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Updated: 23 मार्च, 2017 02:03 PM
अखिलेश द्विवेदी
अखिलेश द्विवेदी
  @akhilesh9009
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फेसबुक की आभासी दुनिया में करोड़ों की संख्या में लोग मौजूद हैं. जिस तरह से यथार्थ में जीवन, मृत्यु निश्चित है उस तरह से फेसबुक में नहीं है. क्या कभी आपने सोचा कि जब से आप फेसबुक में सक्रिय हैं आपकी मित्रता सूची में तब से कितने लोगों की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनके जन्मदिन का नोटिफिकेशन आपको आता ही होगा, कई लोग विश करने के बाद जान पाते हैं कि अब वो इस दुनिया में नहीं हैं, क्योंकि उनका कोई निकटतम व्यक्ति बताता है कि अब उनके जन्मदिन का उत्सव नहीं मृत्यु का मातम है. मसलन फेसबुक की आभासी दुनिया में न जाने कितने प्रोफाइल्स मौजूद हैं जो अब इस दुनिया में जीवित नहीं हैं लेकिन फेसबुक की डिजिटल दुनिया में उनकी उपस्थिति है, उनकी फोटो उनके विचार वगैरह-वगैरह. एक समय आएगा जब विश्व में सबसे बड़ा कब्रगाह फेसबुक ही होगा.

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अजीबोगरीब स्थिति तब आती है जब आपके किसी दोस्त की प्रोफाइल उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई सगा-संबंधी चलाने लगता है. हम आप समझ ही नहीं पाते कि जीवित व्यक्ति की बात हम पढ़ रहे हैं या उसके सम्बन्धी की. एक सर्वे रिपोर्ट की मानें तो प्रतिदिन आठ हजार फेसबुक यूजर्स की मृत्यु हो रही है. इस तरह अगर सोचा जाए तो एक समय ऐसा आएगा जब जीवित व्यक्तियों से ज्यादा मरे हुए लोगों के एकाउंट होंगे. जीवन-मरण, आत्मा-परमात्मा सिद्धान्त की मान्यताओं को मानें तो मृत्यु के उपरांत सबसे अधिक आत्माएं फेसबुक पर भटकती होंगी. अपनी मित्रता सूची के घनिष्ठतम मित्र व सहेलियों को देखती  जरुर होंगी. ये डिजिटल युग है आत्मा-परमात्मा भी डिजिटल हुए होंगे क्या? यदि हां तो वो इस आभासी दुनिया में आभास दिलाएंगे क्या? आप लोग भी सोच रहे होंगे ये क्या वाहियात सवाल है? इस पोस्ट का मतलब क्या है? भावार्थ क्या है ? इसका हम सबके जीवन में उपयोग क्या है?

जीवन असीम संभावनाओं का प्लेटफॉर्म है, ये तो मानते हैं न आप... तो फिर संभव है आप भी एक दिन इस आभासी दुनिया को देखते-पढ़ते संभावनाओं को तलाशते हुए मृत्यु का वरण करेंगे. आपकी कुछ तलाश पूरी होगी, कुछ अधूरी होगी, कुछ के लिए आप कल्पना पाल कर कल्पित रहते हुए यथार्थ जीवन से चले जायेंगे लेकिन डिजिटल व आभासी दुनिया में आपकी उपस्थिति बनी रहेगी.

मैं सोच रहा हूं एक दिन मैं अपनी मित्रता सूची में उपस्थित मर चुके लोगों को सादर स्मरण करते हुए उन्हें बसंत की शुभकामनाएं देते हुए कहूं, अगर आप सब की आत्मा सच में अभी भी आभासी दुनिया में आती है तो आप एकबार मेरी प्रोफाइल में भी विचरण करें. मैं यकीन से ये कह सकता हूं कि आपको मेरी पोस्ट और फोटोज पहले से बेहतर लगेगी उसके बाद मेरी मित्रता सूची में उपस्थित लोगों से कहूं कि अपनी उपस्थिति अवश्य दें अन्यथा हम उन्हें मरा हुआ घोषित करेंगे या मान लेंगे और उनसे ये भी आग्रह करुंगा कि आप सब अपनी मित्रता सूची के मृत्यु का वरण कर चुके लोगों के नाम भी बता सकते हैं. आप जो लोग जिन्दा हैं वो जिन्दा नजर भी आएं, अपने विचार, सामाजिक व्यवहार की स्थिति, सिर्फ समस्याओं का उल्लेख न करें उसकी खूबी भी लोगों को बताएं क्योंकि आप के मरने के बाद भी आपका ये डिजिटल पन्ना जीवित रहेगा. इसलिए जीवेत् शरदं सतम् कि परिकल्पना से बाहर निकल कर समाज की खूबियों के साथ समस्याओं का उल्लेख करें.

आभासी दुनिया को भी आभास हो आपके जाने का और गम हो आपके खोने का कुछ ऐसा काम करें अन्यथा यहां पर न आएं, क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा कब्रगाह है. कब्रगाह में मरे हुए लोगों के विचार हैं. आत्माओं के विचार हैं, जो अब परमात्मा में विलीन हुए कि अभी भी यहां भटक रहे हैं कुछ कहा नहीं जा सकता है. अनुमान लगाया जाये तो हम जब जीवित हैं तो फेसबुक की इतनी लिप्सा है, जबकि दैनिक कार्यों का इतना बोझ है इसके बावजूद हम सक्रिय रहते हैं. मृत्यु के बाद आत्मा तो फ्री होती है कोई काम नहीं सिर्फ विचरण, तो वो विचरण भी अपनी सबसे प्रिय जगह ही करेगी और सबसे प्रिय जगह आज की डेट में सोशल मिडिया है. तो विश्व की समस्त डिजिटल दुनिया की आत्माओं का आह्वान करता हूं, आप आएं, मेरी ही नहीं दुनिया की उन सभी प्रोफाइलों का भी विचरण करें जिनके कभी आप अपना दोस्त बनाना चाहते थे और इस मर्म को समझते हुए विचरण अनवरत जारी रखें.

