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Updated: 20 अप्रिल, 2018 05:44 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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नॉनवेज खाने वालों के लिए बढ़िया खाने के बीत की जाए तो बहुत सारे ऑप्शन्स होते हैं, लेकिन अगर वेजिटेरियन्स की बात करें तो बढ़िया खाना मतलब..'पनीर'. वेजिटेरियन्स के लिए ये पनीर किसी भी मायने में चिकन या मटन से कम नहीं होता, लेकिन फिरभी बेचारे पनीर को ये नॉनवेज खाने वाले कभी इज्जत नहीं देते.

पनीर को लेकर अब तक मांसाहारी शाकाहारियों का काफी मजाक बनाते आए हैं, लेकिन अब तो हद हो गई... इन्होंने तो मास्टर शेफ संजीव कपूर तक को नहीं बख्शा. हाल ही में संजीव कपूर ने 'मालाबार पनीर' की वीडियो रेसेपी ट्विटर पर शेयर की, लेकिन शेयर करते ही केरल के लोगों को न जाने क्या हुआ कि संजीव कपूर जैसे शख्स तक को ट्रोल करना शुरू कर दिया.

संजीव कपूर ने अपनी डिश को एक 'एक अद्भुत मलाबार डिश' के रूप में पेश किया. लेकिन दक्षिण भारतीय लोगों को शायद संजीव कपूर की ये डिश समझ नहीं आई क्योंकि इसमें मीट या मछली के बजाए पनीर था, जिसे शेफ ने मालाबारी अंदाज में पेश किया था. मालाबारी खाने के बारे में एक बात खास है कि ये खाना शाकाहारी नहीं होता. केरल के 98% लोग मांसाहारी हैं इसलिए पनीर खाने जैसा वहां पर कुछ नहीं है. इसलिए उन्होंने संजीव कपूर और उनकी पनीर से बनी इस मालाबारी डिश को खूब खरी-खोटी सुना डाली.

देखिए क्या कुछ नहीं कहा दक्षिण भारतीय लोगों ने-

'अपनी खिचड़ी और पनीर अपने पास रखो'

'मालाबार में पनीर नहीं होता. लोगों को मूर्ख मत बनाओ !'

'पनीर को केरल से दूर रखो हमारे पास बीफ है'

'पनीर मालाबार में कब आया?'

'केरल में पनीर नहीं खाया जाता'

'इसका मजाक तो बनेगा ही'

'मालाबारी नाम जोड़ने से डिश मालाबारी नहीं बन जाती'

'ये तो बेइज्जती है !'

तो देखा आपने, एक 'शाकाहारी' मालाबारी डिश ने संजीव कपूर को भी कितना कुछ सुनवा दिया. पर संजीव कपूर जिन्हें मास्टर शेफ कहा जाता है उन्होंने हर जगह के खाने को चखा और बनाया है, यहां तक कि दो संस्कृतियों के खाने को मिलाकर कुछ नया बनाया जिसे 'फ्यूजन फूड' कहा जाता है. वो पंजाबी है, और पंजाबियों में पनीर खूब पसंद किया जाता है, शायद इसी पनीर प्रेम के चलते उन्होंने जब मालाबारी फ्लेेवर्स के साथ पनीर को जोड़ा, तो दक्षिण भारत के लोग हर्ट हो गए. उन्हें ये माराबारी खाने की बेइज्जती लगी.

paneerफ्यूज़न फूड से नफरत क्यों?

क्या ये जरूरी है कि किसी खास जगह का खाना उसी खास तरीके से बनाया जाए? क्या उसमें थोड़ा सा बदलाव भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता? फ्यूजन फूड का तो मतलब ही दो तरह के खाने को आपस में जोड़ना है. और अगर वास्तव में लोग यही मानते हैं कि खाने के साथ किसी भी तरह का एक्सपेरिमेंट नहीं करना चाहिए तो फिर सबसे ज्यादा गुस्सा तो इटली वोलों को होना चाहिए जिनका पिज्जा हम भारतीय अपने तरीके से 'तंदूरी टॉपिंग्स' लगाकर खाते हैं, और फिर नाराज होना चाहिए चीनियों को जिनके चाऊमीन और नूडल्स में लोग गरम मसाले डाल देते हैं. तो भारत के ही लोग अपने ही राज्यों के फूड फ्यूज़न से इतने नाराज क्यों हो जाते हैं. माना कि मांस मछली ही वहां का खाना है लेकिन 2% लोग शाकाहारी ही हैं. अगर किसी को मांसाहारियों के मांस-मछली खाने से ऐतराज नहीं है, तो फिर शाकाहारियों के पनीर और सब्जियों से वो इतना क्यों चिड़ जाते हैं? लेकिन यहां मामला शाकाहार या मांसाहार का नहीं बल्कि नॉर्थ और साउथ इंडिया के आपसी टकराव का है, जिसमें एक शेफ बेकार में फंस गया.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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