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Updated: 26 मार्च, 2018 01:46 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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एक पहलू : हम अक्सर सुनते हैं कि ऑफिस में महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता. उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से शोषित किया जाता है. बॉस अपनी महिला कर्मचारियों का अपने अपने तरीके से फायदा उठाते हैं या मजे लेते हैं. लेकिन नौकरी बचाए रखने के लिए महिलाएं आवाज नहीं उठाती, उठाती भी हैं तो वो आवाजें या तो खामोश कर दी जाती हैं या उनको गंभीरता से नहीं लिया जाता. ये सच है, लेकिन आधा सच पूरे सच से ज्यादा खतरनाक होता है.

दूसरा पहलू : एक लड़की इंटर्व्यू देने जाती है और सामने बैठे शख्स से अति उत्साही होकर ये कहती है कि मुझे किसी भी कीमत पर ये नौकरी चाहिए या मैं इस नौकरी के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूं. तो देखा जाए तो ये हद ही होती है जो बताती है कि महिलाएं प्रताड़ित हो रही हैं या फिर नहीं. सबकी अपनी अपनी हदें होती हैं. बॉस का कंधे पर हाथ रखना किसी महिला के लिए ओके है तो किसी को उससे ऐतराज है. लेकिन मामला तब बिगड़ता है जब बॉस हर महिला से ये छूट चाहने लगता है और तब आवाज उठती है यौन शोषण और #MeToo जैसे हैशटैग जन्म लेते हैं.

sexual harrassmentभारत में 70% महिलाएं खुद पर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठातीं

हाल ही में हुए एक सर्वे ने कार्यस्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के बीच की हदों का लेखाजोखा सामने ला दिया है. जिसे सुनकर शायद आप यकीन न कर पाएं.  

'केयर' नाम के एक संगठन ने हैरिस पोल द्वारा एक सर्वे आयोजित कराया. जिसे महिला दिवस के मौके पर रिलीज़ किया गया था. इस सर्वे में 8 देश शामिल थे. ऑस्ट्रेलिया, इक्वाडोर, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, यूके, वियेतनाम और भारत के 9408 वयस्क सर्वे का हिस्सा बने थे.

इस सर्वे के अनुसार

- दुनिया में हर 4 में से 1 पुरुष ये सोचता है कि मालिक द्वारा अपने कर्मचारी के ज्यादा करीब आना या सेक्स की उम्मीद करना हमेशा या कभी-कभी सही है. ऐसा मानने वाले सबसे ज्यादा यानी 62 प्रतिशत लोग मिस्र से हैं.

- 32% महिलाओं और 21% पुरुषों का कहना था कि उन्होंने उपने काम पर यौन शोषण झेला या उनपर यौन हमला किया गया.

- मिस्र की 38% और भारत की 21% महिलाएं ये मानती हैं कि मालिक का उनके करीब आना या उसने सेक्स की उम्मीद करना कभी-कभी या हमेशा ठीक है.  

- भारत में 33% लोगों का मानना है कि अपने सहकर्मी पर सीटी मारना हमेशा या कभी कभी स्वीकार्य है.

- भारत के आधे से ज्यादा लोग यानी 52% पुरुषों ने माना कि महिलाओं को उनके रूप-रंग के आधार पर उन्हें वर्गीकृत करना कभी कभी (34%) या हमेशा(18%) सही है. जबकि 35% महिलाएं भी इससे सहमत हैं.

- यूके में, 25-35 की उम्र के 35% पुरुषों का मानना है कि अपनी सहकर्मी के पुठ्ठों पर कभी-कभी या हमेशा चकोटी काटने में कोई बुराई नहीं है.

- अमेरिका के 44% पुरुष मानते हैं कि अपनी सहकर्मियों के साथ सेक्स संबंधी मजाक करना या जोक सुनाना सही है.

- 77% लोगों का मानना है कि मालिक शोषण को गंभीरता से लेते हैं जबकि 23% लोगों का मानना है कि नहीं लेते.

- करीब 65% महिलाओं का मानना है कि #MeToo आंदोलन उनके देशा में बदलाव लेकर आएगा.

इस सर्वे के बाद 'केयर' ने पिटीशन की मुहिम भी छेड़ दी और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labor Organization) से 'कार्यस्थल पर हिंसा से आजादी' के तहत नए ग्लोबल नियम बनाने की अपील की है. केयर ने यौन शोषण के बारे में चर्चा के लिए एक नया हैशटैग #ThisIsNotWorking भी बनाया गया है.

metoo, womenमहिलाओं को अपनी आवाज बुलंद करनी होगी

हम भारत की बात करें तो हमारे देश में 70% कामकाजी महिलाएं खुद पर हो रहे यौन शोषण का जिक्र किसी से नहीं करतीं. ऐसे में मानव संसाधन विभागों से उम्मीद की जाती है कि वो इन मामलों के प्रति और गंभीर हों. हम #MeToo आंदोलन देख रहे हैं, जिसके तहत महिलाओं ने खुदपर होने वाले अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की, यौन शोषण पर वो खुलकर सामने आईं और अब #ThisIsNotWorking के नारे भी दुनियाभर में लगते देखेंगे. उम्मीद है कि ये आवाजें लोगों के कानों में तेजाब की तरह असर करें...तभी न सिर्फ कार्यस्थलों पर बल्कि हर जगह महिलाओं का भला हो सकेगा.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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