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आजकल बहुत ही भयावह स्थिति है इस वर्चुअल दुनिया में भी लोग जो जिन्दा हैं, वो एक दुसरे की ताकाझांकी के लिए फर्जी प्रोफाइल भी बनाते हैं कुछ लोग प्रमोशन प्रोग्राम के तहत फर्जी प्रोफाइल बनाते हैं जो कुछ दिनों तक किसी विशेष प्रकार के विषयवस्तु को प्रचारित व प्रसारित करने में अपने जीवन का बहुमूल्य समय गवां देते हैं और उस प्रोफाइल को कुछ दिनों बाद मृत अवस्स्था में छोड़कर चले जाते हैं. लेकिन वो प्रोफाइल भी इस कब्रगाह में जिन्दा है और उसमे लिखे उसके विचार भी. बहुत से तर्कशास्त्री सोशल से मीडिया को आशा और उम्मीद के साथ देखते हैं और कहते हैं कि यह तत्काल में लिखा गया इतिहास है मसलन यह अगर मान भी लिया जाए कि यह तत्काल में लिखा गया इतिहास है तो जो लोग मर चुके हैं उनके प्रोफाइल पर कोई लेखक या इतिहासशास्त्री या कोई जिम्मेदार संस्था कोई अनुसन्धान कर रही है क्या ? अगर कर रही है तो वह प्रोफाइल अपडेट की पोस्ट में क्या देखते होंगे ? उनके मानक क्या होंगे ? वो कैसे आंकते होंगे कि ये प्रोफाइल इतिहास का अंग बनाने लायक है ? या ये यूं ही भाषणों का विषय मात्र है क्योंकि जो लोग मर चुके हैं वो अपनी प्रोफाइल को देखने तो जरुर आयेंगे कि मेरी प्रोफाइल इतिहास का अंग बनी कि नहीं. उम्मीद है आप भी इस लेख को पढ़ने के बाद अपनी प्रोफाइल को इतिहास का पन्ना बनाने के लिए अवश्य प्रयास करेंगे !

मेरे एक मित्र ने कहा कि फर्जी प्रोफाइलों में इतना ध्यान तुम क्यों दे रहे हो. मेरे मन में तो जवाब था लेकिन मैंने दिया नहीं कि फर्जी प्रोफाइल भी तो कोई जिन्दा मनुष्य ही चला रहा होगा न, और अगर वो जिन्दा है तो वह भी इतिहास का पन्ना ही तो लिख रहा है ! मसलन भले ही तर्कशास्त्री व इतिहासकार उसे बाद में फर्जी वाली सूचि में डाल दें ! लेकिन जो लोग फर्जी प्रोफाइल के संचालक हैं जब वो मरेंगे तो वो जब आत्मारूपी विचरण को आएंगे तो बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम उनका मरने के बाद भी रहेगा उन सभी प्रोफाइलों पर उन्हें जाना होगा. और सोचेंगे जिन्दा थे तब भी सुकून नहीं मरने के बाद भी इतना काम ! इससे अच्छा तो जब जिन्दा थे तभी थे कम से कम कुछ चैट में मजा ले लेते थे !

अब सोचिये उनका क्या होगा जो राजनैतिक विचारधारा और धर्म पर बवाल काटते रहते हैं, सोशल मीडिया में वो जब मरेंगे या मरे होंगे तो वो अभी भी विचरण को जब आते होंगे या आयेंगे तो देखेंगे कि यार हम जब जिन्दा थे तब भी यही बहस थी आज भी यही बहस है टेक्नोलॉजी इतना बढ़ गयी सब कुछ हो गया लेकिन ये इतिहास का कौन सा पन्ना है जो अभी भी वही लिख रहा है ? माथा पिटेगा और सर पर हाथ रखकर अपनी प्रिय प्रोफाइलों पर दो आंसू की बूंद टपकाएगा, शायद उसकी बूंद से वो लोग उसकी बात समझ सकें और इतिहास का तात्कालिक पन्ना सही से लिख सकें !

अंत में मैं इतना ही कहना चाहुंगा कि तर्कशास्त्री इस इतिहास के पन्ने में जब भी रिसर्च करें तो मेरे इस लेख को भी शामिल करें और इस बात का पूरा ध्यान रखें कि क्या इस तात्कालिक पन्ने में समाज की सारी बातें आ रही हैं कि नहीं. मुझे तो उम्मीद बहुत कम है क्योंकि जब मैं लोगों की पार्टी और हवाई जहाज पर चढ़ने के अपडेट देखता हूं तो खोजने लगता हूं कि कोई पैदल चलते हुए या रिक्शा की सावरी वाली या गांव की रसोई वाली भी उपडेट है. क्या इस पन्ने में तो मसलन वही शहरी कभी कभी शौकिया मूड में जब वहां पहुंचता है तो एकाध बार पोस्ट कर देता है जो बहुत ही बनावटी होता है ! तो इतिहास का ये पन्ना टेक्निकली बहुत ही विकसित है लेकिन सत्य में बहुत ही पिछड़ा है !

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लेखक

अखिलेश द्विवेदी अखिलेश द्विवेदी @akhilesh9009

स्वतंत्र पत्रकार

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