आए कुल 570,000 आवेदनों में से 178,000 लड़कियों के थे. ये वे महिलाएं हैं जो देश की सेवा करने के लिए तैयार हैं.

nda, women, gender, women in nda, women apply for ndaएनडीए एक पुरुष-प्रधान अकादमी है महिलाों के लिए चुनौतियां तो होंगी ही

12वीं की परीक्षा पास करने के बाद साढ़े 16 से साढ़े 19 की उम्र वाले युवाओं को नेशनल डिफेंस एकेडमी में जाने का मौका रहता है. लेकिन, NDA परीक्षा पास करने के अलावा उन्‍हें कड़ी चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यहां प्रवेश मिलता है. जिसमें फिजि‍कल टेस्‍ट भी शामिल है. लड़कियों के लिए NDA परीक्षा की ये चुनौतियां नई जरूर हैं, लेकिन वे खुद को लड़कों से किसी तरह कमतर मानने के लिए तैयार नहीं हैं. जब उन्‍हें NDA के लिए पात्र माना गया है, तो उनके झंडे गाड़ने का इंतजार कीजिये.  

भारतीय सेना में शामिल होकर देशसेवा करने का ख्‍वाब, अब तक लड़कियों के लिए ख्‍वाब ही था. कल्पना कीजिए एक लड़की है जिसका भाई NDA की तैयारी कर रहा है. वह लड़की अपने पिता से कहती है कि भाई की तरह मुझे भी NDA प्रवेश परीक्षा की तैयारी करनी है. मैं भी भाई की तरह सैनिक अधिकारी बनकर देश की सेवा करना चाहती हूं.

पिता का जवाब होता है नहीं बेटा, तुम ये नहीं कर सकती, क्योंकि तुम एक लड़की हो. लड़कियां इस क्षेत्र में नहीं जा सकतीं. इतना सुनने के बाद लड़की थोड़ी देर के लिए सोचती है कि लड़की होना गलत है क्या? फिर वह इसे अपनी किस्मत मानकर शांत हो जाती है. शायद पिता जी इसलिए मुझे बेटी ना बोलकर बेटा बोेलते हैं.

दूसरा उदाहरण आप यह लीजिए कि कोई लड़की है जो गांव के एक स्कूल में पढ़ती है और वह आर्म्ड ऑफिसर बनने के बारे में अपने टीचर से पूछती है लेकिन शिक्षक यह जवाब देता है कि तुम नहीं बन सकती और वह मायूस हो जाती है. 

6 दशक का समय कम नहीं होता. इतने सालों में तो ऐसी ना जाने कितनी कहानियां कितनी लड़कियों के साथ जुड़ी होंगी जिनके सपनें टूटे होंगे. सिर्फ इसलिए क्योंकि NDA की वह दुनिया सिर्फ लड़कों की थी, लड़कियों की नहीं... कुछ ऐसा जिसे आप चाहकर हांसिल नहीं कर सकते, क्योंकि आपको उसके काबिल ही नहीं समझा जाता. यह सोचकर बेचैन हो सकते हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते. यह पीड़ादायी है लेकिन दिल दुखाने वाली बात यह है कि महिलाओं को आज भी कई मामले में इस पीड़ा को सहन करना पड़ता है. 

दरअसल, संघ लोक सेवा आयोग द्वारा भारत भर के केंद्रों पर आयोजित की गई NDA प्रवेश परीक्षा को क्रैक करने का यह महिलाओं का पहला प्रयास था. खुशी की बात यह है कि 14 नवंबर 2021 को हुई इस परीक्षा में शामिल उम्‍मीदवारों में एक तिहाई लड़कियां थीं.

एनडीए एक पुरुष-प्रधान अकादमी है इसलिए चुनौतियां तो होंगी. हालांकि महिलाएं आवेदकों की संख्या बता रही है कि वे हर चुनौती के लिए तैयार हैं. पंख मिल गया है अब बस उड़ान बाकी है. कहना गलत नहीं होगा कि यही असली लिंग समानता है...हो सकता है कि कुछ लोगों को यह लगे कि इसमें बड़ी बात क्या है? याद रखिए उस चीज की अहमियत सिर्फ उसे पता होती है जिसके पास वो होती नहीं है. 

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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